देश की सुस्त अर्थव्यव्यवस्था का असर अब आम लोगों के खाने के प्लेट और सब्जी वाले के ठेले पर भी दिखने लगा है। भले ही वित्त मंत्री कहें कि अर्थव्यवस्था बिल्कुल ठीक है और इस पर संदेह करने वाले को प्रधानमंत्री 'पेशेवर निराशावादी' कहें, सच तो यह है कि इसका असर आम लोगों के खाने-पीने पर भी पड़ने लगा है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि साल भर में हर परिवार में किराना खरीद में औसत 5 किलोग्राम की कमी आई है। यानी साल भर पहले आम आदमी किराना का जितना सामान खरीदता था, आज उससे 5 किलो कम खरीद रहा है।
कम सामान खरीदा
उपभोक्ता वस्तुओं के बाज़ार पर नज़र रखने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी कैंटर वर्ल्डपैनल ने अपने अध्ययन में पाया है कि उपभोक्ता ज़्यादा बार बाज़ार गए, पर हर बार पहले से कम सामान खरीदा, क्योंकि वह आर्थिक मंदी की वजह से कम पैसे खर्च करना चाहता है।कंपनी के दक्षिण एशिया महानिदेशक के रामकृष्णन ने कहा अंग्रेज़ी अख़बार इकनॉमिक टाइम्स से कहा :
सितंबर 2018 तक साल भर में हर परिवार में औसतन 222 किलो किराना का सामान खरीदा गया था। पर इस साल सितंबर में हर परिवार औसतन 217 किलो सामान ही खरीदा गया। लेकिन, इस पर होने वाला खर्च 14,724 रुपये से बढ़ कर 15,015 रुपये हो गया।
इस दौरान ज़्यादातर कंपनियों ने कीमत बढ़ाए बग़ैर पैकेट में सामान की मात्रा बढा दी। पारले प्रोडक्ट्स के एक आला अफ़सर ने कहा कि उपभोक्ताओं ने बड़े पैकेट की जगह छोटे पैकेट खरीदना शुरू कर दिया, जिससे कुल मिला कर खरीदे गए सामान की मात्रा कम हो गई।
नेस्ले इंडिया के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक सुरेश नारायण ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा, ‘सरकार ने ईज ऑफ़ डुइंग बिज़नेस पर ध्यान दिया और कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर दी, लेकिन यदि उसे कुछ पैसे लोगों की जेब में भी डाले होते तो अर्थव्यवस्था के सुधरने की उम्मीद थी।’
खाने-पीने की चीजें महँगी
इसके पहले यह ख़बर आई थी कि खाने-पीने की चीजें काफ़ी महँगी हो गई हैं। 71 महीने में सबसे ज़्यादा। महँगाई को नियंत्रण में रखने का दंभ भरने वाली बीजेपी सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती है। जब सामान इतने महँगे हो जाएँ कि लोगों की जेबें खाली होने लगे तो सरकारों के सामने चिंताएँ मँडराने लगती हैं। फ़िलहाल जिस तरह के आर्थिक हालात हैं उसमें महँगाई का बढ़ना मोदी सरकार के लिए एक तरह से संकट से कम नहीं है।
खाने-पीने की चीजें महँगी होने की यह रिपोर्ट ख़ुद सरकार ने ही जारी की है। यह रिपोर्ट है महँगाई को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक की। खाने-पीने की चीजों में यह सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया है। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर है।
इसका साफ़ मतलब यह है कि थोक भाव में बिकने वाली खाने-पीने की चीजों की क़ीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। यह पिछले महीने से काफ़ी ज़्यादा है। अक्टूबर में यह सूचकांक 9.8 प्रतिशत पर था। पिछले हफ़्ते ही ख़ुदरा में भी खाने-पीने की चीजों की महँगी होने की रिपोर्ट आई थी जो 10.01 फ़ीसदी बढ़ गई है।
इसके पहले यह ख़बर भी आई थी कि ख़ुदरा में ख़रीदे जाने वाले सामान महंगे हो गए हैं। औद्योगिक उत्पादन में भी 3.8 फ़ीसदी की ज़बरदस्त गिरावट आई है।
नवंबर महीने में ख़ुदरा महंगाई दर अक्टूबर के 4.62 फ़ीसदी से बढ़कर 5.54 फ़ीसदी हो गई है। यह 2016 के बाद यानी तीन साल में सबसे ज़्यादा है। इनमें खाने की चीजों में प्याज की कीमतें सबसे ज़्यादा बढ़ी हैं। सितंबर महीने में इसमें जहाँ 45.3 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, वहीं अक्टूबर महीने में इसमें 19.6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई।