मध्य प्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार के दोनों कार्यकालों और फिर 2018 में बनी कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की घोषणा ने पार्टी को असमंजस में डाल दिया है। इस नेता ने छिन्दवाड़ा संसदीय क्षेत्र का हिस्सा अमरवाड़ा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की धर्मपत्नी जसोदा बेन का मंदिर बनवाने का एलान किया है।
अमरवाड़ा वो विधानसभा क्षेत्र है जहां उपचुनाव हो रहा है। उपचुनाव के लिए बिसात बिछी हुई है। सत्तारूढ़ दल भाजपा से पूर्व विधायक कमलेश शाह उम्मीदवार हैं। अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार के लिए आरक्षित अमरवाड़ा सीट को 2023 में लगातार तीसरी बार कमलेश शाह ने कांग्रेस के लिए जीता था।
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान शाह को छिन्दवाड़ा से कांग्रेस के प्रत्याशी नकुल नाथ का आदिवासी वर्ग पर कड़ी टिप्पणी करना ‘रास’ नहीं आया था। आदिवासियों के प्रति कड़ी टिप्पणी (गद्दार बताये जाने) के विरोध एवं आरोप में शाह ने अपनी पत्नी (नगर पंचायत की पूर्व अध्यक्ष रहीं) के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली थी। कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। कमलेश शाह के इस्तीफे के कारण ही सीट रिक्त हुई और उपचुनाव के हालात बने।
उपचुनाव में कांग्रेस ने अब धीरनशा इनावती को टिकट दिया है। धीरनशा अमरवाड़ा क्षेत्र के विख्यात आंचलकुंड धाम के सेवादार के पुत्र हैं। नाथ और उनकी टीम मानकर चल रही है, आंचलकुंड धाम नैया पार लगवा देगा। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं। इससे उपचुनाव में मुकाबला त्रि-कोणीय एवं रोचक हो गया है। अमरवाड़ा में 10 जुलाई को वोट पड़ेंगे और 13 जुलाई को परिणाम आयेगा।
उपचुनाव के लिए चल रहे प्रचार के दरमियान कमल नाथ के दाहिने हाथ माने जाने वाले सज्जन सिंह वर्मा ने एक चुनावी सभा में जसोदा बेन की सादगी और त्याग की खुलकर तारीफ की। वर्मा केवल तारीफ तक सीमित नहीं रहे। अपने इसी भाषण के अगले दौर में उन्होंने एलान किया, ‘अमरवाड़ा में कांग्रेस जीत गई तो जसोदा बेन का मंदिर बनवाया जायेगा।’
सज्जन सिंह वर्मा की इस अजीबो-गरीब घोषणा यानी जसोदा बेन के मंदिर बनाने की बात कहने के बाद ‘रार’ छिड़ी हुई है।
कांग्रेस के बड़े नेताओं और सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं से ‘सत्य हिन्दी’ ने वर्मा की घोषणा पर प्रतिक्रिया मांगी, लेकिन किसी ने भी प्रतिक्रिया नहीं दी। प्रतिक्रिया नहीं देने के साथ ही, इस बारे में कोई भी बात नहीं होने का क्षेपक भी जोड़ दिया।
मीडिया के अन्य साथी भी माइक लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के पीछे लगे, लेकिन ये नेता मीडिया से कन्नी काटकर चले गए। कोई प्रतिक्रिया इन नेताओं ने सज्जन वर्मा की घोषणा (अमरवाड़ा जीते तो जसोदा बेन का मंदिर बनायेंगे) पर नहीं दी।
छिन्दवाड़ा हार से तिलमिलाये कमल नाथ
छिन्दवाड़ा लोकसभा सीट पर पुत्र नकुल नाथ की करारी हार और भाजपा द्वारा कांग्रेस खेमे में की गई जोरदार तोड़फोड़ से कमल नाथ तिलमिलाये हुए हैं। वे अमरवाड़ा विधानसभा के उपचुनाव में फिर हार मिले, क़तई नहीं चाहते हैं। पूरी सतर्कता बरत रहे हैं। पत्ते ऐसे बिछा रहे हैं, जिससे जीत दर्ज हो जाये।
दरअसल, नाथ और कांग्रेसी जान रहे हैं, अमरवाड़ा हारे तो न केवल पुनः जमकर भद पिटेगी, बल्कि मुट्ठी पूरी तरह से खुल जायेगी। नाथ को यह भी इल्म है, अमरवाड़ा हार जाने पर आने वाले वक्त में पार्टी में ‘ठोर की तलाश’ कठिन हो जायेगी।
साल 2024 का लोकसभा चुनाव 1.17 लाख वोट से छिन्दवाड़ा में भाजपा ने कांग्रेस को हराया है। साल 2024 के पहले भाजपा ने इस सीट को 1997 के उपचुनाव में जीता था। लोकसभा के 1996 के चुनाव में हवाला कांड में नाम आने की वजह से कांग्रेस ने कमल नाथ को टिकट नहीं दिया था। नाथ अपनी पत्नी अलका नाथ को टिकट दिलाने और चुनाव जितवाने में सफल रहे थे।
हवाला कांड से क्लीन चिट मिलने पर नाथ ने अलका नाथ से इस्तीफा दिलवा दिया था। उनके इस्तीफे के बाद 1997 में छिन्दवाड़ा लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में कमल नाथ को भाजपा के दिग्गज नेता और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने हराकर इतिहास रच दिया था। पटवा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन भाजपा ने सीट जीतकर इतिहास को दोहरा दिया है।
अमरवाड़ा में कुल 14 चुनाव 10 बार कांग्रेस जीती
अमरवाड़ा सीट 1951 में अस्तित्व में आयी थी। साल 1951 से 2023 के बीच कुल 14 चुनाव हुए। इन 14 चुनावों में 10 बार कांग्रेस, दो बार भाजपा, एक बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और 1967 में जनसंघ ने जीत दर्ज की थी।
कमल नाथ के साथ कमलेश शाह के पहले प्रेम नारायण ठाकुर ने ‘धोखा’ किया था। नाथ के अनुयायियों में शुमार किए जाने वाले ठाकुर ने 2008 का चुनाव अमरवाड़ा से भाजपा के टिकट पर लड़ा और जीता था।
पुराने कांग्रेसी ठाकुर अमरवाड़ा से पहली बार 1980 में जीते थे। इसके बाद 1993 और 1998 में उन्हें जीत मिली थी। कमल नाथ खेमे का होने की वजह से ही दिग्विजय सिंह की दोनों सरकारों में उन्हें मंत्री पद मिला था। शानदार महकमे मिले थे।
अनबन होने पर बाद में नाथ का साथ और कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा के हो गए थे। चुनाव भी जीत लिया था। मगर 2008 के बाद ठाकुर की राजनीति समाप्त हो गई थी।