पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड में बुधवार 24 अप्रैल को अखबारों में एक बार फिर विज्ञापन देकर अपना माफीनामा छपवाया है।
भ्रामक विज्ञापन मामले में पतंजलि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि, बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण इसको लेकर पहले ही माफी मांग चुके हैं।
23 अप्रैल को इस मामले में हुई सुनवाई में भी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उनकी तरफ से देश के 67 अखबारों में विज्ञापन देकर माफी मांगी गई है।
पिछले माफीनामा वाले विज्ञापन के साइज से अब ज्यादा बड़े साइज के विज्ञापन में पतंजलि ने यह माफी मांगी है।
बुधवार को प्रकाशित विज्ञापन में पतंजलि, आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव ने माफी मांगते हुए कहा है कि, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण के संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों/आदेशों का पालन न करने अथवा अवज्ञा के लिए हम वैयक्तिक रूप से, साथ ही कंपनी की ओर से बिना शर्त क्षमायाची हैं।
हम विगत 22.11.2023 को बैठक/संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने के लिए भी क्षमाप्रार्थी हैं। हम अपने विज्ञापनों के प्रकाशन में हुई गलती के लिए भी ईमानदारी से क्षमा चाहते हैं और पूरे मन से प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं कि ऐसी त्रुटियों की पुनरावृति नहीं होगी।
हम पूरी सावधानी और अत्यंत निष्ठा के साथ माननीय न्यायालय के निर्देशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम न्यायालय की महिमा का सम्मान बनाए रखने और लागू कानूनों एवं माननीय न्यायालय/संबंधित अधिकारियों के निर्देशों का पालन करने का वचन देते हैं।
कोर्ट ने विज्ञापनों का पूछा था साइज
इससे पहले मंगलावर 23 अप्रैल को पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि हमने माफीनामा फाइल कर दिया है।इसे देश के 67 अखबारों में प्रकाशित किया गया है। उनके यह कहने पर जस्टिस हिमा कोहली ने पूछा था कि आपके विज्ञापन जैसे रहते थे, क्या इस माफीनामा वाले विज्ञापन का साइज भी वही था? कृपया इन विज्ञापनों की कटिंग लेकर हमें भेज दें। उन्होंने कहा था कि इन्हें बड़ा करने की जरूरत नहीं है। हम आपके इस माफीनामा वाले विज्ञापन का वास्तविक साइज देखना चाहते हैं।
ये हमारा निर्देश है।इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस हिमा कोहली ने कहा था कि जब आप कोई विज्ञापन प्रकाशित करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे माइक्रोस्कोप से देखेंगे। वह सिर्फ पन्ने पर न हो बल्कि पढ़ा भी जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में योगगुरु बाबा रामदेव और बालकृष्ण को निर्देश दिया था वह अगले दो दिनों में ऑन रिकॉर्ड माफीनामा जारी करें। इसमें यह लिखा हो कि उन्होंने गलती की है। अब इस मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से भी पूछे सवाल
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भ्रामक विज्ञापन प्रसारित और प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियम 1945 को लागू करने में विफलता पर केंद्र सरकार से सवाल किया है।जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा था कि केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने 2023 में सभी राज्य सरकारों को एक पत्र भेजकर औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने को कहा था।
उस पत्र में, केंद्र सरकार ने यह भी संकेत दिया था कि वह उस नियम को वापस लेने पर विचार कर रही है, जो भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई से संबंधित है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने पूछा कि जब आप सत्ता में हो तो क्या आप कानून के प्रयोग पर रोक लगा सकते हैं?
उन्होंने कहा कि एक टीवी समाचार सेगमेंट है जहां एंकर पढ़ रहा है कि अदालत में क्या हुआ और विज्ञापन उसके साथ चल रहा है...क्या स्थिति है! वहीं जस्टिस कोहली ने कहा, "ऐसा लगता है कि अधिकारी राजस्व देखने में बहुत व्यस्त थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार 2023 के इस पत्र और नियम 170 की प्रस्तावित वापसी के बारे में स्पष्टीकरण दे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि भारत सरकार ड्रग्स कंट्रोलर अथॉरिटी और राज्यों को भेजे 29 अगस्त के उस पत्र पर स्पष्टीकरण दे, जिसमें नियम 170 को हटा दिया गया है।
मंगलवार को जस्टिस अमानुल्लाह ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा था कि, "आखिर यह पत्र कैसे जारी किया गया? इसका जवाब केंद्र सरकार को देना होगा, आप इसके लिए तैयार रहें। जस्टिस कोहली ने कहा, "यह दो अदालतों के समक्ष चल रही कार्यवाही का मामला है और आप नियम 170 के संबंध में ऐसा कहकर वस्तुतः अदालत के हाथ बांध देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट और ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम जैसे कानूनों के कार्यान्वयन पर भी बारीकी से विचार करने का निर्णय लिया है। कोर्ट ने साफ किया कि यह जांच केवल इस बात तक सीमित नहीं होगी कि इन कानूनों को पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कितनी अच्छी तरह लागू किया गया है, बल्कि अन्य फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) के लिए भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इसके कार्यान्वयन की भी जांच होगी।
मंगलवार को कोर्ट ने कहा था कि वह ऐसे भ्रामक विज्ञापनों से चिंतित है जो जनता को धोखा दे रहे हैं और इससे शिशुओं, बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, जो भ्रामक विज्ञापनों से प्रभावित होकर दवाएं खा रहे हैं।कोर्ट ने साफ किया कि हम यहां किसी विशेष पार्टी के लिए बंदूक चलाने नहीं आए हैं, बल्कि यह उपभोक्ताओं/जनता के व्यापक हित में है, जिन्हें गुमराह किया जा रहा है।
कोर्ट ने केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी इस मामले में पक्षकार के रूप में जोड़ने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने राय दी कि भ्रामक विज्ञापनों या ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट के साथ-साथ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के उल्लंघन से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है, इसकी जांच करने के लिए इनके अधिकारियों को शामिल करना जरूरी है।