भारत चीन सीमा तनाव के बीच चीन एक तरफ़ तो भारत के साथ सैन्य और कूटनीतिक वार्ता की बात कर रहा है और दूसरी तरफ़ धमकी और नये सिरे से तनाव की बात भी कह रहा है। यानी दोतरफ़ा बातें! चीन के सरकारी मीडिया और सत्ताधारी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने अब एक नया राग छेड़ा है। दो दिन पहले ही 1962 से भी बुरे हाल होने की धमकी देने वाले इस अख़बार ने कहा है कि जुलाई में भारत में कोरोना बढ़ा तो सीमा पर भारत तनाव बढ़ा सकता है। चीन का यह कहना, सीधे-सीधे भारत पर उकसावे का आरोप मढ़ने जैसा है।
हालाँकि ग्लोबल टाइम्स ने लेख में भारत चीन सीमा तनाव को कम करने की बात से शुरुआत की है और कहा है कि दोनों पक्ष तनाव को कम करने के पक्ष में हैं। इसने लिखा है, 'चीनी विश्लेषकों ने कहा कि सैन्य और राजनयिक दोनों माध्यमों से चीन और भारत के बीच लगातार संवाद बताते हैं कि सीमा विवादों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के पास एक परिपक्व तंत्र है, जो 15 जून के टकराव के बाद तनाव को कम करने के लिए तैयार हैं।'
भारत चीन सीमा विवाद का हल बातचीत से निकालने की बात कहकर ग्लोबल टाइम्स फिर से तनाव बढ़ने की बात कहने लगता है। क्या यह अजीब नहीं है
चीन के सरकारी अख़बार ने कुछ विश्लेषकों के हवाले से लिखा है, 'यह संभव है कि भारत जुलाई में सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक परेशानी पैदा कर सकता है, क्योंकि इसने एक बार अपने वादों को तोड़ दिया है और ऐसा दूसरी बार भी कर सकता है।' हालाँकि इसने यह भी कहा है कि युद्ध की सरगर्मी की संभावना नहीं है, लेकिन चीनी सीमा सैनिकों को सबसे ख़राब स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।
जुलाई में संघर्ष बढ़ने को लेकर ग्लोबल टाइम्स ने अजीब तर्क दिया है। ग्लोबल टाइम्स ने शंघाई एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज के इंटरनेशनल रिलेशंस इंस्टिट्यूट के शोधकर्ता हू झियोंग के हवाले से लिखा है, 'भारत, जिसने COVID-19 और आर्थिक स्थिति से निपटने में सरकार की अक्षमता से घरेलू ध्यान हटाने की कोशिश की, ने अपने वादों को तोड़ दिया और पहली बैठक के 10 दिनों के बाद ही एकतरफ़ा मामले को भड़का दिया।'
अख़बार ने हू झियोंग के हवाले से लिखा, 'अगर जुलाई में भारत सरकार महामारी को नियंत्रित करने में विफल रहती है तो भारतीय पक्ष अगले महीने चीन-भारत सीमा क्षेत्रों में और अधिक परेशानी पैदा कर सकता है, इसके साथ ही नेपाल और पाकिस्तान सहित दूसरे देशों के साथ सीमा क्षेत्रों में भी तनाव पैदा कर सकता है।'
जैसा कि ग्लोबल टाइम्स सरकारी मीडिया है तो जो बातें चीनी सरकार खुलेआम नहीं कहती है, उसको वह इस मीडिया के माध्यम से प्रचारित करती है।
ग्लोबल टाइम्स ने जो दावे किए हैं कि भारत ने एकतरफ़ा मामले को भड़का दिया वह दरअसल, उलटा आरोप लगा रहा है। चीन ही वह देश है जिसने पहले मामले को उकसाया। चीन गलवान और पूरे लद्दाख क्षेत्र में पहले विवादित जगह की ओर बढ़ा और फिर भारत की सीमा में घुस आया। चीनी सैनिक भारते के पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 यानी PP14 और PP19 तक आ गए और गलवान घाटी पर दावे करने लगे। जब भारतीय जवानों ने उन्हें टोका तो झड़प हो गई।
15 जून को गलवान में उसी झड़प के दौरान निहत्थे भारतीय सैनिकों पर लोहे की रॉड, काँटेदार तार लगे डंडों से हमला किया गया। इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए। हालाँकि सूत्रों के अनुसार चीन के सैनिक भी हताहत हुए हैं लेकिन इस बारे में चीन खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है। भारत पर उकसावे का आरोप लगाने वाला ग्लोबल टाइम्स भी यह जानकारी नहीं दे पा रहा है कि आख़िर चीन के कितने सैनिक हताहत हुए। जहाँ से हर सूचना सरकार की मंजूरी के बिना नहीं निकलती है वहाँ का सरकारी मीडिया जब ऐसी दलीलें तो अजीब लगता है। चीनी अख़बार यह भी नहीं बता रहा है कि जब 6 जून को दोनों पक्षों के बीच सहमति बन गई थी कि PP14 और गलवान घाटी से चीनी सैनिक पीछे हटेंगे तो 15 जून को वे वहाँ क्यों रुके हुए थे। फिर उकसावे वाली कार्रवाई किसने की
बता दें कि दो दिन पहले ही ग्लोबल टाइम्स ने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। गलवान क्षेत्र में चीन की आक्रामकता पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात सैनिकों को स्थिति से निपटने की पूरी छूट दे दी गई है, कमांडर अपने स्तर पर फ़ैसले ले सकते हैं और उन्हें गोलाबारी शुरू करने के लिए असाधारण स्थिति का इंतज़ार करने की कोई ज़रूरत नहीं होगी।
इस पर ग्लोबल टाइम्स के मुख्य संपादक हू शीजिन ने एक लेख में कहा था कि 'यह भारत और चीन के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए किए जाने वाले उपायों पर किए गए क़रार का उल्लंघन है। किसी सेना ने गोली नहीं चलाई लेकिन यदि गोलियाँ चली होतीं तो तसवीर दूसरी हो सकती थी।’
लेकिन हू शीजिन यहीं नहीं रुके। उन्होंने भारत को धमकी दी और कहा था, 'मैं भारतीय राष्ट्रवादियों को चेतावनी दे दूँ, यदि आपके सैनिक निहत्थे चीनी सैनिकों को भी नहीं हरा सकते हैं तो बंदूक और दूसरे हथियारों के इस्तेमाल से भी आपको कोई मदद नहीं मिलेगी। इसकी वजह यह है कि चीन की सैन्य ताक़त भारत से बहुत अधिक और विकसित है।'