ग़ैर-कांग्रेस ग़ैर-बीजेपी मोर्चे के गठन में रुकावटें आ रही हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने तीसरा मोर्चा बनाने की दिशा में सक्रिय के चंद्रशेखर राव से बुधवार को मुलाक़ात नहीं की। राव दिल्ली में हैं। यादव ने उनसे मुलाक़ात को यह कह कर टाल दिया कि वे तेलंगाना के मुख्यमंत्री से 6 जनवरी के बाद मिलेंगे।
पहले यह तय हुआ था कि लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव के घर पर दोनों नेताओं की मुलाक़ात होगी। अखिलेश यादव ने तीसरे मोर्चे के गठन की कोशिश करने के लिए राव की तारीफ़ की, पर यह भी कहा कि वे उनसे बाद में मिलेंगे। यादव यह कह चुके हैं कि समाजवादी पार्टी के बग़ैर किसी ग़ैर बीजेपी गठबंधन का निर्माण नहीं हो सकता।
माया की बेरुखी
बहुजन समाज पाार्टी की प्रमुख मायावती का भी यही रुख रहा। हालांकि वे दिल्ली में ही थीं, पर उन्होंने केसीआर से मुलाक़ात का समय तय नहीं किया। सपा और बसपा मिल कर काम कर रहे हैं। समझा जाता है कि वे कम से कम अगले आम चुनाव तक एक साथ ही रहेंगे और उनका फ़ैसला साझा होगा। यह इससे भी समझा जा सकता है कि हाल के विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने पर दोनों नेता उनके शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गए। मायावती ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बाहर से समर्थन देने का एलान तो कर दिया, पर वे ख़ुद शपथ ग्रहण से दूर रहीं।
दिल्ली में मौजृूद रह कर भी मायावती ने केसीआर को मिलने का समय नहीं दिया
कांग्रेस पर तंज
इन दोनों की नेताओं की रणनीति इससे समझी जा सकती है कि अखिलेश ने मामूली मुद्दे पर कांग्रेस से दूरी बनाने की बात कही है।
अखिलेश यादव ने यह संकेत दिया है कि वे मध्य प्रदेश में अपने इकलौते विधायक को सरकार में शामिल नहीं किए जाने से ख़फ़ा हैं। उन्होंने कहा, हमारे विधायक को सरकार में शामिल नहीं कर सरकार ने हमें सही संकेत दे दिया। उनकी बातों तंज साफ़ झलक रहा था। उन्होंने कहा, 'अभी हमने कांग्रेस को धन्यवाद किया कि उन्होंने हमारे विधायक को मध्य प्रदेश में हमारे जीते हुए एक विधायक को मंत्री नहीं बनाया। उन्होंने भी रास्ता साफ़ कर दिया।'
अखिलेश ने बीजेपी पर भी व्यंग्य किया। उन्होंने कहा, 'अभी हमने बीजेपी को धन्यवाद किया कि उन्होंने हमे बैकवर्ड बना दिया। हमारा रास्ता साफ़ कर दिया।'
समझा जाता है कि इस सपा नेता ने अपनी पार्टी को कांग्रेस और बीजेपी दोनों से ही दूर रखने का फ़ैसला कर लिया है। एक विधआयक को सरकार में शामिल नहीं करने के मुद्दे पर गठजोड़ का नहीं बनना कुछ समझ में नहीं आने वाली बात है। इसी तरह बीजेपी पर बैकवर्ड बनाने का आरोप भी अजीब है। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि दोनो ने ही केसीआर से मुलाक़ात नहीं की।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के बग़ैर किसी मोर्चे का कोई मतलब नहीं है। यह जानते हुए अखिलेश यादव और मायावती अपने सारे विकल्प खुले रखना चाहती हैं। यह तो साफ़ है कि दोनों एक साथ ही किसी मोर्चे में जाएंगे।
ममता-नवीन से मुलाक़ात
के चंद्रशेखर राव ने इसके पहले सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और रविवार को ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी मुलाक़ात की थी।
राव के विरोधी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने की कोशिश में हैं। लेकिन राव एक ऐसा मोर्चा बनाना चाहते हैं जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ही दूरी बनाए रखे।
'तीसरे मोर्चे की संभावना नहीं'
राव ने बुधवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात कर तेलंगाना से जुड़ी कुछ माँगें उनके सामने रखीं। पर नायडू ने तंज करते हुए पूछा कि क्या चंद्रशेखर राव ने मोदी को तीसरा मोर्चा बनाने के बारे में जानकारी दी।
कुछ महीने पहले तक नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल तेलगु देशम पार्टी के नेता चंद्र बाबू नायडू का साफ़ मानना है कि तीसरे मोर्चे की फ़िलहाल कोई गुंजाइश ही नहीं है। या तो आप कांग्रेस के मोर्चे में होंगे या उसके विरोधी बीजेपी के मोर्चे में।
नायडू ने फ़ेडरल फ़्रंट को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि तीसरा मोर्चा नहीं बन सकता। दो ही मोर्चे हो सकते हैं, कांग्रेस की अगुआई वाला मोर्चा और उसके ख़िलाफ़ बीजेपी के नेतृत्व में बनने वाला मोर्चा। उन्होंने राव से कहा कि वे अपना रवैया साफ़ करें, वे बताएं कि कांग्रेस के साथ हैं या बीजेपी के साथ।
तेलगु देशम पार्टी मोदी सरकार में शामिल थी, पर यह आज बेजपी के एकदम ख़िलाफ़ है।
कांग्रेस ने अतीत में कसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति को 'बीजेपी की बी टीम' क़रार दिया। उसी तरह बीजेपी ने इस दल को 'कांग्रेस की बी टीम' बताया था। कुछ दिन पहले तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव में केसीआर ने कांग्रेस पर ज़बरदस्त हमला बोला था और इसके अध्यक्ष राहुल गाँधी पर निजी हमले से भी बाज नहीं आए थे। चुनाव के तुरंत बाद बीजेपी ने कहा था कि यदि केसीआर असदउद्दीन के एआईएमआईएम का साथ न ले तो वह उसकी सरकार को समर्थन कर सकती है। इसकी नौबत नहीं आई क्योंकि टीआरएस को अपने बूते दो तिहाई बहुमत मिल गया। पर इससे यह तो साफ़ हो गया कि टीआरएस का रुझान किस ओर है।
अखिलेश यादव केसीआर से 6 जनवरी के बाद ही मिलेंगे। उसमें ज़्यादा समय भी नहीं बचा है। यह तो साफ़ है कि सपा-बसपा की उपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि वे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बड़ी सियासी ताक़ते हैं। पर उनका रुख क्या होगा, यह अभी भी साफ़ नहीं है। वे शायद सभी विकल्प खुले रखना चाहती हैं ताकि समय आने पर अपने समर्थन की ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत वसूल सकें।