जीवन के लिए कुदरत की दो नियामतें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं- हवा और पानी। अगर हम कुदरत के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें ज़हरीला बना दें तो फिर इसका मतलब यह है कि हम जीना ही नहीं चाहते। दिल्ली की यह बदक़िस्मती है कि आज यहाँ हवा और पानी दोनों ही न तो साफ़ हैं और न ही सेफ़। कोढ़ में खाज यह है कि हवा और पानी साफ़ करने की ज़िम्मेदारी हम जिन लोगों पर डाल बैठे हैं, उन्हें इनकी फ़िक्र नहीं है। वे हवा और पानी को शुद्ध करने की बजाय एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालकर तमाशा देख रहे हैं। यह सच है कि सारी ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है लेकिन दिल्ली के बाशिंदे तो अपनी तरफ़ से जो भी कोशिश कर लें, अगर सरकारें आपस में टकराव का ऐसा तमाशा करेंगी तो सचमुच वह अफ़सोसजनक भी है और ख़तरनाक भी।
दिल्ली में प्रदूषण पर रोक लगाने की बजाय केंद्र की बीजेपी सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार दोनों ही जनता को बेवकूफ बनाने के सिवाय कुछ नहीं कर रहीं। अगर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी नहीं हों तो फिर वे उपाय भी नहीं किए जाते, जो कम से कम नज़र आ रहे हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पराली-पराली की धुन बजाते हुए अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं। ऑड-ईवन का तमाशा भी उन्होंने ख़ूब किया। यहाँ तक कि मीडिया को बुलाकर मंत्रियों की गाड़ियों को शेयरिंग करते हुए या फिर उनके मंत्री साइकिल या मेट्रो से ऑफ़िस जाने का नाटक करते भी नज़र आए।
दिल्ली में अक्टूबर के आख़िरी हफ़्ते से मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है और उसी के बाद से प्रदूषण का कहर भी दिल्ली की हवा को ज़हरीला बना देता है। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि सर्दी शुरू होते ही भारीपन के कारण धूल के कण हवा में ही तैरते रहते हैं और तेज़ हवाएँ न होने के कारण वे न तो उड़ सकते हैं और न ही इंसानी सीमाओं से दूर जा सकते हैं। ऐसी हालत में अगर बारिश आ जाए या फिर तेज़ हवाएँ चलने लगें तो फिर इस प्रदूषण से कुछ निजात मिल सकती है। झाड़ू से सफ़ाई की बजाय मशीनों से सफ़ाई, कंस्ट्रक्शन पर रोक, उद्योगों के धुएँ पर रोक के साथ-साथ हवा को साफ़ करने वाले बड़े-बड़े टावर लगाना ऐसे उपाय हैं जो अक्टूबर के पहले हफ़्ते से ही शुरू कर दिए जाने चाहिए थे।
केजरीवाल सरकार या दिल्ली नगर निगम ने क्या किया? नगर निगम तो खैर तब तक सोता ही रहता है, जब तक सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी का डंडा नहीं चलता। दिल्ली सरकार ने भी क्या किया। केजरीवाल ने बस मीडिया में बड़े-बड़े विज्ञापन जारी कर दिए कि हमने तो अपनी तरफ़ से पूरे इंतज़ाम कर दिए हैं और इन इंतज़ामों से दिल्ली में 25 फ़ीसदी प्रदूषण कम हो गया है। अब तो जो भी प्रदूषण होगा, वह पराली के कारण होगा। पराली की ज़िम्मेदारी या तो केंद्र सरकार की है या फिर पंजाब और हरियाणा सरकार की। 25 फ़ीसदी प्रदूषण कम हो गया, इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं बताया गया। उन्होंने ऑड-ईवन का भी एलान कर दिया और यह दिखाने की कोशिश की कि दिल्ली सरकार तो पूरी तरह चौकस है।
दिल्ली सरकार यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि सिर्फ़ पराली ही दिल्ली के प्रदूषण का कारण नहीं है। अगर 10 अक्टूबर तक दिल्ली की हवा साफ़ थी तो उसका कारण मौसम ही था। अगर आप ऑड-ईवन के दौरान दिल्ली की बात करें तो 4 नवंबर से ही दिल्ली में तेज़ हवाएँ चलनी शुरू हो गई थीं और यह बात एक्सपर्ट्स ने पहले से कह दी थी कि तेज़ हवाओं के कारण प्रदूषण कम होगा। केजरीवाल ने इसका श्रेय ऑड-ईवन को दे दिया। 9 नवंबर तक हवाओं का यह सिलसिला जारी था। 10 नवंबर को रविवार को ऑड-ईवन लागू नहीं था और 11-12 नवंबर को गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव के कारण इसमें छूट दे दी गई। इस दौरान हवाएँ कम हो गई थीं और दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स फिर से 400 के क़रीब पहुँच गया। इस बार केजरीवाल के लाडले संजय सिंह ने बयान दिया कि गुरु नानक जयंती के कारण बहुत सारे व्हिकल सड़क पर आ गए और प्रदूषण बढ़ गया। 13 नवंबर को ऑड-ईवन लागू था लेकिन एक्यूआई 600 के भी पार था। 14 और 15 नवंबर को भी यही हालात थे। यानी ऑड-ईवन प्रदूषण कम करने में पूरी तरह नाकामयाब था। 16 नवंबर को फिर से हवाएँ तेज़ चलने लगीं और एयर क्वालिटी इंडेक्स 200 से भी कम हो गया।
16 नवंबर को केजरीवाल ने दावा किया कि पराली जलनी बंद हो गई है और अब दिल्ली में प्रदूषण इतना कम हो गया है। लेकिन हवाओं का रुख और गति 19 तारीख़ से फिर मंद हो गई और प्रदूषण फिर बढ़ गया। अब पता नहीं केजरीवाल किस मुँह से कहेंगे कि पराली फिर से जलनी शुरू हो गई है।
जहाँ तक केंद्र सरकार का सवाल है, इसने प्रदूषण पर बुलाई बैठकें महत्वपूर्ण न समझते हुए दो बार ख़ुद ही रद्द कर दी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने जब केंद्र से यह जवाब माँगा कि उसने प्रदूषण कम करने के लिए आख़िर क्या क़दम उठाए हैं तो उन क़दमों को देखकर उसकी स्थिति हास्यास्पद ही हो गई। हरियाणा और पंजाब के किसानों के लिए क्या-कुछ किया गया है, वह सब ऊँट के मुँह में जीरे के बराबर ही था। जब बात दिल्ली की आती है तो फिर वे सारी ज़िम्मेदारी केजरीवाल पर डालकर हाथ झाड़ने लगते हैं।
दिल्ली में पानी: 11 सैंपल लिए सभी फ़ेल
अब बात पानी की। उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने दिल्ली समेत 20 शहरों के पानी पर रिपोर्ट जारी की जिनमें से 14 शहरों में दूषित पानी की रिपोर्ट आई। भारतीय मानक ब्यूरो ने दिल्ली में पानी के 11 सैंपल उठाए और सारे के सारे फ़ेल हो गए। दिल्ली जल बोर्ड सीएम केजरीवाल के अधीन है और सीएम होते हुए सिर्फ़ यही विभाग उन्होंने अपने पास तब से रखा हुआ है जब कपिल मिश्रा को मंत्रिमंडल से निकाला गया था। अब आम आदमी पार्टी यह कैसे बर्दाश्त कर ले कि जल बोर्ड का पानी दूषित है। इसे लेकर बीजेपी मैदान में उतर आई कि पानी गंदा है और केजरीवाल ज़िम्मेदार हैं तो दूसरी तरफ केजरीवाल एंड पार्टी यह साबित करने में लगी हुई है कि यह तो राजनीतिक खेल है और पासवान ने दिल्ली सरकार को बदनाम करने के लिए यह टेस्ट कराया है।
हैरानी की बात है कि जिन 13 और शहरों का पानी गंदा साबित हुआ है, उनमें पीएम के राज्य गुजरात का गाँधीनगर भी शामिल है और यूपी के दो शहर लखनऊ व देहरादून भी हैं। जहाँ विपक्षी दलों की सरकारें हैं यानी हैदराबाद और भुवनेश्वर के पानी को साफ़ बताया गया है। इन सब शहरों में कोई राजनीतिक खेल का आरोप नहीं लगा लेकिन दिल्ली में खुलकर राजनीति हो रही है। अब पानी साफ़ करने या साफ़ होने को साबित करने की बजाय इस बात पर ही ज़ोर है कि यह सियासी साज़िश है या नहीं।
अब दिल्ली की जनता के दिमाग़ में एक ही बात है कि अगर हवा और पानी भी न तो साफ़ है और न ही सेफ़ तो फिर दिल्ली में जियेंगे कैसे?