आम आदमी पार्टी (आप) के साथ कांग्रेस के गठबंधन की अटकलों पर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने विराम लगा दिया है। कई दिनों से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और ‘आप’ में गठबंधन की ख़बरें आ रही थीं।
पहले यह ख़बर सामने आई थी कि दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर दोनों पार्टियों ने तीन-तीन सीटों पर लड़ने का फ़ैसला कर लिया है। बची एक सीट पर भाजपा के बाग़ी नेता यशवंत सिन्हा को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतारने की सहमति बनी है। लेकिन अब शीला दीक्षित ने इन सारे कयासों पर विराम लगा दिया है। उन्होंने कहा कि ‘आप’ के साथ गठबंधन न करने का फ़ैसला किया गया है और यह फ़ैसला पार्टी में सर्वसम्मति से हुआ है।
पिछली लोकसभा में हो गया था सफ़ाया
बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी ने अपना परचम लहराया था। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मुँह ताकते रह गए थे। इसको ध्यान में रखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार कांग्रेस से गठबंधन करने की गुहार लगाते रहे। उन्होंने कई बार कहा कि वह गठबंधन के लिए तैयार हैं लेकिन कांग्रेस ही नहीं मान रही। लेकिन अब साफ़ हो गया है कि केजरीवाल की बात को कांग्रेस ने बिल्कुल तवज्जो नहीं दी है।इससे पहले ‘आप’ ने बीते शनिवार को अपनी छह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। माना जा रहा था कि केजरीवाल ने कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए ऐसा किया था। लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने गठबंधन पर चर्चा करने के लिए पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई थी, लेकिन उस बैठक में 'आप' के साथ न जाने का फ़ैसला किया गया।
कांग्रेस-बीजेपी का है गठबंधन!
कांग्रेस के द्वारा 'आप' के साथ गठबंधन न करने के एलान के बाद अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, 'जब पूरा देश मोदी-शाह की जोड़ी को हराना चाहता है, उस वक़्त कांग्रेस, बीजेपी विरोधी वोट को बाँटना चाहती है। अफ़वाह यह भी है कि कांग्रेस और बीजेपी में गुप्त समझौता है। दिल्ली कांग्रेस और बीजेपी के गठबंधन के ख़िलाफ़ लड़ने को तैयार है।'माकन को हटना पड़ा था
गठबंधन की चर्चा ने तब काफी ज़ोर पकड़ा था जब अजय माकन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। माकन के इस्तीफ़े के साथ ही यह माना जा रहा था कि ‘आप’ और कांग्रेस साथ-साथ आ सकते हैं। क्योंकि माकन कई बार कांग्रेस और आप के गठबंधन की खुलेआम मुख़ालफ़त कर चुके थे। माकन के बाद शीला दीक्षित को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर दी गई।
पिछले दिनों गठबंधन की चर्चाओं के बीच दोनों दलों के बीच खटास तब बहुत ज़्यादा बढ़ गई थी जब 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से भारत रत्न सम्मान वापस लेने वाला प्रस्ताव दिल्ली की विधानसभा में लाया गया था। यह घटना हुई थी दिसंबर 2018 में। इस पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। इसके बाद दोनों दलों के संबंध ख़राब हुए और माना गया था कि गठबंधन की बात खटाई में पड़ सकती है।
अलग लड़े तो दोनों रहेंगे नुक़सान में
विपक्षी एकता की वकालत करने वालों का कहना है कि अगर दोनों दल अलग-अलग लड़ते हैं तो बीजेपी विरोधी वोटों के बंटने का ख़तरा है और इससे दोनों दलों को नुक़सान होगा। इसलिए बीजेपी को हराने के लिए दोनों दलों का साथ आना सियासी मज़बूरी माना जा रहा था। लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा ‘आप’ से गठबंधन के लिए बिलकुल तैयार नहीं था।