दिल्ली दंगा: राहुल की मौत पर रोया शहबाज़, कहा- दोस्त नहीं परिवार थे हम 

07:17 am Feb 28, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

दिल्ली में दंगों के दौरान ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें हिंदू और मुसलिम आगे आए और जान पर खेलकर एक-दूसरे की जान बचाई। कुछ घटनाओं में दोनों ही समुदाय के लोगों ने इस बात का दावा किया कि दंगाई स्थानीय नहीं थे। उनका कहना था कि वे लोग कई सालों से इस इलाक़े में प्यार-मुहब्बत से रहते आये हैं और उन्होंने पहले कभी दो समुदायों के बीच नफ़रत या दुश्मनी नहीं देखी थी। 

मुस्तफ़ाबाद में रहने वाले 21 साल के अब्दुल समद, मंगलवार को स्थानीय मसजिद में नमाज़ अदा कर रहे थे। तभी दंगाई वहां घुस आये और पत्थरों और डंडों से मसजिद और वहां मौजूद लोगों पर हमला कर दिया। जीटीबी अस्पताल में भर्ती अब्दुल समद ने न्यूज़ वेबसाइट अल जज़ीरा को बताया कि उपद्रवियों ने वहां नमाज़ अदा कर रहे लोगों को बुरी तरह पीटा और मसजिद में तोड़फोड़ की।  

‘मिश्रा के बयानों से भड़की हिंसा’ 

समद ने अल जज़ीरा को बताया, ‘हम लोग मुस्तफ़ाबाद इलाक़े में नागरिकता क़ानून के विरोध में पिछले 70 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन कोई घटना नहीं हुई। समद ने कहा, ‘कपिल मिश्रा ने जब इलाक़े में नागरिकता क़ानून के समर्थन में रैली निकाली और भड़काऊ बयान दिये, उसके बाद ही हिंसा शुरू हुई।’ समद ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि दंगाई बाहर से आये थे। उसने दावा किया कि वे स्थानीय हिंदू नहीं थे। 

राहुल सोलंकी ने गंवाई जान

दिल्ली में दंगों के दौरान 26 साल के राहुल सोलंकी को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। जीटीबी अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर राहुल के शव का इंतजार कर रहे उसके छोटे भाई रोहित सोलंकी ने अल जज़ीरा को बताया कि उसने इस इलाक़े में हिंदुओं और मुसलिमों में कभी ऐसी दुश्मनी नहीं देखी। रोहित ने बताया कि राहुल एक मार्केटिंग कंपनी में काम करता था और सोमवार शाम को जब वह घर से बाहर निकला था तो दंगाइयों ने उसकी गर्दन में गोली मार दी थी। 24 साल के रोहित सोलंकी ने कहा, ‘मेरा भाई दूध लेने के लिये बाहर गया था तभी उसे दंगाइयों ने मार दिया।’ 

पुलिस समय पर नहीं आई

रोहित ने आरोप लगाया कि इलाक़े में सोमवार दोपहर से ही हालात तनावपूर्ण थे। उसने कहा, ‘मेरे पिता दिन में 2 बजे से कई पुलिस अधिकारियों को कॉल कर रहे थे। उन्होंने उनसे इलाक़े में आने के लिये कहा लेकिन पुलिस अधिकारियों ने कोई जवाब नहीं दिया।’ रोहित ने अल जज़ीरा से कहा, ‘काश पुलिस समय पर आ गयी होती, आज मेरा भाई जिंदा बच गया होता।’ 

रोहित ने कहा कि वह कई सालों से मुसलिम बहुल मुस्तफ़ाबाद इलाक़े में रह रहा है लेकिन उसे कभी नहीं लगा कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कभी किसी तरह की दुश्मनी है। रोहित ने अल-जज़ीरा से कहा, ‘हम लोग हमेशा से प्यार-मुहब्बत से रहते आये हैं लेकिन मैं आपको गारंटी से यह बता सकता हूं कि दंगा करने वाले स्थानीय मुसलिम नहीं थे, वे बाहरी थे।’ 

जब राहुल की लाश को मुर्दाघर से बाहर लाया गया तो उसके चार दोस्त बुरी तरह बिलख पड़े। वे बहुत देर तक रोते रहे। ये सभी 20 साल से कम उम्र के थे और इसमें दो युवतियां भी शामिल थीं। इन दोस्तों में से एक मुहम्मद शहबाज़ आलम रोते और चिल्लाते हुए अपने दोस्त विकास के गले से लिपट गया। आलम ने अल-जज़ीरा को बताया, ‘हम केवल दोस्त नहीं थे। हम सब एक परिवार थे।’ विकास ने रोते हुए कहा, ‘हिंदू-मुसलमान की इस राजनीति में हम दोनों ने ही अपने भाई राहुल को खो दिया।’ 

दिल्ली में मानवता को शर्मसार कर देने वाले दंगों में दंगाइयों ने एक ओर जहां मज़हब के आधार पर लोगों की पहचान कर उन्हें निशाना बनाया और उनके परिजनों, घर के सामान को फूंक दिया। वहीं, दूसरी ओर, ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अमन-चैन को ख़त्म करने वाले दंगाइयों का डटकर मुक़ाबला किया और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया।