क्या पिछले साल मुंबई में बिजली आपूर्ति में बड़े पैमाने पर हुई गड़बड़ी के पीछे चीन का हाथ था? क्या चीनी हैकरों ने साइबर हमला कर बिजली आपूर्ति ठप कर दी थी?
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह आशंका जताई है।
क्या है मामला?
इस अख़बार का कहना है कि चीन ने मुंबई में बिजली आपूर्ति ठप कर भारत को यह संकेत देने की कोशिश की थी कि यदि दोनों देशों में युद्ध हुआ तो पूरा देश ही अंधेरे में डूब सकता है। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि इस तरह की गड़बड़ियाँ हिमालय में भी की गईं, जहाँ तकरीबन दो दर्जन लोग मारे गए। चीनी मैलवेअर भारत की बिजली आपूर्ति प्रणाली, हाई वोल्टेज सब स्टेशन और कोयला से चलने वाली बिजलीघरों तक फैल गए।अमेरिकी राज्य मैसाच्युसेट्स स्थित सॉमरविल की कंपनी रिकॉर्डेड फ़्यूचर ने अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। यह कंपनी सरकारी एजेंसियों के इंटरनेट कामकाज का अध्ययन करती है। इसने यह भी पाया कि ज़्यादातर चीनी मैलवेअरों को सक्रिय नहीं किया गया। रिकॉर्डेड फ़्यूचर भारत के बिजलीघरों और बिजली आपूर्ति प्रणाली में सेंध नहीं लगा सकी, लिहाज़ा उसे पूरी जानकारी नहीं है। उसने भारत के अधिकारियों को यह जानकारी ज़रूर दे दी कि उस पर साइबर हमला किसने किया था।
रिकॉर्डेड फ़्यूचर के चीफ़ ऑपरेटिंग अफ़सर स्टुअर्ट सोलोमन ने कहा,
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'चीन की सरकार-समर्थित समूह रेड ईको ने साइबर घुसपैठ तकनीक का बखूबी इस्तेमाल किया और भारत की बिजली उत्पादन व बिजली आपूर्ति प्रणालियों के लगभग दर्जन भर नोड्स को कब्जे में कर लिया।'
स्टुअर्ट सोलोमन, चीफ़ ऑपरेटिंग अफ़सर, रिकॉर्डेड फ़्यूचर
क्या कहना है भारत का?
अख़बार का कहना है कि भारत अभी भी साइबर हमले या उससे जुड़े कोड की बात नहीं मान रहा है। इसकी वजह यह है कि भारत कूटनीतिक लिहाज से इसे देख रहा है और बीजिंग के साथ रिश्ते बदतर करना नहीं चाहता।
इसे इससे समझा जा सकता है कि विदेश मंत्री सुब्रमणियन जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हाल-फ़िलहाल बातचीत हुई है। दोनों देश रिश्ते सुधारना चाहते हैं, दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिक वापस बुलाए हैं। ऐसे में भारत साइबर हमले की बात उठा कर इस वातावरण को खराब करना नहीं चाहता है।
मैलवेअर का कोड
रिकॉर्डेड फ़्यूचर का अध्ययन करने वाले जाँचकर्ताओं ने यह माना है कि अज्ञात मैलवेअर और मुंबई की बिजली सप्लाई ठप होने के बीच के संबंध को स्थापित नहीं किया जा सका है, यह पूरे विश्वास के साथ दावा नहीं किया जा सकता है कि इस कारण ही बिजली आपूर्ति ठप हुई थी। पर उन्होंने पाया कि इसके सबूत हैं कि बिजली प्रणाली के लोड डिस्पैच सेंटर और अॅज्ञात मैलवेअर के बीच रिश्ते को खारिज नहीं किया जा सकता है।
इससे यह तो साबित होता ही है कि बिजली सप्लाई प्रणाली में एक मैलवेअर डाल देने से ही पूरी प्रणाली ठप हो जा सकती है। इसका व्यावसायिक ही नहीं, सैन्य इस्तेमाल भी है और इसका प्रयोग विरोधियों को मजा चखाने या डराने-धमकाने के लिए भी किया जा सकता है। इसका असर लाखों लोगों की ज़िन्दगी पर पड़ सकता है।
रिटायर्ड लेफ़्टीनेंट जनरल डी. एस. हुडा ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा,
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"मुझे लगता है कि चीन ने यह संकेत दिया है कि उसके पास ऐसी क्षमता है और वह संकट के समय ज़रूरत पड़ने पर इस तरह की गड़बड़ियाँ पैदा कर सकता है। उसने भारत को साफ संकेत दे दिया है।"
रिटायर्ड लेफ़्टीनेंट जनरल
भारत-चीन रिश्ते में तनाव
बता दें कि भारत और चीन, दोनों के पास परमाणु हथियार हैं और दोनों ही एक दूसरे को यह दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। पर कोई यह नहीं मानता है कि उसे दूसरे के ख़िलाफ़ इन हथियारों का इस्तेमाल करना चाहिए। दोनों देशों के बीच तनाव है, सीमा विवाद है, दोनों ही जगहों पर उग्र राष्ट्रवाद है, लेकिन वे परमाणु युद्ध की बात भी नहीं सोच सकते।
ऐसे में साइबर हमला बेहतर विकल्प है। इससे तबाही कम होगी, लेकिन इसका रणनीतिक महत्व उतना ही है, वैसा ही मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है।
रूस ने की थी शुरुआत
इस साइबर हमले का अगुआ रूस है। उसने कुछ साल पहले यूक्रेन के बिजलीघरों पर इस तरह का साइबर हमला किया था। अमेरिका भी ऐसा ही कर चुका है। अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी ने शिकायत की कि रूसी हैकरों ने उसके बिजलीघरों में मैलवेअर कोड डाल दिए हैं तो अमेरिका ने बदले की कार्रवाई करते हुए रूस की बिजली प्रणाली में अपने मैलवेअर के कोड लगा दिए। रूस ने अमेरिका की नौ सरकारी एजेंसियों के 100 से ज़्यादा निगमों पर साइबर हमले किए थे।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने यह भी कहा है कि अमेरिकी कंपनी सोलरविन्ड्स ने नेटवर्क मैनेजमेंट सॉफ़्टवेअर तैयार किया है। इसका मक़सद जानकारियाँ चुराना है। लेकिन यह इससे भी बढ़ कर काम करती है। यह इससे पता चलता है कि कुछ अमेरिकी कंपनियों ने रूसी कोड डाउनलोड किया, लेकिन उसकी अपनी प्रणाली पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने रूसी मैलवेअर को संभाल लिया, यानी उसे बेअसर कर दिया।
बीते कुछ सालों से चीन का ज़ोर दूसरी जगहों से सूचनाएं चुराने पर रहा था, पर वह अब अपने कोड दूसरे की सिस्टम में डाल कर उसे तबाह करने का हुनर सीख चुका है।
क्या कहना है भारत का?
जहाँ तक भारत पर रिकॉर्डेड फ़्यूचर के हमले होने की बात है, कंप्यूटर इमर्जेंसी रिस्पॉन्स टीम यानी सीईआरटी को चीनी साइबर हमले के बारे में जानकारी दी गई और उससे पूछा गया।
चीन ने इस पर कुछ नहीं कहा है। लेकिन चीन की सरकारी कंपनी 360 सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी ने भारत पर वुहान में साइबर हमले का आरोप लगाया था। उसने कहा था कि भारत के हैकरों ने सरकार की शह और समर्थन पर वुहान के अस्पतालों और प्रयोगशालाओं को ई-मेल भेजे थे। यह भारत के साइबर हमले का ही हिस्सा था।
इसके पहले भारत की प्रौद्योगिकी और बैंकिंग आधारभूत संरचनाओं पर 40,300 हैकिंग कोशिशें की गईं। भारत की सेवाओं पर हमले किए गए और फिशिंग हमले भी हुए।
साइबर मामलों पर नज़र रखने वाली संस्था साइबर पीस फाउंडेशन का कहना है कि दिसंबर में चीनी साइबर हमले हुए। उसका यह भी कहना है कि इन हमलों के तार चीन के गुआंगडोंग और हेनान प्रांतों से जुड़े हुए थे। वहां स्थित फ़ांग शियाओ किंग नामक कंपनी पर इन हमलों के आरोप लगे हैं। फाउंडेशन का कहना है कि इसका मक़सद भारत पर भविष्य के हमलों की तैयारी करना है।