सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) के कामकाज की देखरेख के लिए बनाई गई प्रशासकों की समिति यानी सीओए को भंग कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ही पिछले साल इस समिति को बनाने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि एआईएफएफ के प्रबंधन के हर दिन के काम की देखरेख कार्यवाहक महासचिव के नेतृत्व वाले एआईएफएफ के प्रशासन के द्वारा की जाए। बता दें कि शीर्ष फुटबॉल संस्था फीफा ने 15 अगस्त को एआईएफएफ पर बैन लगा दिया था और इसके पीछे किसी तीसरे पक्ष के दखल का हवाला दिया था।
फीफा ने एआईएफएफ पर फीफा के कानूनों के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया था। फीफा ने यह भी कहा था कि इस साल अक्टूबर में होने वाला अंडर 17 महिला विश्व कप तय कार्यक्रम के अनुसार नहीं हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस मौखिक आदेश से यह पता चलता है कि शीर्ष अदालत और भारत सरकार यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अंडर 17 महिला विश्व कप तय समय पर हो।
अदालत ने एक सप्ताह का विस्तार देकर चुनाव प्रक्रिया में भी बदलाव किया है। केंद्र सरकार ने नामांकन प्रक्रिया में प्रस्तावित बदलावों के कारण 28 अगस्त को होने वाले एआईएफएफ के चुनावों को एक सप्ताह के लिए टालने का प्रस्ताव अदालत के सामने रखा था। चुनाव के लिए मतदाता सूची में सदस्य राज्य (35 + 1 सहयोगी) शामिल होंगे।
3 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एआईएफएफ के चुनाव कराने का आदेश दिया था। यह चुनाव सीओए के तत्वाधान में होने थे और इसमें 36 नामी खिलाड़ियों को मतदान करने का अधिकार दिया गया था। लेकिन फीफा इस बात के पक्ष में नहीं था कि व्यक्तिगत सदस्यों का किसी तरह का निर्वाचक मंडल बनाया जाए और उसने 15 अगस्त को एआईएफएफ को निलंबित कर दिया था।
एआईएफएफ ने सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रस्ताव रखा था कि मतदाता सूची में केवल एआईएफएफ के राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों के सदस्य संघों के प्रतिनिधि ही शामिल होने चाहिए और इसमें खिलाड़ियों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
फीफा के द्वारा बैन लगाए जाने के बाद सीओए के वकील गोपाल शंकर नारायण ने फीफा पर सवाल उठाया था और कहा था कि भारत को किसी के भी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एआईएफएफ का निलंबन पूरे देश और सभी फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए घातक कदम है।