देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को आंतरिक जाँच समिति ने क्लीन चिट दे दी, जिस पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। पर सबसे पहला और अहम सवाल तो यह है कि क्या कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए बनी विशाखा गाइडलाइन्स का पालन हुआ
क्या है विशाखा गाइडलाइन्स
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन-उत्पीड़न रोकने के लिए साल 1997 में कुछ निर्देश जारी किए थे। इन निर्देशों को ही 'विशाखा गाइडलाइन्स' के रूप में जाना जाता है। इसे विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और भारत सरकार मामले के तौर पर भी जाना जाता है।इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन-उत्पीड़न, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15 और 21) का उल्लंघन हैं। इसके साथ ही इसके कुछ मामले स्वतंत्रता के अधिकार (19)(1)(जी) के उल्लंघन के तहत भी आते हैं।
विशाखा गाइडलाइन्स के तहत हर वह दफ़्तर जहाँ दस या उससे अधिक लोग काम करते हैं वहाँ एक अंदरुनी शिकायत समिति (इन्टर्नल कम्प्लेन्ट्स कमेटी) होती है, जिसकी अध्यक्ष महिला ही होती है।
इस समिति में नामित सदस्यों में से आधी महिला होनी चाहिए। इसके अलावा इसमें एक सदस्य यौन-हिंसा के मामलों पर काम करने वाली किसी एनजीओ की सदस्य होनी चाहिए।
कैसे बनी विशाखा गाइडलाइन्स
राजस्थान में जयपुर के पास भातेरी गांव में रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी इस पूरे मामले की केंद्र-बिंदु रहीं। वह राज्य सरकार की महिला विकास कार्यक्रम के तहत काम करती थीं। एक बाल-विवाह को रोकने की कोशिश के दौरान उनकी बड़ी जाति के कुछ लोगों से दुश्मनी हो गई। जिसके बाद बड़ी जाति के लोगों ने उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया।भंवरी देवी ने न्याय पाने के लिए इन लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया। लेकिन सेशन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया क्योंकि गांव पंचायत से लेकर पुलिस, डॉक्टर सभी ने भंवरी देवी की बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया।
रंजन गोगोई यौन उत्पीड़न मामले में एक महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया कि जब वह गोगोई के घर पर दफ़्तर के कामकाज से गई थीं, गोगोई ने उनका यौन उत्पीड़न किया। उन्होंने इसका विरोध किया, जिसके बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि इसके बाद उनके पति को परेशान किया गया।
क्या जाँच समिति विशाखा गाइडलाइन्स के अनुरूप थी
खुद रंजन गोगोई ने एस. ए. बोबडे को जाँच करने के लिए नियुक्त किया और आगे की कार्रवाई करने को कहा। बोबडे ने तीन सदस्यों की एक समिति बनाई, जिसमें उनके अलावा सुप्रीम कोर्ट की जज इंदिरा बनर्जी और एक दूसरे जज एन. वी. रमण थे।इसमें विशाखा गाइडलाइन्स की तीन सिफारिशों का उल्लंघन हुआ। दूसरा, आधे से अधिक महिला सदस्य नहीं थी, सिर्फ़ एक महिला सदस्य थी। तीसरा, बाहरी सदस्य यानी महिला उत्पीड़न रोकने के लिए काम कर रही किसी ग़ैर सरकारी संगठन की कोई सदस्य इस समिति में नहीं थी।
शिकायत करने वाली महिला ने विरोध करते हुए कहा था कि एन. वी. रमण गोगोई के मित्र हैं और उनके घर उनका आना जाना लगा रहता है। इसके बाद रमण खुद पद से हट गए। उनकी जगह इंदु मलहोत्रा को नियुक्त किया गया। इस तरह इस समिति में दो महिलाएँ हो गईं। पर समिति के प्रमुख पुरुष ही थी और इसमें बाहरी यानी किसी एनजीओ का कोई नहीं था। यानी, विशाखा गाइडलाइन्स के दो प्रावधानों का उल्लंघन अंत अंत तक होता रहा।