दिल्ली में एक और चुनाव विवादों में हुआ। इसके लिए उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने देर रात सत्र को बुला लिया। आप ने इस सत्र को अवैधानिक क़रार दिया और कहा कि ऐसा सिर्फ़ मेयर ही कर सकती हैं। इसी को लेकर इसने मतदान का बहिष्कार कर दिया। नतीजा ये हुआ कि आप के 125 पार्षद और कांग्रेस के नौ पार्षद होने के बावजूद 118 पार्षदों वाली बीजेपी की जीत हो गई। अब माना जा रहा है कि इस चुनाव को अदालत में चुनौती दिया जाना तय है।
अदालत में किस आधार पर चुनौती दी जा सकती है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर यह मामला क्या है और किन वजहों से विवाद हुआ। दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के सदस्य का चुनाव होना था। इसके लिए राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र के प्रतिनिधि उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने एमसीडी का सत्र बुला लिया। कल रात आम आदमी पार्टी ने देर रात के सत्र में मतदान का बहिष्कार कर दिया। कांग्रेस के पार्षदों ने खुद को कार्यवाही से दूर रखा। पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा 'यह कानून में लिखा है... केवल मेयर को सदन की बैठक बुलाने का अधिकार है'।
केजरीवाल ने कहा, 'हम लोकतंत्र में रहते हैं। कानून में लिखा है कि जब भी सदन बुलाया जाएगा, 72 घंटे का समय दिया जाएगा। हर पार्षद को समय चाहिए। लगता है कि उनके इरादों में कुछ गड़बड़ है। लगता है कि कुछ गलत करने की साजिश है, इसलिए वे यह सब कर रहे हैं...।'
इससे पहले शुक्रवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दोपहर 1 बजे निर्धारित 'अवैध चुनाव' को खारिज कर दिया, और कहा कि आज कुछ भी नहीं है।
उन्होंने ख़त जारी कर कहा, 'एमसीडी आयुक्त द्वारा घोषित आज का स्थायी समिति का छठा सदस्य चुनाव अवैध और असंवैधानिक है। मैं आज के चुनाव को अमान्य घोषित करती हूँ।'
आप ने उनके बयान को ट्वीट करते हुए कहा है, 'भाजपा के एलजी के निर्देश पर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एमसीडी आयुक्त द्वारा घोषित स्थायी समिति के 6वें सदस्य का चुनाव अवैध और असंवैधानिक है। एमसीडी अधिनियम के अनुसार, सदन को बुलाने और पीठासीन अधिकारी होने का अधिकार केवल महापौर के पास है। अगर आज निगम में महापौर की जगह कोई अतिरिक्त आयुक्त आ जाता है, तो कल भाजपा लोकसभा में अध्यक्ष की जगह गृह सचिव को नियुक्त कर सकती है!'
एलजी सक्सेना ने एमसीडी आयुक्त अश्विनी कुमार से 'आज रात 10 बजे तक चुनाव के संचालन की रिपोर्ट पेश करने' की मांग की और कहा कि यदि ओबेरॉय किसी कारण से खुद को अनुपलब्ध घोषित करती हैं, तो उप महापौर कार्यवाही की निगरानी करें।
इस बीच शुक्रवार दोपहर को दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की 18वीं और अंतिम सीट के लिए भाजपा के सुंदर सिंह तंवर को मनोनीत किया गया। चुनाव में केवल उनकी पार्टी के पार्षद ही शामिल थे। तंवर को 115 वोट मिले। सदन में भाजपा पार्षदों की संख्या इतनी ही है। तंवर की जीत का मतलब है कि अब भाजपा का स्थायी समिति पर नियंत्रण है, जिसे व्यापक रूप से नगर निकाय के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में देखा जाता है। भाजपा के पास अब अपने 18 सदस्यों में से 10 हैं और वह अध्यक्ष का चयन कर सकती है।
आप के पास 125 पार्षद हैं और अगर पार्टी ने आज मतदान किया होता तो सबसे अधिक संभावना है कि वह चुनाव जीत जाती और स्थायी समिति पर उसका नियंत्रण होता। लेकिन ऐसा तभी होता जब आप के पार्षद क्रोसवोटिंग नहीं कर पाते। कांग्रेस के नौ पार्षदों ने भी मतदान से परहेज किया।