नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली में बृहस्पतिवार को जोरदार प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शन के चलते 18 मेट्रो स्टेशनों को कई घंटों के लिए बंद करना पड़ा। इन मेट्रो स्टेशनों में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जसोला विहार, शाहीन बाग, लाल क़िला, जामा मसजिद, चांदनी चौक और विश्वविद्यालय, मुनिरका, पटेल चौक, लोक कल्याण मार्ग, उद्योग भवन, बाराखंभा, आईटीओ, प्रगति मैदान, केंद्रीय सचिवालय, राजीव चौक और खान मार्केट शामिल हैं। शाम को 5 बजे इन स्टेशनों को खोला गया।
सरकार के आदेश पर दिल्ली के कई इलाक़ों में कुछ देर के लिए इंटरनेट को भी बैन करना पड़ा। इसके साथ ही कॉल करने और मैसेज करने की सेवा को भी बंद किया गया। इस कारण उपभोक्ताओं को परेशानी से जूझना पड़ा। थोड़ी देर बाद इन सेवाओं को बहाल कर दिया गया।
हालाँकि दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी थी और लाल क़िले के आस-पास धारा 144 को लागू कर दिया था लेकिन फिर भी प्रदर्शनकारी बड़ी संख्या में जुटे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव को और अन्य कई लोगों को हिरासत में ले लिया।
इससे पहले जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों के प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी। इसमें कई बसों को आग लगा दी गई थी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया था और आंसू गैस के गोले छोड़े थे। इसके बाद सीलमपुर और ज़ाफराबाद इलाक़ों में जोरदार प्रदर्शन हुआ था। यह प्रदर्शन हिंसक हो गया था और उपद्रवियों ने कुछ बसों को आग लगा दी थी और पुलिस बूथ में भी तोड़फोड़ की थी।
प्रदर्शन के मद्देनजर दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए और कई जगहों पर रूट डायवर्जन भी किया गया। दोपहर 12 बजे से वाम दलों का मार्च मंडी हाउस से शुरू होना था और इसे जंतर-मंतर तक जाना था। जबकि दूसरा प्रदर्शन 11 बजे से लाल क़िले से शुरू होकर शहीद पार्क तक किया जाना था। यह प्रदर्शन ‘हम भारत के लोग’ बैनर के तले कई संगठनों की ओर से किये जाने का आह्वान किया गया था। दिल्ली के अलावा भी देश के कई शहरों में इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन हुए। बिहार में कई जगहों पर प्रदर्शन के दौरान ट्रेनों को रोक दिया गया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हिंसक प्रदर्शन हुए।
इस क़ानून के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा और उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के मूल ढांचे के ख़िलाफ़ है। इन दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है और धार्मिक भेदभाव के आधार पर तैयार किया गया है।