‘आप’ के उम्मीदवारों का एलान, पर क्या कांग्रेस से होगा गठबंधन?

01:12 pm Mar 10, 2019 | पवन उप्रेती - सत्य हिन्दी

क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस लोकसभा का चुनाव मिलकर लड़ेंगे? क्या बीजेपी को हराने के लिए दोनों दल एक-दूसरे से चुनावी गठबंधन करेंगे? क्या दोनों दलों के बीच किसी तरह की बातचीत चल रही है? इन तमाम अटकलों के बीच शनिवार को ‘आप’ ने अपने छह लोकसभा उम्मीदवारों का एलान कर दिया। 

आप के इन उम्मीदवारों में चाँदनी चौक से पंकज गुप्ता, पूर्वी दिल्ली से आतिशी मारलेना, दक्षिण दिल्ली से राघव चढ्ढा, उत्तर-पश्चिम से घुघन सिंह, उत्तर-पूर्व से दिलीप पांडे और नई दिल्ली सीट से ब्रजेश गोयल आप के उम्मीदवार होंगे। उत्तरी दिल्ली की सीट के लिए अभी तक किसी उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी गई है।

लंबे समय से चल रही थी अटकलें

‘आप’ और कांग्रेस के बीच गठबंधन की अटकलें काफ़ी दिनों से चल रही थीं। इस बारे में फ़रवरी के आख़िरी हफ़्ते में दोनों दलों के बीच अनौपचारिक बातचीत भी शुरू हुई। इस बातचीत में कांग्रेस ने तीन सीटें देने की माँग रखी। ‘आप’ सिर्फ़ एक सीट देने के पक्ष में थी। इस बारे में कोई प्रगति नहीं होने की वजह से बातचीत बीच में टूट गई और आप ने उम्मीदवार घोषित कर दिए। 

‘आप’ ने झटका कांग्रेस का वोट बैंक

दिल्ली में लोकसभा की कुल सात सीटें हैं। 2014 में सातों सीटें बीजेपी ने जीती थी और हर सीट पर ‘आप’ दूसरे नंबर पर रही जबकि कांग्रेस तीसरे पर। 2013 में ‘आप’ के उदय के पहले दिल्ली में कांग्रेस का दबदबा था। पंद्रह साल तक दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही। ‘आप’ के आने के बाद कांग्रेस दिल्ली में पूरी तरह से सिमट गई। दोनों का एक ही वोटबैंक है और माना जाता है कि कांग्रेस का वोट ‘आप’ की तरफ़ खिसक गया। बीजेपी का वोट अपनी जगह पर बरक़रार रहा।

अलग लड़े तो दोनों रहेंगे नुक़सान में 

विपक्षी एकता की वकालत करने वालों का कहना है कि अगर दोनों दल अलग-अलग लड़ते हैं तो बीजेपी विरोधी वोटों के बंटने का ख़तरा है और इससे दोनों दलों को नुक़सान होगा। इसलिए बीजेपी को हराने के लिए दोनों दलों का साथ आना सियासी मज़बूरी माना जा रहा था। कांग्रेस का एक धड़ा ‘आप’ से गठबंधन के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। 

पिछले दिनों गठबंधन की चर्चाओं के बीच दोनों दलों के बीच खटास तब बहुत ज़्यादा बढ़ गई थी जब 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से भारत रत्न सम्मान वापस लेने वाला प्रस्ताव दिल्ली की विधानसभा में लाया गया था। यह घटना हुई थी दिसंबर 2018 में। इस पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। इसके बाद दोनों दलों के संबंध ख़राब हुए और माना गया कि गठबंधन की बात खटाई में पड़ सकती है। 

माकन को हटाया, शीला आईं 

गठबंधन की चर्चा ने तब काफी ज़ोर पकड़ा था जब अजय माकन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। माकन के इस्तीफ़े के साथ ही यह माना जा रहा था कि ‘आप’ और कांग्रेस साथ-साथ आ सकते हैं। क्योंकि माकन कई बार कांग्रेस और आप के गठबंधन की खुलेआम मुख़ालफ़त कर चुके थे। शीला दीक्षित को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर दी गई। 

पवार के घर मिले राहुल-केजरीवाल

गठबंधन की चर्चाओं ने तब और जोर पकड़ा जब यह ख़बर आई कि एनसीपी मुखिया शरद पवार के घर पर अरविंद केजरीवाल और राहुल गाँधी की मुलाक़ात हुई। ऐसा पहली बार हुआ जब दोनों नेता एक-दूसरे से मिले। यहाँ भी दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा हुई। बताया जाता है कि बैठक में राहुल गाँधी ने कहा कि वह ‘आप’ से गठबंधन के लिए तैयार हैं लेकिन उनकी पार्टी इसके लिए तैयार नहीं है। 

शरद पवार के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी दोनों नेताओं को समझाने की कोशिश की। इसके बावजूद बर्फ़ ज्यादा नहीं पिघली।

कुछ दिन पहले ‘आप’ संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक जनसभा में गठंबधन को लेकर कहा था, ‘आज अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाए तो बीजेपी सातों सीटें हार जाएगी। उनको (कांग्रेस) मना-मनाकर थक गए लेकिन मुझे नहीं समझ आता कि उनके मन में क्या है?’ केजरीवाल के बयान से साफ़ था कि ‘आप’ ही कांग्रेस से समझौते के लिए लालायित थी।

किस आधार पर केजरीवाल ने यह बात कही, यह मैं उन्हीं से पूछना चाहती हूँ। क्योंकि एक दफ़ा भी उन्होंने कोई बात नहीं की है।


शीला दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री

आपको बता दें कि 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 15 फ़ीसदी वोट मिले थे। बीजेपी को 46 और ‘आप’ को 33 फ़ीसदी वोट मिले थे। 

साल 2015 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी और उसे क़रीब 50 फ़ीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 9.7 फ़ीसदी वोट मिले थे और उसको एक भी सीट नहीं मिली। 

निगम चुनावों में फिसली ‘आप’

2017 में हुए नगर निगम चुनावों में तसवीर काफ़ी बदल गई। बीजेपी ने तीनों एमसीडी पर क़ब्जा किया और उसे 36 फ़ीसदी वोट मिले थे, तब ‘आप’ को 26 और कांग्रेस को 21 फ़ीसदी वोट मिले। इस हिसाब से कांग्रेस का यह तर्क जायज़ था कि उसका वोट बैंक बढ़ रहा है, इसलिए वह भी गठबंधन के लिए झुकने को तैयार नहीं थी।

ऐसे में कांग्रेस एक सीट पर मानने को तैयार नहीं है। कांग्रेस को लगता है कि उसे कम से कम लोकसभा की तीन सीटें मिलनी चाहिए। ‘आप’ का सोचना है कि कांग्रेस ने भले ही एमसीडी के चुनाव में थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया हो पर जमीन पर वह काफ़ी कमजोर है। और वह किसी भी हाल में तीन सीटों की हक़दार नहीं है। 

‘आप’-कांग्रेस के अपने-अपने दावे

दोनों दलों के अपने-अपने दावे हैं और अपने-अपने तर्क। पर 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए घटनाक्रम काफ़ी तेज़ी से बदल रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बीजेपी एक बार फिर विश्वास से भर गई है और विपक्षी ख़ेमे में मायूसी है। ऐसे में ‘आप’ के उम्मीदवारों के एलान के बावजूद पर्दा अभी पूरी तरह से गिरा नहीं है। 

गठबंधन की राजनीति में रूठना-मनाना लगा रहता है। देखना यह है कि ‘आप’ की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा के बाद कांग्रेस कैसे “रिएक्ट” करती है। दोनों दल 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद सारे मतभेदों और तल्ख़ी के बावजूद एक साथ सरकार चला चुके हैं। ऐसे में कुछ समय के बाद दोनों साथ आ जाएँ तो हैरान होने की ज़रूरत नहीं है।