प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने के एलान के बाद देश भर के किसानों में ख़ुशी की लहर है। कई जगहों पर जश्न के साथ ही नारेबाज़ी की जा रही है। इस बीच, शनिवार को पंजाब के 32 किसान संगठन बैठक कर आगे की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। इसमें सरकार के एलान के बाद आगे क्या क़दम उठाया जाए, इस पर चर्चा की जा रही है।
हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा और किसान उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार एमएसपी के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करे। इन मुद्दों में किसानों पर दर्ज किए गए मुक़दमों सहित खेती-किसानी से जुड़े और बिल भी शामिल हैं।
झुकना पड़ा सरकार को
लंबे वक़्त तक सरकार भी अड़ी रही लेकिन जिस तरह पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के किसानों ने दिल्ली के बॉर्डर्स पर मज़बूती से खूंटा गाड़ दिया था उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लगने लगा था कि उन्हें किसानों की मांग माननी ही पड़ेगी।
राजनीतिक दलों ने बनाया था दबाव।
किसानों ने बार-बार कहा था कि वे उनकी मांग माने बिना बॉर्डर्स से नहीं हिलेंगे। कई राज्यों के किसानों का समर्थन इस आंदोलन को मिलने और विपक्षी दलों के नेताओं के साथ आने के बाद दिल्ली की हुक़ूमत की मुश्किलें बढ़ गई थीं।
लेकिन मुंह सामने खड़े पांच राज्यों के चुनाव और इसमें संभावित राजनीतिक नुक़सान को देखते हुए बीजेपी और मोदी सरकार को ये फ़ैसला लेना पड़ा। इस दौरान विपक्ष और किसानों ने सरकार पर जबरदस्त दबाव बना दिया था।
बीजेपी को इस बात का डर था कि किसान आंदोलन के कारण उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव में बड़ा सियासी घाटा हो सकता है। शायद इसीलिए संगठन की सलाह पर मोदी सरकार ने यह क़दम उठा लिया।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि किसानों का एक वर्ग लगातार कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहा था, इसे देखते हुए ही सरकार इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देगी। बता दें कि 29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू हो रहा है।