अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ एक अहम फ़ैसला सुनाया। कोर्ट ने द्वारका में होर्डिंग्स लगाने के लिए कथित तौर पर सरकारी पैसे के दुरुपयोग के मामले में उनके ख़िलाफ़ FIR दर्ज करने का आदेश दिया। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल ने पुलिस को दिल्ली प्रिवेंशन ऑफ डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 2007 की धारा 3 (संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की सजा) के तहत मामला दर्ज करने और अन्य संभावित अपराधों की जांच करने का निर्देश दिया। यह मामला एक बार फिर राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है, जिसमें सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कानूनी कार्रवाई है या राजनीतिक प्रतिशोध?
यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है, जब अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी पहले से ही कई कानूनी और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही है। पिछले साल शराब नीति घोटाले में उनकी गिरफ्तारी और जमानत के बाद अब यह नया मामला उनके लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। बीजेपी इसे आप की कथित भ्रष्ट नीतियों का सबूत बता सकती है। वहीं, आप इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई करार दे रही है। पार्टी के समर्थकों का कहना है कि 2019 का मामला अब उठाना सत्ताधारी दलों की साजिश है, ताकि केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके।
यह पूरा मामला शिव कुमार सक्सेना नाम के एक शख्स की शिकायत से शुरू हुआ। उन्होंने कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। सक्सेना ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल ने 2019 में द्वारका में बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगवाकर सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया। उनका दावा था कि ये होर्डिंग्स सरकारी खजाने से राजनीतिक प्रचार के लिए लगाए गए, जो गैरकानूनी है। सक्सेना ने इसकी जांच के लिए FIR की मांग की थी।
इससे पहले 15 सितंबर 2022 को द्वारका की एक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सक्सेना की अर्जी खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने रिवीजन याचिका दायर की। 21 जनवरी 2025 को रिवीजन कोर्ट ने मामले को फिर से मजिस्ट्रेट कोर्ट में भेजा और नए सिरे से फ़ैसले का निर्देश दिया। अब एसीजेएम नेहा मित्तल ने इस मामले में FIR का आदेश देते हुए जांच को ज़रूरी बताया।
2022 में द्वारका साउथ पुलिस स्टेशन के एसएचओ ने एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कहा गया कि 2019 की शिकायत के समय बताए गए स्थान पर अब (2022 में) कोई होर्डिंग्स नहीं मिले, इसलिए कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता। लेकिन एसीजेएम मित्तल ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि समय बीतने और प्रिंटिंग प्रेस की जानकारी न होने के कारण सबूत जुटाना असंभव है, यह कहना ग़लत है। कोर्ट ने जोर दिया कि वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के इस दौर में जांच को मौका दिए बिना इसे बेकार मान लेना ठीक नहीं है।
कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए। जज ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि एसएचओ की रिपोर्ट में इस पहलू पर कोई जानकारी नहीं दी गई कि शिकायत में बताए गए समय और स्थान पर होर्डिंग्स थे या नहीं।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि बार-बार निर्देशों के बावजूद पुलिस ने एक्शन टेकेन रिपोर्ट समय पर दाखिल नहीं की, जिसके चलते मामले में देरी हुई।
दिल्ली प्रिवेंशन ऑफ डिफेसमेंट ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के तहत संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या उसका दुरुपयोग करने की सजा में जुर्माना और कारावास दोनों शामिल हो सकते हैं। अगर जांच में यह साबित हो जाता है कि होर्डिंग्स के लिए सरकारी फंड का ग़लत इस्तेमाल हुआ, तो केजरीवाल के ख़िलाफ़ बड़ा मामला बन सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह मामला सिर्फ तकनीकी उल्लंघन है, या इसके पीछे गहरे राजनीतिक मक़सद हैं?
एक्स पर इस फ़ैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं। कुछ यूजर्स ने इसे केजरीवाल के खिलाफ साजिश बताया, तो कुछ ने कहा कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करने वालों को सजा मिलनी चाहिए।
राउज एवेन्यू कोर्ट का यह फैसला अरविंद केजरीवाल के लिए कानूनी और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर चुनौती पेश करता है। एफ़आईआर दर्ज होने के बाद जांच क्या दिशा लेती है, यह देखना बाक़ी है। अगर सबूत मिलते हैं तो यह आप के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, अगर यह मामला कमजोर साबित हुआ, तो विपक्ष पर राजनीतिक दुरुपयोग का आरोप और मज़बूत होगा। इस मामले की असली सच्चाई जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन तब तक यह दिल्ली की सियासत में हलचल मचाए रखेगा।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)