सुभाष चोपड़ा बने दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष 

10:45 pm Oct 23, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

पूर्व विधायक सुभाष चोपड़ा को कांग्रेस ने दिल्ली इकाई का अध्यक्ष मनोनीत किया है और कीर्ति आजाद को प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। 

शीला दीक्षित के निधन के बाद से ही दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली चल रहा था। दिल्ली में जनवरी-फ़रवरी 2020 में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले बाक़ी दलों ने अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में कीर्ति आज़ाद भी थे लेकिन पार्टी ने उन्हें प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया है। 

15 साल तक दिल्ली में राज कर चुकी कांग्रेस अभी बेहद ख़राब दौर से गुजर रही है। वह 2013 और 2015 में विधानसभा चुनाव हार चुकी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में तो उसका खाता भी नहीं खुल सका था। इसी तरह, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को दिल्ली की सभी सातों सीटों पर हार मिली थी। 

लोकसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के बीच आम आदमी पार्टी से गठबंधन को लेकर ख़ासा विवाद हुआ था। तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन और चाको गठबंधन के पक्ष में थे जबकि शीला दीक्षित इसके ख़िलाफ़ थीं। अंतत: गठबंधन नहीं हुआ और दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला और उसने सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज की। 

चोपड़ा की नियुक्ति को जहां दिल्ली में पंजाबी वोटरों के प्रभाव से जोड़कर देखा जा रहा है जबकि  कीर्ति आज़ाद की नियुक्ति को पूर्वांचली समाज को लुभाने की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है। दिल्ली में एक करोड़ 43 लाख वोटर हैं और माना जाता है कि इनमें से क़रीब 50 लाख वोटर पूर्वांचल से संबंध रखते हैं। इसी तरह पंजाबी समाज का भी दिल्ली में काफ़ी प्रभाव है। 

पूर्वांचली वोटों के प्रभाव को देखते हुए ही आम आदमी पार्टी ने कुछ ही दिन पहले राज्यसभा सांसद संजय सिंह को दिल्ली का प्रभारी बनाया था और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी पूर्वांचली समाज से हैं। 

देखना होगा कि चोपड़ा और आज़ाद की नियुक्ति से क्या कांग्रेस दिल्ली में अपनी स्थिति को मजबूत कर पायेगी क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस गुटबाज़ी से बहुत परेशान है। गुटबाज़ी को थामने के लिए ही कांग्रेस आलाकमान ने जब शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था तो उनके साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिये थे। लेकिन गुटबाज़ी पर लगाम नहीं लग सकी। अगर कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता में वापसी करनी है तो आलाकमान को गुटबाज़ी पर लगाम लगानी ही होगी।