फ्रांस में राजनीतिक संकट गहरा गया है। दशकों बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकार गिर गई है और अब प्रधानमंत्री के सामने इस्तीफ़ा देने के अलावा कोई चारा नहीं है। फ्रांस के प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर के आज यानी गुरुवार को ही इस्तीफा देने की संभावना है। दक्षिणपंथी और वामपंथी सांसदों ने बुधवार को उनकी सरकार को गिराने के लिए मतदान किया। फ्रांस छह महीने में अपने दूसरे बड़े राजनीतिक संकट में फंस गया है।
इस्तीफ़ा देने के साथ ही बार्नियर एक ऐसे पीएम के तौर पर जाने जाएंगे जो आधुनिक फ्रांसीसी इतिहास में सबसे कम समय तक सेवा देने वाले प्रधानमंत्री होंगे। 1962 में जॉर्जेस पोम्पिडो के बाद से किसी भी फ्रांसीसी सरकार ने विश्वास मत नहीं खोया था। कट्टर वामपंथी और दक्षिणपंथी लोगों ने बार्नियर की सरकार को गिरा दिया। सरकार के ख़िलाफ़ इन लोगों में सबसे ज़्यादा ग़ुस्सा एक अलोकप्रिय बजट को लेकर था। मसौदा बजट में भारी घाटे को कम करने के लिए 60 बिलियन यूरो की बचत की मांग की गई थी। जाहिर है कि इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ता और विपक्ष ने इसी को मुद्दा बनाया।
प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने से यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अराजकता में फंस गई। ताज़ा संकट से उसके बजटीय और सामने मुँह बाए आर्थिक संकटों के बढ़ने का खतरा है।
हालाँकि, प्रधानमंत्री बार्नियर ने अपनी सरकार बचाने की भरसक कोशिश की और इसी के तहत उन्होंने मतदान से ठीक पहले राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने फ्रांस और उसके लोगों की गरिमा के साथ सेवा करना सम्मान की बात कही। वे सिर्फ दो महीने और 29 दिन ही पद पर रहे। उनके खिलाफ विश्वास मत के साथ अब उनको अपना और अपनी सरकार का इस्तीफा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को सौंपना होगा, जिससे उनकी अल्पमत सरकार का कार्यकाल 1958 से शुरू हुए फ्रांस के पांचवें गणराज्य में सबसे छोटा हो जाएगा।
बार्नियर के इस्तीफे से बजट को लेकर कई सप्ताह से चल रहे तनाव पर विराम लग जाएगा। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार इसके बारे में मरीन ले पेन की दक्षिणपंथी नेशनल रैली ने कहा था कि यह कामकाजी लोगों के लिए बहुत कठोर है। इससे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की स्थिति और भी कमजोर हो गई है। ग्रीष्मकालीन पेरिस ओलंपिक से पहले अचानक चुनाव कराने के दुर्भाग्यपूर्ण फैसले से मौजूदा संकट और बढ़ गया है।
मैक्रों के इस्तीफे की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनके पास 2027 तक का कार्यकाल है और उन्हें हटाया नहीं जा सकता। फिर भी, लंबे समय से चल रही राजनीतिक हार ने उनकी स्थिति कमजोर कर दी है।
फ्रांस में अब इस साल के अंत में स्थिर सरकार या 2025 के बजट के बिना रहने का जोखिम है। हालांकि संविधान विशेष उपायों की अनुमति देता है जिससे अमेरिकी शैली में सरकार के ठप पड़ने को टाला जा सकता है। फ्रांस की राजनीतिक उथल-पुथल यूरोपीय संघ को और कमजोर कर देगी। यह पहले से ही जर्मनी की गठबंधन सरकार के पतन से जूझ रहा है और वह भी अमेरिका में राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में लौटने से कुछ हफ़्ते पहले। रॉयटर्स ने बुधवार को बताया कि ट्रम्प शनिवार को पुनर्निर्मित नोट्रे डेम कैथेड्रल के अनावरण के लिए पेरिस का दौरा करेंगे और मैक्रों उससे पहले प्रधानमंत्री का नाम तय करना चाहते हैं।
फ्रांस अब गहरी राजनीतिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। यह अनिश्चितता पहले से ही फ्रांसीसी सॉवरेन बॉन्ड और शेयरों में निवेशकों को परेशान कर रही है। इस सप्ताह की शुरुआत में फ्रांस की उधारी लागत ग्रीस से थोड़ी अधिक थी, जिसे आम तौर पर कहीं अधिक जोखिम भरा माना जाता है।
बता दें कि मिशेल बार्नियर की सरकार 331 सांसदों द्वारा उनके ख़िलाफ़ मतदान करने के बाद गिर गई। 577 सदस्यों वाले सदन में अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए केवल 288 वोटों की आवश्यकता थी। 1962 में जॉर्जेस पोम्पिडो की सरकार की हार के बाद यह पहला सफल अविश्वास मत था।
फ्रांस में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नामित करते हैं। हालांकि, कानून निर्माता किसी भी समय अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उनके द्वारा चुने गए लोगों को अस्वीकार कर सकते हैं, जैसा कि बार्नियर के मामले में हुआ।