दिल्ली के पत्रकारों ने राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय और दूसरे पत्रकारों पर 26 जनवरी को हुई ट्रैक्टर परेड की कवरेज को लेकर दर्ज कराई गई एफ़आईआर को निष्पक्ष भारतीय मीडिया का मुँह बंद करने की कोशिश बताया है।
प्रेस क्लब में हुई इस बैठक में इस कार्रवाई की ज़ोरदार शब्दों में निंदा करते हुए इसे प्रेस की आज़ादी पर हमला बताया गया। पत्रकारों ने इस मामले को तुरन्त वापस लेने की माँग भी की।
'मीडिया पर हमला'
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और प्रेस क्लब ने मिल कर यह कार्यक्रम रखा था। इसमें प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वीमन्स प्रेस कोर और दिल्ली पत्रकार यूनियन के लोगों ने भी भाग लिया।
गिल्ड ने कहा कि छह पत्रकारों के ऊपर दो दिनों में तीन राज्यों में एफ़आईआर दर्ज कराई गईं। उसने यह भी कहा मीडिया को डराने-धमकाने और भारत में निष्पक्ष मीडिया की आवाज़ को दबाने के लिए ऐसा किया गया है।
क्या है मामला?
बता दें कि उत्तर प्रदेश के नोएडा में अर्पित मिश्रा नाम के शख्स ने सेक्टर 20 में एक मामला दर्ज कराया है। इस एफ़आईआर में सांसद शशि थरूर, न्यूज़ एंकर राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डेय, कौमी आवाज़ उर्दू के मुख्य संपादक जफर आगा, कारवाँ के मुख्य संपादक परेशनाथ, कारवाँ के संपादक अनंतनाथ, कारवाँ के कार्यकारी संपादक विनोद के जोस और एक अज्ञात के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है।
इनके ख़िलाफ़ आपराधिक धाराओं के साथ ही आईटी एक्ट में कार्रवाई की माँग की गई है।
एफ़आईआर में कहा गया है कि 'इन लोगों ने जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण, अपमानजनक, गुमराह करने वाले और उकसावे वाली ख़बर प्रसारित की।' राजदीप सरदेसाई पर आरोप लगाया गया है कि 'उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया कि आंदोलनकारी एक ट्रैक्टर चालक की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गई।'
इसके पहले एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान जारी कर पत्रकारों का बचाव करते हुए कहा था कि 26 जनवरी के विरोध प्रदर्शन के दिन घटना स्थल से प्रत्यक्षदर्शियों और पुलिस से कई तरह की खबरें मिल रही थीं। यह स्वाभाविक है कि पत्रकारों उन सभी बातों को रिपोर्ट करें। यह स्थापित पत्रकारीय तौर-तरीकों के अनुकूल है।
संपादकों की इस शीर्ष संस्था का कहना है कि पत्रकारों को निशाने पर लेना उन मूल्यों को कुचलना है जिनकी बुनियाद पर हमारा गणतंत्र टिका हुआ है। इसका मक़सद मीडिया को चोट पहुँचाना और भारतीय लोकतंत्र के निष्पक्ष प्रहरी के रूप में काम करने से उसे रोकना है।