बड़े चौंकाने वाले अंदाज में गुजरात हाई कोर्ट ने कोरोना रोकथाम में गुजरात सरकार की भूमिका के लिए उसकी तारीफ़ की है। कोर्ट ने कहा, 'यदि सरकार ने कुछ नहीं किया होता तो आज हम सब मर चुके होते।' मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने कहा है कि संकट की इस घड़ी में सरकार की आलोचना या उसके कामकाज की नुक्ताचीनी नहीं की जानी चाहिये।
इसी हाई कोर्ट ने 22 मई को एक फैसले में गुजरात की स्वास्थ्य सेवा की तुलना ‘डूबते टाइटनिक जहाज़’ से की थी। दो जजों के खंडपीठ ने कहा था, 'अहमदाबाद सिविल अस्पताल काल कोठरी से भी बदतर है।' जस्टिस इलेश वोरा और जस्टिस जे. बी. पारडीवाला की बेंच ने स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह टिप्पणी की थी।
सरकार को लगाई थी फटकार
उस समय अदालत ने बीजेपी की विजय रुपाणी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि वह कोरोना पर ‘नकली तरीके’ से नियंत्रण पाना चाहती है। अदालत ने राज्य सरकार को यह फटकार तब लगाई है जब इस सिविल अस्पताल में 377 कोरोना रोगियों की मौत हो चुकी है। यह राज्य में हुई कोरोना मौतों का लगभग 45 प्रतिशत है।जस्टिस पारडीवाला और जस्टिस वोरा की बेंच ने उस समय कहा था, ‘यह बहुत ही परेशान करने वाला और दुखद है कि आज की स्थिति में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की स्थिति बहुत ही दयनीय है, अस्पताल रोग के इलाज के लिए होता है, पर ऐसा लगता है कि आज की तारीख़ में यह काल कोठरी जैसी है, शायद उससे भी बदतर है।’
इसके बाद आश्चर्य जनक रूप से इस बेंच को बदल दिया गया। गुजरात हाई कोर्ट ने कोरोना से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए नया खंडपीठ बनाया, और उसमें जस्टिस इलेश वोरा की जगह मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ आ गये।
बेंच बदली, रवैया बदला
मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली इस बेंच ने कहा, 'हमारा मानना साफ़ है, जो लोग इस कठिन समय में सहायता नहीं कर सकते, उन्हें राज्य सरकार के कामकाज की आलोचना करने का कोई हक़ नहीं है। यदि राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया होता जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है तो शायद हम सब तक मर चुके होते।'बेंच ने इसके आगे कहा, 'इस मुक़दमे में हम यही कर रहे हैं कि राज्य सरकार को उसके संवैधानिक उत्तरदायित्व कि याद दिला कर उनके प्रति उसे सजग कर रहे हैं।'
अदालत का मानना है कि सिर्फ ख़ामियों को उजागर करने से लोगों के मन में डर बैठ जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है क्या हाईकोर्ट के पहले के फ़ैसले से लोगों के मन में डर बैठा कि अब अदालत को इस तरह कि टिप्पणी करनी पड़ी।
'राजनीति न हो'
अदालत का मानना है कि कुछ लोग उसके आदेशों का दूसरे तरह से इस्तेमाल कर लेते हैं, इसलिए उसे जनहित याचिकाओं पर फ़ैसला देते वक़्त सावधानी बरतनी चाहिए। बेंच ने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएँ राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए नहीं दायर की जानी चाहिए।अदालत ने कहा, 'संकट के समय हमसब को एकजुट हो जाना चाहिए, आपसी नुक्ताचीनी नहीं करनी चाहिए। कोरोना मानवीय संकट है, राजनीतिक संकट नहीं।'
विपक्ष की खिंचाई
अदालत ने विपक्ष की भी खिंचाई की। उसने कहा, 'इस असाधारण समय में विपक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इससे इनकार नहीं है कि विपक्ष का काम सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना है, पर इस तरह के समय में सहायता के लिए बढ़ा हाथ आलोचना कर रही जीभ से बेहतर होगा।'अदालत ने यह भी कहा कि वह राज्य सरकार के कामकाज में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगी, यदि सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने में नाकाम रही तो वह ज़रूर उसे मैंडेमस जारी करेगी, यानी अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का आदेश देगी। अदालत सरकार के हर अच्छे काम की तारीफ करेगा, उससे कोई भूल-चूक हुई तो उसकी भी याद उसे दिलाएगी।