सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया है कि वह धर्म संसद के मामले में हुई जांच को लेकर अदालत में स्टेटस रिपोर्ट जमा करे। हरिद्वार में बीते साल हुई धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी की गई थी और इसकी गूंज भारत के साथ ही दुनिया के कई मुल्कों में हुई थी।
इस मामले में पुलिस ने मुकदमा भी दर्ज किया था और डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद को गिरफ्तार किया था लेकिन बाद में उसे जमानत मिल गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के याचिकाकर्ताओं को इजाजत दी कि वे शिमला में प्रस्तावित ऐसी ही धर्म संसद के खिलाफ जिला अधिकारी के सामने शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अभय एस ओका ने यह आदेश जारी किया। इस मामले में पत्रकार कुर्बान अली, पटना हाई कोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने याचिका दायर की थी और धर्म संसद के आयोजकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी।
उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए अदालत से कुछ वक्त मांगा। उन्होंने अदालत को बताया कि राज्य की पुलिस धर्म संसद को लेकर 4 एफआईआर दर्ज कर चुकी है और इनमें से तीन एफआईआर में चार्जशीट भी जमा हो चुकी है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा, "शिमला में रविवार को ऐसी ही धर्म संसद प्रस्तावित है और आप देखिए कि क्या हो रहा है। मैं ऐसी बातों को पढ़ना भी नहीं चाहता जिसे लोगों के बीच में कहा गया है।"
अदालत ने कहा कि इस मामले में अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी। इससे पहले उत्तराखंड की सरकार को इस मामले में अपना जवाब अदालत के सामने जमा करना होगा।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने बीते साल सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया था। धर्म संसद के मामले में जमानत पर छूटने के बाद भी यति नरसिंहानंद सरस्वती ने हाल ही में दिल्ली में हुए कार्यक्रम में फिर से भड़काऊ बयानबाजी की। इस बयानबाजी को लेकर भी दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है।