दिल्ली की सात लोकसभा सीटों की तसवीर साफ़ हो चुकी है। कांग्रेस के साथ समझौते की आस के बावजूद आम आदमी पार्टी ने अपने सातों उम्मीदवारों की घोषणा दूसरी पार्टियों से काफ़ी पहले कर दी थी। मोदी-शाह की जोड़ी का डर दिखाकर आम आदमी पार्टी अपना उल्लू सीधा करना चाहती थी, लेकिन इस चक्कर में कांग्रेस उल्लू नहीं बनी। एक तरफ़ वह समझौते की बात कर रही थी तो दूसरी तरफ़ उसके उम्मीदवार प्रचार में जुटे हुए थे। यह बात और है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस को जो सीटें सौंपने के लिए तैयार थी, वहाँ प्रचार अनमने ढंग से ही चल रहा था। मगर, अब यह साफ़ हो गया है कि दिल्ली की सातों सीटों पर तिकोना मुक़ाबला होने जा रहा है। ठीक उसी तरह जैसे 2014 में सातों सीटों पर तिकोना मुक़ाबला हुआ था। हालाँकि आम आदमी पार्टी यह दावा करती रही है कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होगा लेकिन कांग्रेस ने अपने दिग्गज उम्मीदवार उतारकर मुक़ाबले को दिलचस्प ज़रूर बना दिया है।
2014 के चुनावों में बीजेपी ने 46.40 फ़ीसदी वोटों के साथ सातों सीटें जीती थीं। आम आदमी पार्टी सातों सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी और उसका वोट शेयर 32.90 फ़ीसदी था। कांग्रेस सिर्फ़ 15.10 फ़ीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी। हालाँकि इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनावों में पासा पलट गया था और आम आदमी पार्टी 54 फ़ीसदी वोटों के साथ 67 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी, लेकिन 2017 के चुनावों में हालात काफ़ी बदल गए। तब बीजेपी 36 फ़ीसदी वोट ले सकी तो आम आदमी पार्टी का आँकड़ा 26 फ़ीसदी पर आ गया, लेकिन कांग्रेस 21 फ़ीसदी वोटों के साथ अपनी स्थिति में सुधार करती नज़र आई। ज़ाहिर है कि 2015 के बाद आप का वोट शेयर लगातार कम होता रहा है। अब देखना यह है कि इस बार वह कहाँ टिक पाती है।
बीजेपी ने इस बार सात में से पाँच उम्मीदवारों को दुबारा टिकट दिया है। पूर्वी दिल्ली से महेश गिरी और उत्तर-पश्चिम दिल्ली से उदित राज का टिकट कट गया।
उदित राज कई बार पार्टी लाइन से अलग चलते दिखाई देते थे, चाहे वह आरक्षण की बात हो या फिर सीलिंग की। जैसे ही उनका टिकट कटा उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया। महेश गिरी का टिकट कटने का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि पूर्वी दिल्ली के पार्टी के वरिष्ठ नेता महेश गिरी से खुश नहीं थे। वह श्रीश्री रविशंकर के संगठन आर्ट ऑफ लिविंग से सीधे राजनीति में उतरे थे और पार्टी संगठन में काम करने का उनका अनुभव भी नहीं था। 2017 के नगर निगम चुनावों में उम्मीदवार उतारने में महेश गिरी ने ‘मनमानी’ की थी।
कांग्रेस के ख़िलाफ़ आप हमलावर क्यों नहीं
सातों लोकसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी एक ख़ास रणनीति पर चल रही है। आप न तो कांग्रेस के ख़िलाफ़ बड़ा आरोप लगा रही है और न ही उसके उम्मीदवारों को निशाने पर ले रही है। लगता है कि आम आदमी पार्टी ने फ़ैसला किया है कि वह दिल्ली में कांग्रेस की पूरी तरह अनदेखी करे। ऐसा इसलिए कि कांग्रेस को कमज़ोर बताकर ही वह उसके वोट बैंक को अपनी झोली में डाल सकती है, लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा।
पूर्वी दिल्ली
पूर्वी दिल्ली से बीजेपी ने क्रिकेटर गौतम गंभीर को टिकट दिया है। यह संयोग ही कहा जाएगा कि इसी इलाक़े से बीजेपी ने क्रिकेटर चेतन चौहान को भी आज़माया था लेकिन वह पासा उल्टा पड़ा था। गौतम गंभीर के पिता का गाँधी नगर-कैलाश नगर में गारमेंट्स का बड़ा क़ारोबार है और इसलिए वह अपना नाता पूर्वी दिल्ली से बता रहे हैं, लेकिन पार्टी में अपनी पैठ बनाने में गंभीर को भी दिक्कत आ रही है। यही वजह है कि अब उनके चुनाव को मैनेजमेंट दिल्ली बीजेपी के प्रभारी श्याम जाजू ने ख़ुद संभाल लिया है। प्रीत विहार से लेकर विवेक विहार का इलाक़ा बीजेपी का गढ़ है और आम आदमी पार्टी वहाँ कहीं दिखाई नहीं देती। आप की आतिशी को दिल्ली में शिक्षा की कथित क्रांति का सूत्रधार बनाकर पेश किया गया है। इसके अलावा आप पूर्ण राज्य के दर्जे को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाकर पेश कर रही है।
जहाँ तक कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली का सवाल है तो उनकी एंट्री ने बाक़ी दोनों पार्टियों को चौंका दिया है। लवली इस इलाक़े का जाना-पहचाना नाम हैं। वह चार बार के विधायक और 15 साल तक मंत्री रहे। वह यहाँ कोई चुनाव नहीं हारे। 2013 में जब कांग्रेस सिर्फ़ सात सीटें जीती थी, उनमें एक लवली भी थे। हाँ, लवली के लिए यह नेगेटिव प्वाइंट है कि वह कुछ महीने के लिए कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए थे लेकिन वर्करों में काफ़ी लोकप्रिय हैं।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली
उत्तर-पूर्वी दिल्ली इसलिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है कि वहाँ कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही प्रदेश अध्यक्ष चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उतारकर सारे पासे पलट दिए हैं। शीला दीक्षित भले ही 81 साल की हो गई हैं और प्रचार में उनकी अपनी सीमाएँ हैं लेकिन अब भी उनके प्रशंसकों की कमी नहीं है। इस इलाक़े में निर्णायक मुसलिम मतदाताओं को अगर शीला दीक्षित ने रिझा लिया तो फिर बीजेपी और आप के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी। जहाँ तक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का सवाल है तो टिकट मिलने से पहले तक यह हवा चलती रही कि उनका टिकट कट रहा है। लेकिन जब कांग्रेस-आप में समझौता नहीं हुआ तो फिर बीजेपी ने मनोज तिवारी पर ही दाँव खेल लिया। इलाक़े में पूर्वांचल के लोगों के वोटों को लुभाने के लिए तिवारी को 2014 में यहाँ उतारा गया था। इसीलिए आप ने भी यहाँ पूर्वांचल के प्रतिनिधि दिलीप पांडे को उतारकर मनोज तिवारी की वोटो में सेंध लगाने की कोशिश की है।
नयी दिल्ली
नयी दिल्ली पर भी मुक़ाबला तिकोना ही है। अजय माकन ने इस सीट पर 2004 में जब बीजेपी के दिग्गज जगमोहन को हराया था तो एक बार किसी को विश्वास नहीं हुआ था। कांग्रेस ने अजय माकन को उसी विश्वास के साथ फिर उतारा है।
यहाँ से बीजेपी उम्मीदवार मीनाक्षी लेखी का टिकट लगभग कट गया था, लेकिन राहुल गाँधी को ‘चौकीदार चोर है’ मुद्दे पर अदालत में घेरने के कारण उनका टिकट बच गया। आम आदमी पार्टी इस सीट पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दे रही है।
असल में आप ने कांग्रेस को जिन सीटों की पेशकश की थी, उनमें नई दिल्ली भी थी। इसलिए पार्टी को ख़ुद को अपने उम्मीदवार बृजेश गोयल से ज़्यादा उम्मीदें नहीं हैं। बृजेश गोयल व्यापारियों के नेता हैं, लेकिन सीलिंग के मुद्दे पर जिस तरह आप को भी घेरा जाता है, उससे वह चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
चाँदनी चौक
चाँदनी चौक की सीट दूसरी ऐसी सीट थी जो आम आदमी पार्टी कांग्रेस को देना चाहती थी। यहाँ आप के उम्मीदवार पंकज गुप्ता हैं। बीजेपी और कांग्रेस ने दिग्गजों को उतारा है। बीजेपी के इंटरनल सर्वे में यह सीट काफ़ी मुश्किल बन गई है, क्योंकि नोटबंदी के बाद जीएसटी और उसके बाद सीलिंग ने यहाँ के व्यापारियों को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है। मगर, बीजेपी ने डॉ. हर्षवर्धन को उनकी परंपरागत सीट पूर्वी दिल्ली पर उतारने की बजाय चाँदनी चौक में उतारा है। कांग्रेस ने जयप्रकाश अग्रवाल को उतारा और यह उनकी घर वापसी हो गई। वह सीट पर तीन बार एमपी रह चुके हैं। इस सीट पर मुसलिम, वैश्य और पंजाबी समुदाय सबसे ज़्यादा असर रखते हैं। इत्तिफ़ाक से तीनों ही उम्मीदवार वैश्य समाज से हैं। इसलिए वोटों का बँटना और कटना इस सीट का फ़ैसला करेगा।
दक्षिण दिल्ली
दक्षिण दिल्ली की सीट को आप पूर्वी दिल्ली के साथ अपनी सबसे मज़बूत सीट मान रही है। पार्टी के उम्मीदवार राघव चड्ढा काफ़ी असरदार ढंग से प्रचार कर रहे हैं। यहाँ गुर्जरों और जाटों का बोलबाला रहा है। यही वजह है कि बीजेपी ने यहाँ से रमेश बिधूड़ी को फिर से उम्मीदवार बनाया है जो गुर्जर समाज से हैं। कांग्रेस ने भी जातीय समीकरण को देखते हुए बॉक्सर विजेंद्र सिंह को उतारा है जो जाट हैं।
जातिगत समीकरणों के साथ-साथ दक्षिण दिल्ली की पॉश कॉलोनियों में बीजेपी का पारंपरिक वोटर भी हैै। देखना यही होगा कि कांग्रेस उसमें कितनी सेंध लगाती है या फिर राघव चड्ढा अपनी छवि से कितना वोट बटोर पाते हैं।
पश्चिमी दिल्ली
पश्चिमी दिल्ली में एक तरफ़ जाटों के प्रभुत्व वाली पाँच विधानसभा सीटें हैं तो दूसरी तरफ़ सिख बाहुल्य पाँच सीटें हैं। बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को फिर से उम्मीदवार बनाया है। पिछले कुछ समय से द्वारका सबसिटी बसने और आसपास अनधिकृत कॉलोनियों का पूरा जाल फैलने के बाद इस सीट पर पूर्वांचल के वोटर भी काफ़ी बड़ी तादाद में हैं। 2009 में चुनाव के आख़िरी दौर में डॉ. मनमोहन सिंह ने यहाँ प्रचार करके सिख वोटरों को अपने पक्ष में कर लिया था जिससे महाबल मिश्रा को जीत हासिल हो गई थी। इस बार भी कांग्रेस ने महाबल मिश्रा को इसी मंशा से उतारा है। आम आदमी पार्टी के पास यहाँ सिख वोटरों का पूरा समर्थन रहा है, लेकिन उन्होंने किसी सिख को उम्मीदवार बनाने की बजाय बलबीर सिंह जाखड़ यानी एक जाट को उम्मीदवार चुना है। शायद उनकी योजना प्रवेश वर्मा के वोटों को काटने की है।
उत्तर-पश्चिम दिल्ली
उत्तर-पश्चिम दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुग्गन सिंह रंगा हैं। बीजेपी ने यहाँ से उदित राज का टिकट काटकर आख़िरी क्षणों में सिंगर हंसराज हंस को टिकट दिया है। वह दिल्ली से नहीं हैं और इस इलाक़े से उनका कोई नाता भी नहीं रहा है। गुग्गन सिंह ख़ुद बीजेपी में रहे हैं और भीतरघात का लाभ उठा सकते हैं। कांग्रेस ने दिल्ली की इस इकलौती रिजर्व सीट पर अपने कार्यकारी अध्यक्ष राजेश लिलोठिया को उतारने का फ़ैसला किया। यह सीट अनिश्चितता पैदा करती दिखाई दे रही है।
वोटों का बँटवारा तय
यह चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए जीवन-मरण की तरह साबित होगा। अगर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो फिर उसका मैसेज सात महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों तक जाएगा। अगर कांग्रेस दूसरे नंबर पर भी नहीं रही या कांग्रेस ने एकाध सीट पर कहीं चमत्कार कर दिया तो फिर आम आदमी पार्टी के लिए जनवरी में होने वाले विधानसभा चुनावों में चुनौती और भी गंभीर हो जाएगी। कांग्रेस के प्रदर्शन का दारोमदार मुसलिम वोटों पर अधिक है। बीजेपी को कौन हरा सकता है, यही मुसलिम वोटों का मूलमंत्र होता है। ऐसी हालत में कांग्रेस की वापसी का रास्ता भी खुल सकता है। वैसे, यह सभी जानते हैं कि आप और कांग्रेस इसलिए ही समझौता करना चाहते थे कि बीजेपी के ख़िलाफ़ पड़ने वाले वोटों का बँटवारा न हो। जो तसवीर बन रही है, उसमें वोटों का बँटना तय है।