जबरन हिंदी थोपने के ख़िलाफ़ हमारा संघर्ष जारी रहेगा: स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र पर हिंदी 'थोपने' के प्रयास का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी डीएमके लोगों या राज्य पर भाषा को थोपने के किसी भी प्रयास का विरोध करना जारी रखेगी। स्टालिन चेन्नई में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
राज्य में पहले हिंदी विरोधी आंदोलन में मारे गए लोगों के सम्मान में बुधवार को एक 'भाषा शहीद दिवस' कार्यक्रम किया गया था और स्टालिन उसी जनसभा को संबोधित कर रहे थे। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'भाजपा सरकार जो केंद्र में शासन कर रही है, ने प्रशासन से लेकर शिक्षा तक- हिंदी को थोपने की प्रथा बना ली है- उन्हें लगता है कि वे हिंदी थोपने के लिए सत्ता में आई हैं।'
स्टालिन का यह बयान यूँ ही नहीं आया है। हिंदी को लेकर बार-बार विवाद होता रहा है। कई बार हिंदी को पूरे देश में ज़रूरी करने का प्रयास हुआ है या ऐसा करने की चर्चा की गई। पिछले साल अक्टूबर में स्टालिन ने इसको लेकर प्रधानमंत्री मोदी को ख़त लिखा था।
स्टालिन ने उस ख़त में प्रधानमंत्री से कहा था कि हाल में हिंदी को थोपे जाने का प्रयास अव्यवहारिक है और यह विभाजन को बढ़ावा देने वाला होगा। उनका यह बयान उस संदर्भ में आया था जिसमें केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए कथित तौर पर एक संसदीय समिति ने सिफारिश की थी। उस सिफारिश को स्टालिन ने हिंदी थोपे जाने के प्रयास के तौर पर देखा।
तब स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे ख़त में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति का ज़िक्र किया था। वैसे, अमित शाह ने पिछले साल की शुरुआत में भी हिंदी को लेकर ऐसा बयान दिया था कि विवाद हुआ था। अमित शाह ने 7 अप्रैल को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि सभी पूर्वोत्तर राज्य 10वीं कक्षा तक के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने पर सहमत हो गए हैं।
तब उत्तर पूर्व छात्र संगठन यानी एनईएसओ ने इस क्षेत्र में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के केंद्र के फ़ैसले पर नाराज़गी जताई थी।
अमित शाह ने पिछले साल 7 अप्रैल को एक बैठक में कहा था कि भारत के अलग-अलग राज्यों के लोगों को एक दूसरे के साथ हिंदी में बातचीत करनी चाहिए ना कि अंग्रेजी में।
अमित शाह ने संसदीय भाषा समिति की 37 वीं बैठक में कहा था, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा होनी चाहिए और इससे निश्चित रूप से हिंदी की अहमियत बढ़ेगी। अब वक़्त आ गया है कि राजभाषा को हमारे देश की एकता का अहम हिस्सा बनाया जाए।”
अमित शाह इससे पहले भी पूरे देश की एक भाषा हिंदी होने की बात कह चुके हैं और तब इसे लेकर देश के कई राज्यों में काफी विरोध हुआ था।
साल 2019 में अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा था कि आज देश को एकता के दौर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली हिंदी भाषा ही है।
बहरहाल, अब डीएमके अध्यक्ष स्टालिन ने 'भाषा शहीद दिवस' कार्यक्रम में आरोप लगाया कि एक राष्ट्र, एक धर्म, एक चुनाव, एक परीक्षा, एक भोजन, एक संस्कृति की तरह, वे एक भाषा के साथ अन्य संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, 'भाजपा सरकार बेशर्मी से हिंदी थोप रही है।' उन्होंने कहा कि तमिल की रक्षा के हमारे प्रयास हमेशा जारी रहेंगे।
अक्टूबर महीने में ही हिंदी 'थोपने' के ख़िलाफ़ तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया गया था। राज्य में एम के स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्ताधारी पार्टी डीएमके यह प्रस्ताव लेकर आई थी। हालाँकि, जब प्रस्ताव को पेश किया गया तो राज्य के बीजेपी विधायक विधानसभा से वाकआउट कर गए थे।
हिंदी थोपने के खिलाफ राज्य विधानसभा के अक्टूबर 2022 के प्रस्ताव को याद करते हुए स्टालिन ने कहा कि 2017-20 के बीच केंद्र ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए 643 करोड़ रुपये दिए। उन्होंने कहा कि तमिल के लिए आवंटन 23 करोड़ रुपये से थोड़ा कम था। मुख्यमंत्री ने कहा, 'हम किसी भी भाषा के दुश्मन नहीं हैं। कोई भी अपने हित में जितनी भाषाएं सीख सकता है। साथ ही, हम कुछ थोपने के किसी भी कदम का विरोध करेंगे।'
स्टालिन ने कहा कि कई हिंदी-विरोधी आंदोलनों के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सी एन अन्नादुरई तमिल और अंग्रेजी की दो-भाषा के फार्मूले को सुनिश्चित करने के लिए एक कानून ले आए थे। उन्होंने कहा कि इसी कारण राज्य के युवा दुनिया के कई हिस्सों में सफल रहे।