प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए जानलेवा, अस्पतालों में 30 फ़ीसदी बढ़े मरीज

05:00 pm Oct 31, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण कितना ख़तरनाक स्तर तक पहुँच गया है इसका असर अस्पतालों में भी दिख रहा है। वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या में दिल्ली के अस्पतालों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। 

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, डॉक्टर कहते हैं कि दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में मोटे तौर पर 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर मरीज गले में जलन, आँखों से पानी आना, साँस लेने में दिक्कत, अस्थमा और फ़ेफड़े में परेशानियों को लेकर आए। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीजों की संख्या उसी दौरान बढ़नी शुरू हुई जब दिल्ली में हवा की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स काफ़ी ख़राब होने लगी। इसमें बच्चे और वृद्ध सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।

पहले भी वायु प्रदूषण से मौत की रिपोर्टें आती रही हैं जो साफ़-साफ़ कहती हैं कि इससे बच्चों और वृद्ध पर ज़्यादा ख़तरनाक असर होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने 2016 की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत जैसे देशों में 98 फ़ीसदी बच्चे ज़लरीली हवा से प्रभावित होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, उस वर्ष हवा प्रदूषण के कारण भारत में एक लाख से ज़्यादा बच्चों की मौत हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के सबसे बड़े ख़तरों में से एक है। पाँच साल से नीचे की उम्र के 10 में से एक बच्चे की मौत हवा प्रदूषण के कारण हो जाती है। 

2018 में आई एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में प्रदूषण के कारण दिल्ली में क़रीब 14800 लोगों की समय से पहले मौत हो गई थी। प्रदूषण से मरने वालों के मामले में दिल्ली सबसे अव्वल रही थी। इसके बाद मुंबई में 10500, कोलकाता में 7300 और चेन्नई में 4800 लोगों की मौत हो गई थी।

इस मौसम में पहली बार वायु प्रदूषण का स्तर सीवियर यानी गंभीर हो गया है। दिल्ली में बुधवार को शाम पाँच बजे हवा की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स औसत रूप से 419 तक पहुँच गया। एक दिन पहले यानी मंगलवार को यह 400 तक था। दिल्ली से सटे शहरों में भी हवा की गुणवत्ता गंभीर बनी रही। ग़ाज़ियाबाद में सबसे ज़्यादा स्थिति ख़राब रही और और शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स औसत रूप से 478 तक पहुँच गया। 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं। 

सामाजिक काम करने वाले एक संगठन ग्रीनपीस ने भी भारत में प्रदूषण पर एक रिपोर्ट दी थी। इसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि हवा को प्रदूषित करने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड का दुनिया में सबसे ज़्यादा उत्सर्जन भारत में होता है। यह सबसे ज़्यादा दिल्ली-एनसीआर, उत्तरप्रदेश का सोनभद्र, मध्य प्रदेश में सिंगरौली, ओडिशा में ताल्चेर-आंगुल में होता है।

घातक बीमारियों का ख़तरा

पीएम 2.5' और सल्फ़र डाई ऑक्साइड जैसे प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक होते हैं। ये नाक या गले से फेफड़ों में जा सकते हैं और इससे अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि इससे दमा, कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट भी कहती है कि वायु प्रदूषण से कैंसर, अस्थमा, फेफड़े का इन्फ़ेक्शन, न्यूमोनिया और साँस से जुड़ी कई गंभीर इंफ़ेक्शन हो सकते हैं। ऐसी ख़तरनाक बीमारियों के कारण मौत तक हो जाती है। कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से हर रोज़ कम से कम 80 मौतें होती हैं। यह चेताने वाली तसवीर है।