राजनीति में कहा जाता है कि जब जीत का सूख़ा ख़त्म करना हो तो राजनीतिक दल अपनी पूरी ताक़त झोंक देते हैं। यही काम दिल्ली में बीजेपी कर रही है। 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर बैठी बीजेपी ने इस बार दिल्ली को जीतने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है। दिल्ली में दो महीने के भीतर नई सरकार का गठन होना है और बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत अपने ब्रांड एबेंसडर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करवाकर बता दिया है कि वह जीत के सूखे को हर क़ीमत पर ख़त्म करना चाहती है।
बीजेपी की दिल्ली इकाई ने रविवार को दिल्ली में चुनावी रैली की। बीजेपी की ओर से यह रैली दिल्ली की 1731 अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 40 लाख से ज़्यादा लोगों को मालिकाना हक़ देने का क़ानून बनने पर आयोजित की गई थी। इन 40 लाख से ज़्यादा लोगों के वोट पर बीजेपी की नज़र है। दूसरी ओर दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी भी इन वोटरों को हाथ से नहीं निकलने देना चाहती। इसे लेकर इन दोनों में तगड़ी सियासी जोर-आज़माइश चल रही है।
क्या हैं अनधिकृत कॉलोनी
पहले आपको बताते हैं कि अनधिकृत कॉलोनियों कौन सी होती हैं। देश की राजधानी दिल्ली में आज़ादी के बाद से ही रोज़ी-रोज़गार, बेहतर शिक्षा, काम-धंधे की तलाश में भारत भर से लोग आए और यहीं के होकर रह गए। इससे दिल्ली का विस्तार तेजी से हुआ, बेहिसाब कॉलोनियां बनती गईं और लोग धड़ाधड़ इनमें आते गए। इन कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाओं जैसे अच्छी सड़कें, बिजली-पानी, सीवर, पार्क, कम्युनिटी सेंटर आदि की व्यवस्था नहीं हो पाई क्योंकि लोगों को सस्ती ज़मीन जहां मिली, वे वहीं बस गए। यही कारण है कि इन अनधिकृत कॉलोनियां का बड़ा हिस्सा स्लम बनकर रह गया है। कच्ची-पक्की ज़मीन पर ये कॉलोनियों बसती गईं और इनकी पक्की रजिस्ट्री नहीं हो सकी। इसी वजह से इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के पास अपनी ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं था।
अधिकृत करने को लेकर हुई राजनीति
दिल्ली की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग जानते हैं कि यहां हर विधानसभा चुनाव से पहले अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का मुद्दा उछाला जाता है। 2008 के विधानसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित सरकार ने इन कॉलोनियों को अधिकृत करने का मुद्दा जोर-शोर से उछाला था और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी के हाथों प्रोविजनल सर्टिफ़िकेट भी इन कॉलोनियों के लोगों को बँटवाए थे। लेकिन कुछ नहीं हुआ और ये कॉलोनियाँ नियमित नहीं हो पाईं।
इस बार बीजेपी की नज़र दिल्ली जीतने पर है और उसने इन वोटरों पर अपनी गिद्ध दृष्टि लगाई हुई है। इसलिए बीजेपी ने इन कॉलोनियों को नियमित करने के मुद्दे को उठाया और केंद्र में सरकार होने के कारण इन कालोनियों में रहने वाले लगभग नौ लाख परिवारों को संपत्ति का मालिकाना हक़ देने वाले राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र दिल्ली (अप्राधिकृत कॉलोनी निवासी सम्पत्ति अधिकार मान्यता) विधेयक 2019 को संसद से पारित करवा दिया।
मतदाताओं को रिझाने पर जोर
चुनावी रैली में मोदी का पूरा जोर अनधिकृत कॉलोनियों के मतदाताओं को रिझाने में रहा। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि दिल्ली के 40 लाख लोगों के जीवन में नया सवेरा लाने में मैं सफल रहा हूं।’ विपक्ष की ओर इशारा करते हुए मोदी ने कहा कि अनधिकृत कॉलोनियों की समस्या का स्थाई समाधान करने की नीयत इन लोगों ने कभी नहीं दिखाई।’ मोदी ने कहा कि कॉलोनियों के नियमितीकरण का फ़ैसला घर और ज़मीन के अधिकार से जुड़ा तो है ही, यह दिल्ली के कारोबार को भी गति देने वाला है। उन्होंने कहा कि 1700 से अधिक कॉलोनियों को चिह्नित करने का काम पूरा किया जा चुका है और 1200 से अधिक कॉलोनियों के नक्शे भी संबंधित पोर्टल पर डाले जा चुके हैं।
रैली को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
पानी के मुद्दे पर घेरा
प्रधानमंत्री ने कहा कि दिल्ली में पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता और राज्य सरकार इस मुद्दे पर सिर्फ़ राजनीति कर रही है। उन्होंने केजरीवाल सरकार की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘ये लोग कहते थे कि दिल्ली के हर घर में साफ़ पानी आता है। नल की टोंटी से पीने का पानी आता है। लेकिन सच क्या है, वह आप सभी जानते हैं। ये आप से झूठ बोलते हैं।’
प्रधानमंत्री ने केजरीवाल सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि दिल्ली मेट्रो के फेज-4 को लेकर अगर यहां की राज्य सरकार ने राजनीति नहीं की होती, बेवजह के अड़ंगे नहीं लगाए होते तो इसका काम भी काफी पहले शुरू हो गया होता।
क्यों अहम हैं इन कॉलोनियों के मतदाता
अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले 40 लाख से ज़्यादा मतदाताओं पर हर राजनीतिक दल की निगाह लगी रहती है। पौने दो करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में इन कॉलोनियों के मतदाताओं की संख्या इतनी है कि वे किसी भी दल के पक्ष में अगर एकतरफ़ा मतदान कर दें तो सरकार बना सकते हैं। कांग्रेस जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सत्ता में रही तो उसमें इन कॉलोनियों के मतदाताओं का विशेष योगदान माना जाता है।
2013 के विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस की दिल्ली की सत्ता से विदाई हुई तो इसके पीछे बड़ा कारण यह माना गया कि इन वोटों का एक बड़ा हिस्सा आम आदमी पार्टी के पाले में चला गया। ये कॉलोनियां दिल्ली के लगभग 60 विधानसभा क्षेत्रों में फैली हुई हैं और 30 से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां इन कॉलोनियों के मतदाता जीत-हार में सीधा दख़ल रखते हैं।
‘रजिस्ट्री कराओ, बहकाओ मत’
अनधिकृत कॉलोनियों के वोटों के दम पर दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के सपने देख रही बीजेपी के रास्ते में उसकी सियासी प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी खड़ी है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले जनता को बहकाने की कोशिश कर रही है और अगर चुनाव से पहले लोगों के हाथ में अपने घरों की रजिस्ट्री नहीं आएगी तो इस क़ानून से लोगों को कोई फ़ायदा नहीं मिलेगा। पार्टी का कहना है कि लोगों को क़ानून का जुमला नहीं बल्कि रजिस्ट्री चाहिए।
15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव और बीते दो लोकसभा चुनाव में बुरी तरह फ़्लॉप रही है। ऐसे में बीजेपी-आम आदमी पार्टी की जोरदार भिड़ंत में वह कितनी सीट जीत पाएगी, यह देखने वाली बात होगी।
मोदी ने रैली में नागरिकता क़ानून के मुद्दे पर भी अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को जमकर घेरा। रैली में प्रधानमंत्री का भाषण सुनने के बाद कहा जा सकता है कि बीजेपी का पूरा जोर दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों के मतदाताओं को वोटों पर कब्जा करने को लेकर है। 2013 के विधानसभा चुनाव में 32 सीटें जीतने वाली बीजेपी सरकार बनाने से चूक गयी थी और 2015 में तो आम आदमी पार्टी ने उसकी ज़मीन को ही ख़त्म कर दिया था। लेकिन इस बार नागरिकता क़ानून के अलावा अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा दिल्ली के चुनाव में बड़ा फ़ैक्टर साबित होगा, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके लिए उसे आम आदमी पार्टी से कड़ी टक्कर मिल रही है। इन कॉलोनियों के मतदाता किस ओर जाएंगे, यह इस चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू है। कुल मिलाकर दिल्ली की सर्दी के बीच भी राजधानी का सियासी तापमान बढ़ा हुआ रहेगा।