जिस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं वैसा ही होता दिख रहा है। एलजेपी में हुई टूट के वक़्त से ही यह माना जा रहा है कि बाग़ी गुट के नेता पशुपति पारस को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है और अब इस बारे में ख़ुद पारस ने ही संकेत दिए हैं।
एलजेपी के सांसद पशुपति पारस ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा है कि जिस दिन वे मंत्री बन जाएंगे संसदीय दल के नेता के पद से इस्तीफ़ा देकर अपने किसी दूसरे साथी को नेता बनाएंगे। इससे साफ है कि पारस की बीजेपी आलाकमान से डील हो चुकी है और वह इस महीने के अंत में केंद्रीय कैबिनेट के संभावित विस्तार का हिस्सा हो सकते हैं।
बीजेपी की भूमिका
पारस के इस बयान के बाद यह माना जा सकता है कि एलजेपी में हुई इस टूट में जेडीयू के साथ ही बीजेपी की भी भूमिका है। ऐसी ख़बरें हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वस्त सहयोगी ललन सिंह ने एलजेपी में टूट को अंजाम दिया था। लेकिन पारस का मंत्री बनने की बात को खुलकर कहने का मतलब है कि बीजेपी से भी उनकी कोई बातचीत हुई है।
हालांकि एनडीटीवी के मुताबिक़, बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली नेतृत्व को सुझाव दिया है कि चिराग पासवान के ख़िलाफ़ पशुपति पारस का आंख बंद करके समर्थन करना ग़लती साबित होगा।
पशुपति पारस को 17 जून को पटना में हुई एलजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। इससे कुछ दिन पहले उन्हें एलजेपी संसदीय दल का नेता भी चुना गया था हालांकि चिराग पासवान ने कहा है कि पारस को नेता चुने जाने की प्रक्रिया पार्टी के संविधान के हिसाब से ग़लत है। उन्होंने कहा है कि संसदीय दल का नेता चुनने की शक्ति केंद्रीय संसदीय बोर्ड के पास है।
सियासी कसरत
उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के सामने आ रहे विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी संगठन और केंद्र सरकार ने सियासी कसरत शुरू कर दी है। बीते हफ़्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच 5 घंटे तक बैठक चली। यह बैठक प्रधानमंत्री के आवास पर हुई और इतनी लंबी बैठक होने के पीछे केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार को अहम वज़ह माना जा रहा है।
इसके अलावा भी प्रधानमंत्री मोदी ने बीते दिनों कई केंद्रीय मंत्रियों से अलग-अलग मुलाक़ात की है और उनके विभागों की समीक्षा की गई है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बीजेपी के दो बड़े सहयोगी छिटक कर जा चुके हैं। ये सहयोगी शिव सेना और शिरोमणि अकाली दल हैं। इनके मंत्रियों के इस्तीफ़े के अलावा भी दो दर्जन से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं और कुछ वरिष्ठ मंत्रियों के पास ज़्यादा विभाग हैं।
पहले विस्तार का इंतजार
मई, 2019 में दूसरी बार सरकार बनने के बाद से दो साल का वक़्त गुजर चुका है और अब तक केंद्रीय कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ है। लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए इसकी ज़रूरत समझी जा रही है और मोदी सरकार और संगठन इस काम में जुटे हुए हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तीन बार कैबिनेट का विस्तार किया गया था।