भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने न्यायपालिका को देश के लोकतंत्र का गार्डियन यानी संरक्षक बताया है और कहा है कि भारत के लोग जानते हैं कि जब चीजें ग़लत होंगी तो न्यायपालिका उनके साथ खड़ी होगी। मुख्य न्यायाधीश की इस टिप्पणी का साफ़ मतलब है कि देश में चीज़ें क़ानून से ही चलेंगी और जो संविधान विरोधी या आम लोगों के ख़िलाफ़ होंगी तो फिर न्यायपालिका लोगों की पक्षधर होगी।
मुख्य न्यायाधीश रमन्ना शनिवार को भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन 2021 के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। इसमें रमन्ना ने कहा, 'भारतीय न्यायिक प्रणाली न केवल एक लिखित संविधान के कारण, बल्कि लोगों द्वारा इस सिस्टम में व्यक्त किए गए अपार विश्वास के कारण भी अद्वितीय है।'
न्यायपालिका को लोकतंत्र का संरक्षक या अभिभावक बताने और इसको आम लोगों के लिए खड़े होने वाली टिप्पणी करने से पहले राजद्रोह क़ानून पर सुनवाई के दौरान भी मुख्य न्यायाधीश का यही विचार झलका था। मुख्य न्यायाधीश रमन्ना के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तीन दिन पहले ही पूछा था कि देश के आज़ाद होने के 75 साल बाद भी क्या राजद्रोह के क़ानून की ज़रूरत है।
सीजेआई ने कहा था कि इस क़ानून को लेकर विवाद यह है कि यह औपनिवेशिक है और इसी तरह के क़ानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए किया था। बेंच ने कहा कि यह क़ानून संस्थानों के काम करने के रास्ते में गंभीर ख़तरा है और इसमें ऐसी असीम ताक़त है जिनका ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है।
लोकतंत्र को लेकर ऐसी ही टिप्पणी सीजेआई ने हाल ही में प्रलीन ट्रस्ट द्वारा वर्चुअल माध्यम से आयोजित जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल ट्रस्ट के 17वें व्याख्यान में भी की थी। मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने क़ानूनी विद्वान जूलियस स्टोन के कथन का ज़िक्र करते हुए कहा था, 'हर कुछ वर्षों में एक बार शासक को बदलने का अधिकार, अपने आप में तानाशाही के ख़िलाफ़ सुरक्षा की गारंटी नहीं होनी चाहिए'। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि चुनाव, दिन-प्रतिदिन के राजनीतिक संवाद, आलोचना और विरोध की आवाज़ 'लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अभिन्न अंग' हैं।
सीजेआई रमन्ना ने कहा था कि आज़ादी के बाद से 17 आम चुनावों में जनता ने अपने कर्तव्यों को उचित रूप से निभाया है और अब उन लोगों की बारी है जो राज्य के प्रमुख अंगों का प्रबंधन कर रहे हैं कि वे इस पर विचार करें कि क्या वे संवैधानिक जनादेश पर खरा उतर रहे हैं।
अब मुख्य न्यायाधीश की ताज़ा टिप्पणी भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन में आई है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, 'लोगों को भरोसा है कि उन्हें न्यायपालिका से राहत और न्याय मिलेगा। यह उन्हें विवाद से निपटने में आगे बढ़ने की ताक़त देता है। वे जानते हैं कि जब चीजें ग़लत होंगी तो न्यायपालिका उनके साथ खड़ी होगी। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय सबसे बड़े लोकतंत्र का संरक्षक है।'
उन्होंने आगे कहा कि संविधान भारतीय सुप्रीम कोर्ट के आदर्श वाक्य 'यतो धर्मस्ततो जय:' यानी 'जहां धर्म है, वहां जीत है' को जीवन में उतारने के लिए पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने के लिए व्यापक शक्तियां और अधिकार क्षेत्र देता है।'
विवाद निपटारे के लिए मध्यस्थता को मुख्य न्यायाधीश ने काफ़ी अहम बताया। उन्होंने कहा कि एक अवधारणा के रूप में मध्यस्थता भारतीय लोकाचार में गहराई से अंतर्निहित है। उन्होंने कहा कि भारत में ब्रिटेन की प्रतिकूल प्रणाली के आने से बहुत पहले विवाद समाधान की एक विधि के रूप में मध्यस्थता के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि लेकिन 1775 में ब्रिटिश अदालत प्रणाली की स्थापना के बाद से भारत में समुदाय आधारित स्वदेशी विवाद समाधान तंत्र ख़त्म होने लगा।
मुख्य न्यायाधीश ने गुजरात उच्च न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के वर्चुअल लॉन्च कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग से न्यायाधीश 'सार्वजनिक पड़ताल का दबाव महसूस कर सकते हैं', लेकिन एक न्यायाधीश को लोकप्रिय राय से प्रभावित नहीं होना चाहिए।