कांग्रेस ने विपक्ष को एकजुट करने की अपनी रणनीति तेज कर दी है। खबर है कि आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल को सीबीआई द्वारा संडे को तलब किए जाने की खबर जब शुक्रवार को सामने आई तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने केजरीवाल को फोन किया और इस कार्रवाई की निन्दा की। अभी तक कांग्रेस और केजरीवाल दूर-दूर थे। लेकिन यह पहला मौका है जब किसी कांग्रेस अध्यक्ष ने केजरीवाल को फोन कर समर्थन जताया। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी आज इस बात की निन्दा की है कि केंद्रीय एजेंसियां अब केजरीवाल को भी परेशान कर रही हैं।
विपक्षी एकता की धुरी बनते नेता।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे और नीतीश कुमार लगातार विपक्षी दलों को संपर्क कर रहे हैं। मकसद एक ही है कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करना। तीन दिन पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार दिल्ली में थे। दिल्ली में उन्होंने खड़गे के आवास पर राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की। उनसे मुलाकात के फौरन बाद नीतीश कुमार केजरीवाल से मिलने चले गए। नीतीश की खड़गे-राहुल मुलाकात में ही यह तय हो गया था कि अब कांग्रेस सभी विपक्षी दलों के लिए अपना रुख लचीला रखेगी। उसी का नतीजा है कि खड़गे ने शुक्रवार शाम को केजरीवाल को फोन किया।
खड़गे ने भाजपा के खिलाफ 'समान विचारधारा' वाली पार्टियों को एकजुट करने के प्रयास में डीएमके के एमके स्टालिन और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सहित अन्य लोगों से भी बात की थी। लेकिन केजरीवाल से शुरू हुई कांग्रेस की बातचीत महत्वपूर्ण है। आप ने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की है। इसलिए दोनों दलों में काफी दूरियां बनी हुई थीं। लेकिन सीबीआई और ईडी के छापों ने सभी विपक्षी दलों को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है।
आम आदमी पार्टी को शुरू में कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने बीजेपी की बी पार्टी घोषित किया हुआ था। लेकिन जब केजरीवाल के खासमखास सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया करप्शन के आरोप में जेल चले गए और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली में केजरीवाल का सरकार चलाना मुश्किल कर दिया तो आम आदमी पार्टी से यह दाग धुल गया कि वो बीजेपी की बी टीम है। हालांकि पंजाब में आप की सरकार बनने के बाद ही केंद्र की मोदी सरकार ने आप नेताओं पर कार्रवाई शुरू की। क्योंकि पंजाब जीतने के बाद ही बीजेपी ने आप को बड़ा खतरा बताया और माना।
बीजेपी की बी टीम की छवि से बाहर निकलने के बाद अब कांग्रेस को भी आप से बात करने में कोई गुरेज नहीं है। विपक्षी एकता की जो तस्वीर पिछले दिनों उभरी थी, उसमें कांग्रेस एक तरफ थी तो दूसरी तरफ केजरीवाल, अखिलेश यादव ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव आदि अपना अलग मोर्चा बनाने की फिराक में थे। ममता और केसीआर ने इस संबंध में नीतीश से मुलाकात भी की थी लेकिन नीतीश ने इन लोगों से साफ कर दिया कि कांग्रेस बिना कोई भी विपक्षी मोर्चा सफल साबित नहीं होगा। जिस तरह केसीआर, केजरीवाल और ममता की पार्टियों के नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियां एक्शन ले रही हैं, उसने इन दलों को भी बदले हुए हालात में कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे में शामिल होने में फायदा दिख रहा है।
नीतीश और केजरीवाल की मुलाकात अभी हाल ही में हुई थी।
नीतीश कुमार ने कई मौकों पर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए हाथ मिलाने की सलाह दी थी। इस बीच तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने भी विपक्षी नेताओं को स्पष्ट संदेश दिया कि सामाजिक न्याय के लिए सभी दलों को एकजुट होना पड़ेगा। स्टालिन के बयान का खासा असर हुआ।
केजरीवाल को अगर कांग्रेस यूपीए का हिस्सा बनाती है तो इसे आम आदमी पार्टी की ही सफलता माना जाएगा। क्योंकि तमाम विपक्षी दलों के बीच उसकी स्थिति अछूत वाली बनी हुई थी। लेकिन विपक्षी एकजुटता के लिए दोनों साथ आ रहे हैं। हालांकि इसका कुछ श्रेय आप सांसद संजय सिंह को भी जाता है। पिछले दिनों जब बजट सत्र के दौरान अडानी मुद्दे पर संसद ठप हुई तो संजय सिंह कांग्रेस का साथ देते आए। संजय सिंह अडानी विरोधी पोस्टर लेकर साथ खड़े हुए। इसे कांग्रेस ने पसंद किया। वैसे भी राजनीति में कोई स्थायी दोस्ती-दुश्मनी नहीं रहती। इसलिए कांग्रेस और आप की नजदीकी विपक्षी मोर्चे को काफी मजबूत करेगी।
महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार भी हाल ही में राहुल और खड़गे से मिले थे और विपक्षी एकता को मजबूत करने की बात कही थी। शरद पवार ने खड़गे और राहुल से नीतीश की मुलाकात के एक दिन बाद दिल्ली आकर बात की थी। हालांकि इससे पहले पवार ने अडानी मामले में जेपीसी जांच का विरोध कर बीजेपी को खुश कर दिया था। लेकिन बाद में पवार ने अपनी गलती सुधार ली और उसी के तहत वो दिल्ली आकर खड़गे और राहुल से मिले।विपक्षी एकता का सीन अभी तो बहुत मजबूत लग रहा है लेकिन 2024 में विपक्ष के एकजुट होकर चुनाव लड़ने पर सवाल अभी भी बने हुए हैं। दिल्ली में लोकसभा की सात सीटों पर कांग्रेस और केजरीवाल की पार्टी का गठबंधन कैसे होगा, क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस सभी सीटों पर लड़ती रही है। यानी 2024 में विपक्ष की एकता में दरार सीट बंटवारे से पड़ सकती है।