केंद्र सरकार ने बायोलॉजिकल-ई की कोरोना वैक्सीन के लिए लिए क़रार किया है और 30 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया है। देश में ही विकसित बायोलॉजिकल-ई की कोरोना वैक्सीन का फ़िलहाल ट्रायल चल रहा है और सरकार ने 1500 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि भी दे दी है। इस वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद यह दूसरी वैक्सीन होगी जो देश में ही विकसित की गई है। स्वदेशी भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन के टीके लगाए जा रहे हैं। सरकार की ओर से यह तेज़ी तब दिखाई जा रही है जब सरकार ने तेज़ी से टीकाकरण का कठिन लक्ष्य सामने रखा है। सरकार ने कई विदेशी कंपनियों के लिए भी नियमों में बड़ी ढील देने और कंपनियों की शर्तें मानने की तैयारी की है। सरकार की तरफ़ से ऐसी तेज़ी तब दिखाई जा रही है जब हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सरकार से कोरोना टीकाकरण, टीकाकरण नीति और टीके की कमी को लेकर तीखे सवाल कर रहे हैं।
बायोलॉजिकल-ई वैक्सीन के लिए ऑर्डर देने के बारे में जानकारी देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि बायोलॉजिकल-ई द्वारा अगस्त से लेकर दिसंबर तक टीके का निर्माण किया जाएगा और संभव है कि अगले कुछ महीनों में वह उपलब्ध हो जाए। सरकार ने कहा है कि बायोलॉजिकल-ई की वैक्सीन का पहले और दूसरे चरण का ट्रायल पूरा हो चुका है और तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। ट्रायल में अच्छे परिणाम आए हैं।
वैक्सीन संचालन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह द्वारा बायोलॉजिकल-ई वैक्सीन की मंजूरी के लिए सिफारिश की गई। सरकार ने यह भी कहा कि बायोलॉजिकल-ई के टीके के लिए बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा 100 करोड़ रुपये की सहायता दी गई।
भारत में फ़िलहाल सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और रूस की स्पुतनिक वी वैक्सीन उपलब्ध है। फाइजर और मॉडर्ना के टीकों के लिए बातचीत चल रही है। भारत की शीर्ष नियामक संस्था डीसीजीआई ने विदेशी कंपनियों के लिए लॉन्च के बाद ट्रायल और इसके साथ ही टीकों की गुणवत्ता और स्थिरता की परख की आवश्यकता को भी ख़त्म कर दिया है। हालाँकि, इसके लिए एक शर्त रहेगी कि उनके पास ख़ास देशों या स्वास्थ्य नियामकों से अनुमोदन होना चाहिए। इस फ़ैसले से कंपनियों के लिए भारत में अपने टीके लाना आसान हो जाएगा।
सरकार द्वारा ऐसी तेज़ी तब लाई गई है जब एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की कोरोना वैक्सीन नीति की तीखी आलोचना की है। इसमें तो इसने यह कह दिया है कि वह फाइल नोटिंग दिखाए। यानी सरकार के सिर्फ़ मौखिक जवाब से काम नहीं चलेगा।
यह आलोचना तब हो रही है जब देश में वैक्सीन की काफ़ी कमी हो गई है। कई राज्यों में कई टीकाकरण केंद्र बंद हो गए हैं।
सरकार पर इसमें लापरवाही बरतने के आरोप लगे हैं कि यदि टीके निर्माण पर पहले ध्यान दिया जाता, टीके तैयार करने में कंपनियों को आर्थिक मदद दी जाती और मंजूरी देने की प्रक्रिया को आसान किया जाता तो स्थिति अलग होती।
दिल्ली हाई कोर्ट ने भी ऐसे ही एक मामले में बेहद सख़्त टिप्पणी की है। इसने केंद्र सरकार से कहा है कि कुछ अधिकारियों पर 'मानवहत्या' का मुक़दमा चलना चाहिए क्योंकि वैक्सीन की कमी के कारण इतनी ज़्यादा मौतें हो रही हैं। कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा कि यदि समय पर वैक्सीन लगाई जाती तो कितने लोगों की ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती थीं। कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब देश की एक कंपनी को वैक्सीन निर्माण के लिए मंजूरी में देरी होने की शिकायत की गई। कोर्ट ने कहा कि देश में इतनी क्षमता है जिसका इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन कुछ अधिकारी उस पर कुंडली मार बैठे हैं।
अब सरकार ने कहा दिया है कि इस साल के आख़िर तक देश की पूरी आबादी को टीका लगा दिया जाएगा। यह स्वास्थ्य मंत्रालय के उस आँकड़े के आधार पर कहा गया जिसमें इसने कहा कि इस साल अगस्त-दिसंबर तक 210 करोड़ टीके उपलब्ध होंगे। इसके तहत कोविशील्ड की 75 करोड़, कोवैक्सीन की 55 करोड़, बायो ई सब यूनिट वैक्सीन 30 करोड़, जायडस कैडिला डीएनए वैक्सीन 5 करोड़, सीरम इंस्टीट्यूट- नोवावैक्स की 20 करोड़, बीबी नेजल वैक्सीन 10 करोड़, जिनोवा वैक्सीन 6 करोड़ और स्पुतनिक की वैक्सीन 15.6 करोड़ उपलब्ध होगी। हालाँकि सरकार के इन दावों पर सवाल उठ रहे हैं कि ये कंपनियाँ इतनी वैक्सीन कैसे बना पाएँगी जब इनकी क्षमता इससे काफ़ी कम है।