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हरियाणा में नहीं होगा गोरखधंधा शब्द का प्रयोग, लेकिन क्यों?

हरियाणा में नहीं होगा गोरखधंधा शब्द का प्रयोग, लेकिन क्यों?

गोरखनाथ समुदाय के अनुयायी संत गोरखनाथ को अपना गुरू मानते हैं। इस समुदाय के लोग बुधवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिले थे और उनसे राज्य में इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की थी। 

हरियाणा सरकार ने कहा है कि अब से राज्य में गोरखधंधा शब्द का प्रयोग नहीं किया जाएगा। गोरखधंधा शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर ख़राब कामों के लिए होता है। 

बता दें कि गोरखनाथ समुदाय के अनुयायी संत गोरखनाथ को अपना गुरू मानते हैं। इस समुदाय के लोग बुधवार को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिले थे और उनसे राज्य में इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की थी। 

इन लोगों का कहना था कि इस शब्द के इस्तेमाल से संत गोरखनाथ के अनुयायियों की भावनाएं आहत होती हैं। इसके बाद राज्य सरकार ने इस शब्द का इस्तेमाल करने पर रोक लगाने का फ़ैसला लिया। सरकार ने कहा है कि किसी भी संदर्भ में इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। 

गोरखनाथ 11 वीं सदी के हिंदू संत थे और वे नाथ हिंदू मठ आंदोलन के संस्थापक थे। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में इस मठ का बहुत प्रभाव है और यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्तमान में इसके प्रमुख या पीठाधीश्वर हैं। 

कहां से आया गोरखधंधा शब्द?

वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने गोरखधंधा शब्द के बारे में बताया है कि गोरखपंथी साधुओं ने ही इस शब्द को इजाद किया था और इन साधुओं को नाथपंथी भी कहा जाता है। उनके मुताबिक़, इस शब्द का सही मतलब है- जटिल पहेली।

उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि गोरखधंधा वास्तव में एक खेल था, जिसे गोरखपंथी साधुओं ने ही शुरू किया था। इसमें एक साधु को एक बिल्ली के पालने से डोरी में बंधी कौड़ी को निकालना होता था लेकिन शर्त यह होती थी कि वह इस डोरी को न छुए। जो भी इसमें सफल हो जाता था, यह माना जाता था कि वह सभी प्रकार की मोह-माया से मुक्त हो चुका है। 

उन्होंने लिखा है कि बाद में कई साधु इस खेल में गड़बड़ी करने लगे जिससे इस शब्द को अपमानजनक तरीक़े से देखा जाने लगा। पांडे ने पूछा है कि आख़िर अचानक इस शब्द में उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्यमंत्री को क्या ख़राब लगने लगा है, जो कि वे इस पर रोक लगाना चाहते हैं। 

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