चीन हिमालय की सीमा पर भूटान के पास नए गांव बसा रहा है। यहां पर तिब्बत शैली के बनाए गए घर नजर आ रहे हैं। सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक डेमलॉन्ग गांव को औपचारिक रूप से पिछले साल मार्च में 70 परिवारों के समुदाय के साथ स्थापित किया गया था। यह गांव चीन का इलाका है लेकिन यह उन चीनी बस्तियों में से एक है जो भूटान के आधिकारिक मानचित्रों पर दिखाई गई सीमा के भीतर भी आता है। पूर्वी हिमालय में समुद्र तल से लगभग 14,000 फीट (4,200 मीटर) ऊपर इस दुर्गम क्षेत्र में पहले चरागाह थे, लेकिन अब, वहां जनसंख्या बढ़ रही है। चीनी सरकार तिब्बत के उस पार से सैकड़ों लोगों को वहां बसने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। चीन का यह क्षेत्र भूटान की सीमा से लगता है।
वे बस्तियाँ विवादित क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के चीन के बढ़ते प्रयासों में एक है। चीनी नेता शी जिनपिंग अपने प्रतिद्वंद्वियों पर चीन की स्थिति को बढ़ाना चाहते हैं। भूटान और चीन दशकों से अभी तक अनसुलझी सीमा वार्ता कर रहे हैं। इन चर्चाओं की पृष्ठभूमि में भारत जो चीन का सबसे बड़ा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी है, उसके लिए मुश्किलें कम नहीं हैं। तिब्बत पर चीन के कब्जे ने स्थितियां विकट बना रखी हैं।
परमाणु संपन्न दोनों देश पहले ही युद्ध में रह चुके हैं और हाल ही में अपनी विवादित 2,100 मील (3,379 किलोमीटर) सीमा पर झड़पें भी हुई हैं, जो भूटान तक फैली हुई है। बीजिंग अब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए तिब्बत को ज्यादा महत्व दे रहा है। सीएनएन ने पृथ्वी डेटा कंपनी प्लैनेट लैब्स द्वारा प्रदान की गई उपग्रह तस्वीरों के साथ-साथ चीनी सरकार के नोटिस, राज्य मीडिया रिपोर्ट और सोशल मीडिया फुटेज की समीक्षा की है। जिससे पता चलता है कि हिमालय घाटी में चीन व्यापक निर्माण कर रहा हैं जिसे चीन जिगेनॉन्ग कहता है और तिब्बती इसे जकारलुंग कहते हैं। जहां निर्माण हुआ है, उस जगह की तस्वीरें लंदन के एसओएएस विश्वविद्यालय के आधुनिक तिब्बत अध्ययन विशेषज्ञ रॉबर्ट बार्नेट ने सीएनएन को दिए थे।
सीएनएन ने उपग्रह तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल करके आधिकारिक तौर पर नामित चार गांवों और पांचवीं बस्ती का भौगोलिक पता लगाया है। तिब्बत क्षेत्र के चीन के आधिकारिक मानचित्र और 2023 सांख्यिकी वार्षिकी में प्रकाशित भूटान के राष्ट्रीय मानचित्र की तुलना से पता चलता है कि यह डेवलेपमेंट दोनों देशों द्वारा दावा किए गए क्षेत्र में स्थित है।
हालाँकि, भूटानी अधिकारियों ने चीनी अतिक्रमण की पिछली रिपोर्टों को बार-बार खारिज किया है, जिसमें पिछले साल एक विदेशी मीडिया इंटरव्यू भी शामिल है। तत्कालीन प्रधान मंत्री लोटे शेरिंग ने "स्पष्ट रूप से" इनकार किया था कि चीन भूटान के क्षेत्र में निर्माण कर रहा है। लेकिन उपग्रह तस्वीरों ने स्थिति साफ कर दी है।
सीएनएन ने जब भूटा से इस पर टिप्पणी मांगी तो जवाब में भूटान के विदेश व्यापार मंत्रालय ने कहा कि इसके उत्तरी जिले लुनत्से में "कोई चीनी बस्तियां नहीं" हैं, जहां सीएनएन ने गांवों की पहचान की है। मंत्रालय के बयान में कहा गया है, "उत्तरी सीमा को कवर करने वाले भूटान के मानचित्र को भूटान-चीन सीमा के सीमांकन के अनुसार अंतिम रूप दिया जाएगा।" उसने दोनों देशों की सीमा वार्ता की ओर भी इशारा किया और कहा कि भूटान को "भरोसा है कि निकट भविष्य में उत्तरी सीमा को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।"
सीएनएन ने चीन के विदेश मंत्रालय से भी बात की है, उसने विवादित क्षेत्र में गांवों के निर्माण से इनकार नहीं किया। मंत्रालय के एक बयान में कहा गया, "भूटान के साथ सीमा क्षेत्र में चीन की निर्माण गतिविधियों का मकसद लोगों की स्थानीय आजीविका में सुधार करना है। क्षेत्रीय स्थिति के संबंध में चीन और भूटान के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन दोनों मैत्रीपूर्ण परामर्श और बातचीत के माध्यम से मतभेदों और विवादों को हल करने के लिए सहमत हैं।"
एसओएएस बार्नेट के नेतृत्व वाली टीम द्वारा सीएनएन के साथ पहले से साझा किये गये नया शोध बड़े पैमाने पर चीनी निर्माण पर नज़र रखता है जिसे शोधकर्ताओं ने 2016 के बाद से 19 "सीमा पार गांवों" और तीन छोटी बस्तियों के रूप में वर्गीकृत किया है। इस शोध के अनुसार, निर्माण पूर्वोत्तर भूटान और राज्य के पश्चिम में सीमावर्ती क्षेत्रों में हुआ है, जो भारत और चीन के बीच विवादित सीमा के पास है।
बार्नेट के अभिलेखीय शोध से पता चलता है कि इस उत्तरी क्षेत्र में भूटान का दावा चीन की तुलना में कहीं अधिक पुराना है। सी-एनएन द्वारा देखा गया 1980 का एक आधिकारिक चीनी मानचित्र भी उत्तरी क्षेत्र को भूटान के हिस्से के रूप में दिखाता है। बार्नेट ने सीएनएन को बताया “चीन, रिश्ते में सबसे शक्तिशाली खिलाड़ी के रूप में, इस बारे में एक प्रयोग कर रहा है कि क्या वह कमोबेश खुद तय कर सकता है कि वह पड़ोसी के साथ विवादित क्षेत्र का कब्जा लेने का हकदार है या नहीं… और वो कैसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जवाब देगा।''
चीन और उसके दक्षिणी पड़ोसियों को अलग करने वाली हिमालय की चोटियों और पठार वो धुंधली सीमाएं हैं जो शाही युग के समझौतों और खानाबदोश मार्गों के बचे हुए अवशेष हैं। लेकिन अब भारत और चीन की बयानबाजी और सैन्य ताकत के कारण महत्वपूर्ण हो गए हैं। दोनों से घिरा हुआ, भूटान लंबे समय से भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता रहा है। भारत को वो अपना सबसे बड़ा विकास और व्यापारिक भागीदार मानता है। चीन जो एक आर्थिक और सैन्य ताकत है, उसके साथ भूटान का कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं रहा है।
भारत-चीन के बीच विवाद 2017 में सुर्खियों में आया था, जब भारत ने चीनी सेना पर भूटान के पश्चिम में तीनों देशों के बीच एक रणनीतिक और विवादित जंक्शन के पास, डोकलाम क्षेत्र में "भूटानी क्षेत्र के अंदर" सड़क बनाने का आरोप लगाया था। फिर, भारतीय सैनिक चीन को रोकने के लिए उस क्षेत्र में चले गए। इससे 73 दिनों तक तनावपूर्ण गतिरोध बना रहा था। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष के हालात बन गए थे। हालांकि डोकलाम भारत के क्षेत्रीय दावों का हिस्सा नहीं है, लेकिन डोकलाम तथाकथित "चिकन नेक" या सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है, जो भारत के सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों के बीच एक महत्वपूर्ण रास्ता है। चीन का दावा है कि डोकलाम "प्राचीन काल से" उसका क्षेत्र रहा है।