भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) नियम में हालिया बदलाव पर चीन खफ़ा है। उसने इसे विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के मूल सिद्धान्तों का उल्लंघन क़रार दिया है।
चीन ने कहा है कि यह भेदभावपूर्ण है और बग़ैर किसी भेदभाव के मुक्त व्यापार के नियमों के ख़िलाफ़ है। बीजिंग ने यह उम्मीद भी जताई है कि भारत जल्द ही इस बदलाव को वापस ले लेगा।
भारत सरकार ने शुक्रवार को एक दिशा निर्देश जारी कर कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के डाइरेक्ट रूट का इस्तेमाल उन देशों के लोग नहीं कर सकेंगे, जिनकी सीमाएँ भारत से मिलती हैं।
डाइरेक्ट रूट का इस्तेमाल कर किसी भारतीय कंपनी में कोई विदेशी कंपनी या व्यक्ति सीधे निवेश कर सकता था और उसके बाद वह भारत सरकार को इसकी जानकारी दे सकता था। लेकिन नए नियम में अब उसे निवेश के पहले भारत सरकार की स्वीकृति लेनी होगी।
भारत में पहले ही यह नियम है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश के लोग बग़ैर पूर्व अनुमति के भारत में निवेश नहीं कर सकते, नए नियम में इसमें चीन भी आ जाएगा।
कुल मिला कर मतलब यह है कि चीन का कोई नागरिक या कंपनी भारत सरकार की पूर्व अनुमति के बग़ैर भारत की किसी कंपनी में निवेश नहीं कर सकती।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बदलाव का मक़सद मौजूदा आर्थिक संकट में घरेलू कंपनियों को चीनी अधिग्रहण से बचाना है। ऐसा न हो कि ख़राब आर्थिक स्थिति का फ़ायदा उठा कर चीनी कंपनियाँ भारतीय कंपनियों को खरीद लें।