जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला को जन सुरक्षा क़ानून के तहत 12 दिन के लिए हिरासत में लेने का आदेश जारी किया है। रिपोर्टों में कहा गया है कि हिरासत को तीन महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। नया आदेश क्यों जारी किया गया जब उनको पहले से ही नज़रबंद किया गया था क्या उनकी नज़रबंदी काफ़ी नहीं थी या वह नज़रबंद ही नहीं किए गए थे हालाँकि डॉ. अब्दुल्ला की नज़रबंदी को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में उनके नज़रबंद होने की ख़बरें आती रही हैं और ख़ुद अब्दुल्ला ने भी नज़रबंद किए जाने का दावा किया था। अब यदि उनकी नज़रबंदी नहीं की गई थी तो क्या यह संभव है कि घाटी के छोटे से लेकर बड़े नेताओं तक को नज़रबंद या गिरफ़्तार किया गया है तो डॉ. अब्दुल्ला को सरकार ने छोड़ दिया हो
जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग का यह आदेश फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी को लेकर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ऐन पहले ही जारी किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस भी जारी किया है। सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले डॉ. अब्दुल्ला को हिरासत में लेने का आदेश क्यों जारी किया गया क्या इन सवालों का जवाब सरकार दे रही है
डॉ. अब्दुल्ला की नज़रबंदी के बारे में तब भी सवाल उठे थे जब इस पर संसद में भी हंगामा मचा था। पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 में फेरबदल किए जाने के बाद 6 अगस्त को सवालों के जवाब में संसद में अमित शाह ने दावा किया था कि अब्दुल्ला को न तो हिरासत में लिया गया है और न ही गिरफ्तार किया गया और वह अपनी मर्ज़ी से घर में हैं। उन्होंने कहा था, 'अब्दुल्ला को संसद में आना चाहिए, क्या कोई उनकी कनपटी पर बंदूक तानकर उन्हें संसद में ले आएगा' कई सांसदों ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पर चर्चा के दौरान अब्दुल्ला के ठिकानों को जानने की माँग की थी जिसके बाद अमित शाह ने यह बयान दिया। इसके बाद सांसदों ने अमित शाह के बयान की आलोचना की थी।
अमित शाह के बयान के बाद डॉ. अब्दुल्ला ने उसी दिन यानी छह अगस्त को टीवी चैनलों को एक साक्षात्कार दिया कि शाह झूठ बोल रहे हैं और उन्हें घर में नज़रबंद कर दिया गया था। इस इंटरव्यू के कुछ घंटे बाद ही उनके निवास पर तैनात सुरक्षा अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था।
नज़रबंदी के मामले में भले ही अभी तक कोई औपचारिक आदेश नहीं हैं, लेकिन 4 अगस्त की रात से ही हज़ारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को या तो नज़रबंद कर लिया गया था या उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था। माना जाता है कि डॉ. अब्दुल्ला को भी नज़रबंद किया गया था। कई ऐसी मीडिया रिपोर्टें आती रहीं कि अब्दुल्ला को नज़रबंद किया गया है।
अब्दुल्ला की नज़रबंदी पर केंद्र को नोटिस
फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की। एमडीएमके के संस्थापक वाइको की इस याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने केंद्र को 30 सितंबर तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। वाइको की याचिका में कहा गया है कि अब्दुल्ला उनके निमंत्रण पर 15 सितंबर को चेन्नई में होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरई के 111वीं जन्मशताब्दी समारोह में शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे लेकिन जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के फ़ैसले के बाद से उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है। इसी मामले में कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया है।
जम्मू-कश्मीर में अभी भी स्थिति सामान्य नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ही केंद्र सरकार को सामान्य स्थिति बहाल करने का आदेश दिया है। कई क्षेत्रों में अभी भी पाबंदियाँ हैं। भारी संख्या में सशस्त्र बल तैनात हैं। कई क्षेत्रों में संचार सुविधाएँ बहाल नहीं हो पाई हैं। बड़ी संख्या में गिरफ़्तार कर लोगों को दूसरे राज्यों की जेलों में भेजा गया है। जिन नेताओं को नज़रबंद रखा गया है उनमें से किसी को अभी तक छोड़ा नहीं गया है। ऐसे में डॉ. अब्दुल्ला पर क्या सरकार के नये आदेश से कई सवाल खड़े होते हैं।