उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में कांग्रेस अब शून्य होने वाली है। साल 1935 में विधान परिषद के गठन के बाद यह पहला मौका होगा जब इस सदन में कांग्रेस का कोई भी नेता मौजूद नहीं होगा। सदन में कांग्रेस के अकेले एमएलसी दीपक सिंह 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं।
दीपक सिंह कांग्रेस के पुराने नेता हैं और साल 2016 में विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे।
उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य होने की खबर राज्य के कांग्रेसियों के टूटे हुए मनोबल को और तोड़ सकती है क्योंकि विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत लगाने के बाद भी पार्टी ढाई से तीन फीसद वोट ही हासिल कर सकी थी और उसे दो ही सीट नसीब हुई।
उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में 100 सीटें हैं। बीजेपी इस समय विधान परिषद में प्रचंड बहुमत में है और उसके पास 66 सदस्य हैं।
अप्रैल में विधान परिषद की 36 सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी को 33 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। समाजवादी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी।
फ्लॉप साबित हुईं प्रियंका
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने जमकर चुनाव प्रचार किया लेकिन वह फ्लॉप साबित हुईं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास लोकसभा की सिर्फ एक सीट है और ऐसा नहीं लगता कि वह प्रदेश में फिर अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है।
वेंटिलेटर पर है पार्टी
विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य होना इस बात को बताता है कि लंबे वक्त तक इस राज्य में सरकार चला चुकी यह पार्टी अब वेंटिलेटर पर है। प्रियंका गांधी भरपूर कोशिशों के बाद भी इसे ऑक्सीजन देने में नाकाम रही हैं तो ऐसे में देश के इस सबसे बड़े सूबे में क्या कांग्रेस के फिर से जिंदा होने की कल्पना करना बेईमानी है? इस सवाल का जवाब जिला, शहर, ब्लॉक और ग्रामीण कांग्रेस कमेटियों में काम कर रहे हजारों कार्यकर्ता मांग रहे हैं।
बीएसपी का भी बुरा हाल
कांग्रेस जैसी ही हालत बहुजन समाज पार्टी की भी है जिसके तीन सदस्य कुछ ही महीने बाद इस सदन से रिटायर होने वाले हैं और तब उसके पास सदन में सिर्फ एक ही सदस्य रह जाएगा। विधानसभा के चुनाव में बीएसपी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है और वह इस सियासी हैसियत में नहीं है कि किसी सदस्य को विधान परिषद भेज सके।