दिसंबर 2012 में हुए निर्भया बलात्कार और हत्याकांड को 10 साल पूरे हो चुके हैं। निर्भया हत्याकांड के बाद महिला सुरक्षा को लेकर तमाम नियम बनाए गए और उन्हें लागू करने पर जोर भी दिया गया। लेकिन आज भी देश के बाकी हिस्सों को छोड़िए, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक में महिलाओं के खिलाफ अपराध में कोई कमी नहीं आई है बल्कि यह लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में दिल्ली में हर दिन महिला अपराध से संबंधित 39 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 18 से 30 साल की युवतियां व महिलाएं दिल्ली में सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में पिछले साल बलात्कार के 1250 मुकदमे दर्ज हुए और इसमें से 900 से ज्यादा पीड़िताएं 18 से 30 साल की उम्र की थीं। साल 2020 में दिल्ली में बलात्कार के 1000 मामले दर्ज हुए थे और इस तरह साल 2021 में इनमें 25 फीसद की बढ़ोतरी हुई।
41 फीसद ज्यादा अपराध
एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2021 में महिलाओं से जुड़े 14,277 अपराध दर्ज किए गए और यह साल 2020 में दर्ज किए गए 10093 अपराधों से 41 फीसद ज्यादा थे। जबकि मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में इस दौरान महिला अपराध से संबंधित क्रमश: 5000 और 1700 मामले सामने आए।
निर्भया के माता-पिता ने कहा है कि उनकी बेटी के साथ हुई जघन्य वारदात के 10 साल बाद भी राष्ट्रीय राजधानी में कुछ नहीं बदला है। हां इतना जरूर हुआ है कि बलात्कार पीड़ित महिलाएं अब आगे आकर अपनी आवाज उठा रही हैं।
निर्भया फंड का पूरा इस्तेमाल नहीं
एक हैरान करने वाली जानकारी यह भी सामने आई है कि निर्भया फंड के 30 फीसद पैसे का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया है। देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 6000 करोड़ रुपए का निर्भया फंड बनाया गया था। साल 2021-22 में इसमें सिर्फ 4200 करोड रुपए का ही इस्तेमाल किया गया और इस तरह 30 फीसद पैसे का इस्तेमाल नहीं हो पाया। इस पैसे का इस्तेमाल सुरक्षा उपकरण बनाने, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने, यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए फ़ॉरेंसिक किट खरीद आदि के लिए किया जाना था।
सोशल मीडिया और टीवी, अखबारों में आज भी महिलाओं के खिलाफ हत्या, बलात्कार, छेड़खानी की वारदात देखने व पढ़ने को मिलती हैं। अभी भी महिला उत्पीड़न से जुड़ी सैकड़ों ऐसी घटनाएं हैं जो पुलिस थानों में दर्ज नहीं हो पाती। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध एनसीआरबी के आंकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकते हैं।