आख़िर ऑड-ईवन लागू करने पर क्यों अड़े हुए हैं केजरीवाल?

08:12 am Sep 15, 2019 | दिलबर गोठी - सत्य हिन्दी

अगर किसी को हार्ट की बीमारी हो जाए और इलाज से बीमारी में धीरे-धीरे सुधार भी हो रहा हो तो वह मरीज चैन की सांस ले सकता है लेकिन अगर डॉक्टर मरीज से कह दे कि आपकी बाईपास सर्जरी करनी है क्योंकि दिल की बीमारी धीरे-धीरे बढ़ेगी और आपकी हालत बिगड़ेगी। आख़िर में तो आपको बाईपास सर्जरी करानी ही पड़ेगी तो क्यों न अभी बाईपास सर्जरी कर दी जाए। आप उस डॉक्टर को क्या कहेंगे! कोई कुछ भी कहे, लेकिन मुझे तो लगता है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का हाल कुछ ऐसा ही है।

आज दिल्ली में प्रदूषण 25 फ़ीसदी कम हो गया है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि पिछले सालों की तुलना में प्रदूषण में काफ़ी कमी आई है। इसका श्रेय लेने के लिए केजरीवाल अख़बारों में बड़े-बड़े विज्ञापन भी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि उनकी सरकार के कारण ही यह सब हुआ है। इस बात पर विवाद है कि श्रेय किसे दिया जाना चाहिए। 

क्या ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफ़ेरियल एक्सप्रेस वे बनने से प्रदूषण कम हुआ है क्योंकि 65 हज़ार ट्रक अब दिल्ली में आए बिना ही आगे निकल जाते हैं या एनएच-24 के चौड़ा होने से वाहनों की लंबी कतार प्रदूषण नहीं बढ़ाती या फिर केजरीवाल की तथाकथित बिजली कटौती में सुधार के कारण दिल्ली की आबो-हवा साफ़ हो रही है। 

दिल्ली की बिजली सप्लाई में सुधार तो 2002 से होना शुरू हो गया था जब बिजली का निजीकरण हुआ था। शीला दीक्षित के जमाने में ही लोग पावर कट को भूल चुके थे लेकिन केजरीवाल कहते हैं कि नहीं, यह उनकी सरकार ने किया है। इसके अलावा केजरीवाल यह भी कहते हैं कि उन्होंने दिल्ली की हरियाली बढ़ा दी है और इसलिए प्रदूषण कम हुआ है। चलिए, इस विवाद को छोड़ देते हैं कि किसके कारण प्रदूषण कम हुआ है। 

लब्बोलुआब यह है कि प्रदूषण कम हो गया है और दिल्ली को इसका जश्न मनाना चाहिए। मगर, जश्न मनाने के बजाय तो दिल्ली सकते में आ गई है। ऑड-ईवन का भूत दिल्ली में फिर से मंडराने लगा है। 

ऑड-ईवन वह इलाज है जो सबसे आख़िर में होना चाहिए, यानी जब कोई दवा असर नहीं कर रही हो और मरीज की जान ख़तरे में हो। केजरीवाल प्रदूषण में कमी की घोषणा भी कर रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं कि इलाज तो बाईपास सर्जरी ही है।

पहले भी लागू हुआ ऑड-ईवन 

दिल्ली में इससे पहले दो बार ऑड-ईवन का खेल खेला जा चुका है। पहली बार 2016 के जनवरी महीने में और दूसरी बार उसी साल अप्रैल में। इसके बाद नवंबर 2017 में फिर से ऑड-ईवन की घोषणा की गई थी लेकिन एनजीटी ने जो सवाल उठाए थे, उनका जवाब दिल्ली सरकार के पास नहीं था। यही वजह है कि तब सरकार को यह घोषणा वापस लेनी पड़ी थी। 

13 सितंबर को ऑड-ईवन की घोषणा से एक दिन पहले केजरीवाल कुछ देसी-विदेशी एक्सपर्ट्स से मिले थे और उन्होंने सुझाव दिया था कि प्रदूषण बहुत ज़्यादा बढ़ जाए तो ऑड-ईवन एक इलाज हो सकता है। केजरीवाल ने जिन एक्सर्ट्स से 12 सितंबर को मुलाक़ात की थी उनमें शिकागो यूनिवर्सिटी के डॉक्टर केन ली और वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट इंडिया के ओ.पी. अग्रवाल शामिल हैं। दोनों ने कहा था कि इमरजेंसी के हालात में ऑड-ईवन को लागू किया जाना चाहिए। अब ऐसी क्या इमरजेंसी है, यह केजरीवाल नहीं बता पाए। बस, केजरीवाल को यह सुझाव पसंद आ गया और उन्होंने अभी से ही इस जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया है। 

यह सच है कि अभी प्रदूषण पूरी तरह काबू में है और केजरीवाल ने ख़ुद माना है कि हालात में बहुत सुधार हुआ है लेकिन फिर भी केजरीवाल को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने ऑड-ईवन की घोषणा कर डाली।

ऑड-ईवन से प्रदूषण बढ़ा!

ऑड-ईवन से दिल्ली को कोई फायदा हुआ या नहीं, यह पूरी तरह प्रमाणित नहीं है। भले ही सरकार दावा करती हो कि ऑड-ईवन से दिल्ली में 14 से 16 फीसदी प्रदूषण कम होता है लेकिन आईआईटी ने 2016 के ऑड-ईवन की जो स्टडी की थी उसमें कहा था कि 1 जनवरी से 15 जनवरी के दौरान दिल्ली में ऑड-ईवन के बावजूद प्रदूषण में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। दिल्ली में प्रदूषण 17 दिसंबर से 31 दिसंबर 2015 की तुलना में अगले पखवाड़े में ज़्यादा था।

दरअसल, जहां भी ऑड-ईवन लागू किया जाता है वहां सबसे पहला सवाल यह उठाया जाता है कि क्या वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट का पूरा इंतजाम है। अगर लोग अपनी गाड़ी छोड़ते हैं या उन्हें क़ानूनन इसके लिए मजबूर किया जाता है तो क्या उन्हें यह सुविधा है कि वे अपने काम पर जा सकें? इस सवाल का जवाब सभी जानते हैं। 

दिल्ली में आज 12 हज़ार बसों की ज़रूरत है लेकिन कुल मिलाकर चार हज़ार बसें भी नहीं हैं। जब से आम आदमी पार्टी की सरकार आई है दिल्ली में क़रीब 1500 डीटीसी की बसें कम हो गई हैं जबकि एक भी नई बस डीटीसी के बाड़े में शामिल नहीं की गई।

मेट्रो के चौथे फ़ेज में देरी 

जहां तक क्लस्टर बसों का सवाल है तो दिल्ली में पिछले पांच सालों में सिर्फ़ 250 बसें ही आई हैं। मेट्रो का जाल ज़रूर बढ़ा है लेकिन जिस चौथे फ़ेज को 2017 में शुरू होकर 2021 में ख़त्म होना था, वह अभी तक शुरू भी नहीं हो सका है। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों एक-दूसरे पर इसकी देरी का दोष डाल रहे हैं। अगर ऑड-ईवन लागू होता है तो दिल्लीवालों के पास क्या विकल्प होगा - जवाब ठन-ठन गोपाल है।

दिल्ली सरकार ऑड-ईवन लागू करती है तो सिर्फ़ निजी कारों पर। सवाल यह है कि क्या इससे लोगों की ज़रूरत पूरी हो सकेगी या प्रदूषण के हैवान से लड़ने के लिए बस इतना ही काफ़ी है।

दिल्ली सरकार टू व्हीलर्स को ऑड-ईवन से मुक्त रखती है, महिलाओं की सिंगल ड्राइविंग वाली गाड़ियों को ऑड-ईवन से मुक्त रखती है और ज़रूरी सेवाओं के साथ-साथ सीएनजी की गाड़ियां भी बंदिशों से मुक्त रहती हैं। 

एनजीटी ने उठाए थे सवाल 

दिल्ली में इस समय क़रीब एक करोड़ 15 लाख वाहन हैं जिनमें से क़रीब 34 लाख चार पहियों वाले यानी कारें या जीप हैं। इसके अलावा 70 लाख से ज़्यादा टू व्हीलर हैं। ज़ाहिर है कि ये सभी पेट्रोल से चलते हैं। केजरीवाल ने यह नहीं बताया कि इस बार ऑड-ईवन में किसे छूट मिलेगी और किसे नहीं लेकिन एनजीटी ने 2017 में यही सवाल उठाए थे कि आख़िर यह कैसे मान लिया जाए कि टू व्हीलर प्रदूषण नहीं फैलाते या फिर सिंगल ड्राइविंग वाली महिलाओं की गाड़ी प्रदूषण नहीं फैलाती। 

दिल्ली सरकार के पास दोनों को छूट देने के कारण हैं। इतनी बड़ी तादाद में टू व्हीलर को छूट न देने पर जो हालात पैदा होंगे, दिल्ली सरकार उनसे निपटने में सक्षम नहीं है क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो जीरो है। यह बात दिल्ली सरकार ख़ुद 2017 में स्वीकार कर चुकी है। महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर छूट देना चाहती है। एनजीटी ने 2017 में ऐसी किसी भी छूट से इनकार कर दिया था और काफ़ी तकरार के बाद आख़िरकार दिल्ली सरकार को ऑड-ईवन ही वापस लेना पड़ा था। 

इस बार दिल्ली सरकार ख़ुद ही तय नहीं कर पाई है कि ऑड-ईवन का स्वरूप क्या होगा। अगर इस बार भी छूट होगी तो ज़ाहिर है कि तकरार भी होगी और फिर क्या होगा, ये ख़ुदा जाने। मगर, यह सच है कि नवंबर 2017 से अब तक यानी दो साल की अवधि में भी स्थिति में कोई सुधार होने की बजाय और ख़राबी ही आई है। सरकार छूट नहीं देगी तो उसके पास कोई विकल्प ही नहीं है।

अगर यह देखें कि जनवरी 2016 का पहला ऑड-ईवन ज़्यादा सफल हुआ था और उसी साल अप्रैल का ऑड-ईवन थोड़ा कम सफल और नवंबर 2017 का ऑड-ईवन लागू ही नहीं हो पाया तो इसकी वजह क्या थीं। दरअसल, जनवरी 2016 के ऑड-ईवन के वक्त सरकार ने सर्दी के नाम पर स्कूलों की छुट्टियां कर दी थीं और दो हज़ार के क़रीब स्कूल बसों को यात्रियों को ढोने के काम में लगा दिया था। न्यू ईयर पर वैसे भी लोग छुट्टियां मनाते हैं। इसलिए वह ऑड-ईवन कुछ हद तक सफल रहा था। 

मगर, अप्रैल 2019 में स्कूलों ने बसें देने से इनकार कर दिया था क्योंकि सैशन तभी शुरू हुआ था और लोगों ने भारी परेशानी झेलते हुए सरकार का जबरदस्त विरोध किया था। नवंबर 2017 का किस्सा मैं पहले ही बयान कर चुका हूं।

इस तरह अधूरी तैयारी के साथ दिल्ली सरकार ऑड-ईवन को लागू करने की एक और कोशिश कर रही है। पेरिस या बीजिंग जहां भी ऑड-ईवन आजमाया गया है, उसे आख़िरी हथियार के रूप में पूरी तैयारी से आजमाया गया है। दिल्ली सरकार उस आख़िरी हथियार को पहले ही क़दम पर आजमाना चाहती है और वह भी बिना किसी तैयारी के। 

केजरीवाल यह कहते कि अगर प्रदूषण बहुत ज़्यादा बढ़ गया तो हम ऑड-ईवन लागू कर सकते हैं लेकिन उन्होंने तो बस बाईपास सर्जरी का फ़ैसला ही कर लिया है। ऐसे में, यही दुआ की जानी चाहिए कि भगवान दिल्ली की जनता को इस मुसीबत की घड़ी को बर्दाश्त करने की शक्ति दे और साथ ही शांति भी बनी रहे।