एनकाउंटरः मुंबई से शुरुआत, अब राजनीतिक हथियार
नाना पाटेकर अभिनीत फिल्म ‘अब तक छप्पन’ लगभग सबने देखी होगी। यह फिल्म मुंबई के मशहूर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ‘दया नायक’ की कहानी पर आधारित है। एक दौर था जब मुंबई माफियाओं की नगरी हुआ करती थी, और ये माफिया कोई छोटे-लोकल गली के गुंडे भर नहीं थे। कहते हैं कि एक दौर में इनके कहे बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था।
वॉलिबुड से लेकर बिजनेस तक सबकुछ इनके इशारों पर चलता था। नेता, राजनीतिक दल, और सरकारें इनको फाएदे के लिए हमेशा से संरक्षण देती रही हैं। सो मुंबई में भी कुछ नया नहीं हो रहा था। लेकिन एक दिन तो ऐसा आता ही है,जब अपने भस्मासुर पैदा करने वाले को ही चुनौती देने लगता है। मुंबई के माफिया भी यही करने लगे। ऐसे मामलों में सरकारों के पास इससे निपटने के लिए एक ही तरीका होता है, ऐसे लोगों को खत्म करना। महाराष्ट्र की सरकार ने भी यही किया।
माफियाओं से निपटने के लिए उनके ही तरीके अपनाकर उनको निपटाना। मुबंई में यहीं से शुरु हुआ एनकाउंटर का खेल, और इसके शुरुआती नायक बने दया नायक, जिसके बारे मे कहा जाता है कि उसने 80 से ज्यादा एनकाउंटर किये। और यहीं से शुरुआत होती है देशभर में ‘एनकाउंटर जस्टिस’ की, जो इस समय उत्तर प्रदेश की सरकार का फेवरेट पॉलिसी बना हुआ है।
उत्तर प्रदेश राजनीति के अलावा अपराध का गढ़ हमेशा से रहा है। और तीन-चार दशक की राजनीति को गौर से देखें तो अपराध पर नियंत्रण हमेशा से एक मुद्दा रहा है। लेकिन राज्य द्वारा एनकाउंटर जैसी नीति को अपनाने की शुरुआत हुई वीपी सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्होंने अपराधियों को खत्म करने के लिए एनकाउंटर का सहारा लिया। वीपी सिंह के लिए इसकी शुरुआत की वजह भी निजि थी, क्योंकि उनके भाई की हत्या कर दी गई थी। महाराष्ट्र के मुंबई में उस समय अपराध चरम पर था, और अपराधी वहां से भागकर यूपी जैसी जगहों पर ही पनाह पाते थे।
वीपी सिंह के समय शुरु हुई एनकाउंटर नीति अपने चरम पर पहुंची मायावती के कार्यकाल में, जो लॉ एंड ऑर्डर के मामले में सख्त प्रशासक मानी जाती रही हैं। बुंदेलखंड के इलाके में सक्रिय डाकुओं को खत्म करने में मायावती की बड़ी भूमिका रही जब उन्होंने ददुआ, ठोकिया जैसे बड़े डकैतों को खत्म किया। बुंदेलखंड और चंबल डकैतों के बड़े ठिकाने के तौर पर जाने जाते रहे हैं, फिलहाल यहां शांति है। मायावती के समय केवल डकैतों पर ही नहीं वरन दूसरे बाहुवलियों पर लगाम लगाई गई, और इसके लिए हर तरीका अपनाया गया। राजा भैया जैसे बाहुबलियों को जेल की हवा खानी पड़ी।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार आने के बाद इस तरह के एनकाउंटर लगातार हो रहे हैं। हालिया मामला है प्रयागराज के अतीक अहमद का। अतीक और उसके सहयोगियों पर आरोप है कि उसने करीब दो दशक पहले हुए एक और हत्याकांड के गवाह को दिनदहाड़े सरेबाजार गोलियों से भून दिया।
उत्तर प्रदेश पुलिस अब इस मामले में कार्रवाई कर रही है। बीते दस दिनों में दो एनकाउंटर कर चुकी है। उत्तर प्रदेश में हो रहे ये एनकाउंटर केवल पुलिसिया कार्रवाई नहीं है। प्रदेश की योगी सरकार लगातार इसको लेकर मुखर रही है। मुख्यमंत्री सदन में इसको लेकर अपनी रुख साफ कर चुके हैं कि अपराधियों से निपटने के लिए सख्त कार्रवाई की जाएगी। उनकी सख्त कार्रवाई एनकाउंटर पर जाकर खत्म होती है। इससे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने जुलाई 2020 में कानपुर के एक माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर किया था। जिसको लेकर सरकार की काफी आलोचना हुई थी।
मार्च 2017 में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने, तबसे लेकर प्रदेश में अपराधियों और पुलिस के बीच 10 हजार से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी है। इसमें 4710 अपराधी घायल हुए और 172 अपराधी मारे गये।
मार्च 2017 में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने, तबसे लेकर प्रदेश में अपराधियों और पुलिस के बीच 10 हजार से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी है। इसमें 4710 अपराधी घायल हुए और 172 अपराधी मारे गये। यह आंकड़े बेहद भयावह और डराने वाले हैं। क्योंकि सरकार और पुलिस जिन्हें अपराधी मानकर एनकाउंटर कर चुकी है उस हिसाब से प्रदेश अपराध मुक्त हो जाना चाहिए था। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। इसके अलावा प्रदेश के कुछ बड़े अपराधी तो सत्ता का संरक्षण पाकर बाहर घूम रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार और पुलिस की नजर में माफिया और अपराधी कौन है? क्योंकि सरकार के निशाने पर ऐसे माफिया ज्यादा हैं जो धर्म से विशेष से ताल्लुक रखते हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ही इस नीति पर चल रही हो। दूसरे प्रदेशों में जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां इस तरह की नीतियों का पालन किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के बाद जो राज्य इस मामले में सबसे मुखर हैं वह असम, जहां के मुख्यमंत्री हिंमत बिस्वा सर्मा इस नीति को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके कार्यकाल के शुरुआती दो महीनों में ही 34 से ज्यादा एनकाउंटर हो चुके थे। जबकि उनकी ही पार्टी की सरकार के मुखिया रहे सर्वानंद सोनेवाल के कार्यकाल में एक भी एनकाउंटर नहीं हुआ था। इसलिए हिंमत विस्वा सर्मा पर योगी आदित्यनाथ के नक्शेकदम पर चलने का भी आरोप लग रहा है।
योगी के नक्शेकदम पर चलने का आरोप मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भी लग रहा है जिन्होंने आरोपियों पर कार्रवाई के लिए बुलडोजर नीति और संपत्ति जब्त करने के तरीके को अपनाया हुआ है।
एक समस्या को खत्म करने के लिए शुरु हुआ एक तरीका अब लोगों को खुश करने की नीति बन गया है क्योंकि इसमें लोगों एक्शन होते दिख रहा है, बिना ये जाने की इसका शिकार कौन है।