अब सरकार ने आधिकारिक तौर पर मान लिया है कि इस साल सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर पिछले साल से बहुत नीचे रहेगा। इसका मतलब यह है कि सरकार अब औपचारिक रूप से यह मानती है कि अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ) ने कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत रहेगी। पिछले वित्तीय वर्ष में यह 6.8 प्रतिशत थी।
बजट पर पड़ेगा असर
यह ऐसे समय हो रहा है, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट बनाने में व्यस्त हैं। सरकार इस आधार पर यह दावा कर सकेगी कि बचे हुए समय में माँग और खपत बढ़ेगी, यानी वह यह दावा भी कर सकती है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है।
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर बीते तीन साल में लगातार गिरी है। भारत की जीडीपी वृद्धि दर जहाँ 2016 में 8 प्रतिशत थी, 2018 में गिर कर 6.8 प्रतिशत हो गई। लेकिन 2019 में यह 5 प्रतिशत तक पहुँच जाएगी।
ऐसा तब होगा जब सरकार की उम्मीदों के मुताबिक जीडीपी वृद्ध दर 5.25 प्रतिशत हो, ऐसा नहीं होने पर साल भर की वृद्धि दर और कम हो सकती है।
लोकलुभावन घोषणा
सवाल यह है कि क्या इससे वित्त मंत्री को यह छूट मिलेगी कि वह बजट में कुछ लोकलुभावन फ़ैसले करे क्या वे आयकर में कुछ छूट दे पाएँगाी, जैसा उन्होंने कई बार संकेत दिया है
इसी साल कॉरपोरेट जगत को सालाना 1.50 लाख करोड़ रुपए की छूट देने के बाद वित्त मंत्री पर दबाव पड़ने लगा था कि वे आम जनता के लिए भी कुछ करें। लेकिन बढ़ता वित्तीय घाटा उन्हें इसकी इजाज़त शायद न दे।
कच्चे तेल की कीमतों का असर
इसी समय एक बुरी ख़बर ईरान-अमेरिका संकट भी है। ईरानी जनरल की ड्रोन हमले में हत्या के बाद अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ चुकी है। यदि मध्य-पूर्व संकट बढ़ा तो यह कीमत और बढ़ सकती है। भारत अपनी तेल ज़रूरतों का 85 प्रतिशत आयात करता है। ऐसे में कीमत थोड़ी भी बढ़ गई तो देश का आयात बिल बहुत बढ़ जाएगा।इन स्थिति में यदि जीडीपी वृद्धि दर मनमाफ़िक नहीं हुई तो फिर वित्त मंत्री के लिए दिक्क़तें पैदा होंगी। उनकी एक और दिक्क़त यह भी है कि उनकी सरकार की प्राथमिकता में अर्थव्यवस्था है ही नहीं। उनकी सरकार ग़ैरज़रूरी मामलों में जानबूझ कर फँसती रहती है, आ बैल मुझे मार करती रहती है। ऐसे में उनके हाथ पहले से ही बँधे हैं।