पश्चिम बंगाल में सुशांत बनाम रिया चक्रवर्ती के मुद्दे पर राजनीति गरमाने लगी है। प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने रिया को बंगाल की ब्राह्मण बेटी बता कर आग में घी डाल दिया है। अब तक यह मामला बंगाली उप-राष्ट्रवाद तक सीमित था। लेकिन अधीर ने इसमें ब्राह्मणवाद का तड़का भी लगा दिया है।
राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल सुशांत बनाम रिया के मामले को लेकर बीजेपी पर हमलावर हो गए हैं। बीजेपी ने बिहार में सुशांत के समर्थन में जो पोस्टर और स्टीकर जारी किए हैं, उसके बाद पश्चिम बंगाल में रिया के समर्थन में राजनीतिक आवाजें उठने लगी हैं। रिया चक्रवर्ती मूल रूप से राज्य के पुरुलिया जिले के बागमुंडी की रहने वाली हैं।
राज्य के तमाम दल इस मामले में पहले से ही बंगाली उप-राष्ट्रवाद के बहाने बीजेपी पर निशाना साधते रहे हैं। उनकी दलील है कि इस मामले से साफ है कि बीजेपी का निशाना बंगालियों पर है और वह बिहार चुनावों में इस मुद्दे को भुनाने का प्रयास कर रही है।
बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बंगाली उप-राष्ट्रवाद भी अहम मुद्दे के तौर पर उभर रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद कई बार इसका जिक्र कर चुकी हैं।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का आरोप है कि बीजेपी ने बिहार चुनावों से पहले सियासी फायदे के लिए सुशांत सिंह राजपूत को भारतीय अभिनेता से बिहारी अभिनेता बना दिया है। चौधरी ने कहा कि सुशांत के नाम पर पार्टी ने बिहार में जो पोस्टर और स्टीकर जारी किए हैं, इससे उसकी (बीजेपी की) मंशा साफ होती है।
सुशांत की मौत बिहार में भले ही चुनावी मुद्दा बने लेकिन बंगाल में रिया की बंगाली पहचान का मुद्दा अब तक उस तरीके से नहीं उभरा है। अधीर दरअसल रिया की बंगाली ब्राह्मण की पहचान का मुद्दा उठाने वाले पहले नेता हैं।
बंगाली महिलाओं के ख़िलाफ़ बेहूदी टिप्पणियां
इस मामले की शुरुआत में सोशल मीडिया पर बंगाली महिलाओं के ख़िलाफ़ टिप्पणियों की बाढ़ आ गई थी। उनमें इन महिलाओं को ‘काला जादू करने वाली’ और ‘सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को हलाल करने वाली’ जैसे विश्लेषणों से नवाजा गया था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस या बीजेपी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। अब बंगाली ब्राह्मण के मुद्दे पर भी ये दोनों दल, जिनको अगले साल के विधानसभा चुनावों में सत्ता का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है, खुल कर कोई टिप्पणी करने से बच रहे हैं।
हालांकि रिया की गिरफ्तारी के बाद राज्य में उसके पक्ष में आवाजें जरूर उठ रही हैं और सबके निशाने पर बीजेपी ही है। तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसके लिए उसे कठघरे में खड़ा किया है।
तृणमूल कांग्रेस, माकपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर आपसी मतभेद भुला कर बीजेपी पर हमले तेज कर दिए हैं। उनका आरोप है कि भगवा पार्टी बिहार चुनावों को ध्यान में रखते हुए बंगाली महिला को आसान लक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।
तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सौगत राय कहते हैं, “रिया के बंगाली होने की वजह से ही उसे अदालत में दोषी साबित होने से पहले ही दोषी करार दे दिया गया है। यह बंगालियों के प्रति बीजेपी की नफरत का सबूत है।”
माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, “अगर किसी ने अपराध किया है तो कानून अपना काम करेगा। लेकिन दोषी साबित होने से पहले पूरे बंगाली समाज के प्रति सोशल मीडिया पर तेज होने वाले अभियान बीजेपी की मंशा जाहिर करते हैं। बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन ही ऐसे अभियान का समर्थन कर रहे हैं।”
ममता के निशाने पर बीजेपी
बीते लोकसभा चुनावों में मिले झटके के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी खुद कई बार बंगाली उप-राष्ट्रवाद, अस्मिता का मुद्दा उठा चुकी हैं। उनके निशाने पर बीजेपी ही रही है। वह बीजेपी पर बंगाली पहचान, अस्मिता, संस्कृति और उप-राष्ट्रवाद का अपमान करने या उसकी उपेक्षा करने के आरोप लगाती रही हैं।
इस साल 21 जुलाई को अपनी सालाना शहीद रैली में ममता ने जब कहा था कि बंगाल का व्यक्ति ही बंगाल में राज करेगा, कोई गुजराती नहीं, तो उनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ही थे।
दरअसल, ममता बंगाली उप-राष्ट्रवाद के इस हथियार को नए तरीके से इस्तेमाल कर रही हैं जो उनसे पहले वाममोर्चा कर चुका है। वे बीजेपी को बंगाल विरोधी साबित करने की मुहिम चलाती रही हैं, वह चाहे एनआरसी का मुद्दा हो, ईश्वर चंद्र की प्रतिमा तोड़े जाने का या फिर नागरिकता संशोधन कानून का।
‘बिहारी बनाम बंगाली’
खासकर रिया की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी को छोड़ कर बंगाल के तमाम दल इस मुद्दे पर मुंह खोलने लगे हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी इस मुद्दे को बिहार चुनावों में भुनाने का प्रयास कर रही हैं और इसके लिए वह इसे ‘बिहारी बनाम बंगाली’ का रंग देने में जुटी है। लेकिन बीजेपी ने इन आरोपों पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है।
सती दाह का जिक्र
रिया की गिरफ्तारी के बाद तमाम प्रमुख बांग्ला अखबारों में इस मामले को काफी अहमियत मिल रही है। सबसे ज्यादा बिकने वाले बांग्ला अखबार आनंद बाजार पत्रिका ने भी पहले पेज पर छपी एक खबर में अर्थशास्त्री कौशिक बसु के ट्वीट के हवाले से कहा है कि रिया की गिरफ्तारी के बाद कुछ लोगों में वैसा ही उल्लास देखने को मिल रहा है जैसा पहले सती दाह के मुद्दे पर देखने को मिलता था। यानी रिया को परोक्ष रूप से शहीद बताने की कोशिशें भी चल रही हैं।
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सती दाह के मुद्दे पर उल्लास का जैसा जिक्र इतिहास की किताबों में पढ़ा था, रिया को सामूहिक रूप से अपराधी करार देने का मामला देख कर उसकी यादें ताजा हो गई हैं। आधुनिक भारत में यह एक मर्मांतक घटना है। यह कानून का नहीं बल्कि सामाजिक आचरण का सवाल है।
कौशिक बसु, अर्थशास्त्री
अब राज्य में आम राय बन रही है कि रिया को एक सोची-समझी रणनीति के तहत मीडिया ट्रायल के जरिए खलनायिका बना दिया गया है। लेकिन क्या अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यह असरदार मुद्दे के तौर पर उभरेगा राजनीतिक विश्लेषक ऐसा नहीं मानते।
एक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "सुशांत की मौत बिहार में भले चुनावी मुद्दे बने, बंगाल में इसका खास असर नहीं होगा। यहां बंगाली अस्मिता, संस्कृति और राष्ट्रवाद ही बीजेपी के ख़िलाफ़ तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख हथियार होंगे।"