नामीबिया से आठ चीते शनिवार सुबह ग्वालियर होते हुए श्योपुर जिले के पालपुर कूनो नेशनल पार्क पहुंच गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन चीतों को पार्क में छोड़ा। उन्होंने चीतों की तस्वीर भी ली।
देश में चीता आखिरी बार 1952 में देखा गया था। इसके बाद चीता नहीं दिखा। विलुप्त हो गई चीता प्रजाति की सूचना देने वाले को 5 लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा की गई थी। लेकिन चीता नहीं दिखाई दिया था।
चीते को पुनः देश में लाने और बसाने की नींव साल 1972 में रखी गई थी। मध्य प्रदेश कैडर के 1961 बैच के आईएएस अफसर एम.के.रजीत सिंह ने भारत में फिर से चीतों का घर बनाने का आइडिया सबसे पहले देश को दिया।
वन्य जीव प्राणी विशेषज्ञ के तौर पर पहचाने जाने वाले रजीत सिंह भारत सरकार में फॉरेस्ट सेक्रेटरी थे। उन्होंने पूरा प्रोजेक्ट तैयार किया। रंजीत सिंह ने ही मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके के श्योपुर क्षेत्र में पालपुर कूनो वन अभ्यारण्य की नींव रखवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
कुनो नेशनल पार्क है अनुकूल
रंजीत सिंह की पहल के बाद चीतों को भारत में लाये जाने की कवायद लगातार होती रही। देश के अलग-अलग राज्यों में चीतों के अनुकूल पर्यावरणीय माहौल और यहां इनके जीवित रह सकने की योजनाओं को तलाशा जाता रहा। गुजरात और राजस्थान भी चीतों के अनुकूल पर्यावरणीय माहौल की दौड़ में आगे बने रहे।
लेकिन वन्यप्राणी विशेषज्ञों ने मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो राष्ट्रीय वन अभ्यारण्य को चीतों के लिये सबसे मुफ़ीद पाया। यह पाया गया कि पालपुर कूनो पार्क चीतों की रफ्तार, भोजन और मौसम के लिये पूरी तरह से अनुकूल है। लंबी जद्दोजहद और प्रयासों के बाद अंततः 17 सितंबर वह दिन बन गया जब मध्य प्रदेश का कूनो पालपुर नेशनल पार्क चीतों के लिये एशिया मूल के नक्शे पर दर्ज हो गया।
ग्वालियर होते हुए कूनो पहुंचे चीते
नामीबिया से आठ चीते (नर और मादा) लेकर वन अफसर जंबो जेट विमान से पहले ग्वालियर पहुंचे। यहां से चीतों को एयरफोर्स के हेलीकॉप्टरों से पालपुर कूनो पहुंचाया गया। प्रधानमंत्री कूनो नेशनल पार्क पहुंचकर चीतों को अभ्यारण्य में छोड़ेंगे। चीतों को छोड़े जाने के साथ ही भारत में चीता युग की शुरूआत फिर से हो जायेगी।
एक महीने क्वारंटीन रहेंगे चीते
पालपुर कूनो में चीतों के लिये अलग-अलग बाड़े बनाये गये हैं। विशेषज्ञ वन अफसर अगले कई महीनों तक चीतों की पल-पल की गतिविधियों पर नज़र रखेंगे। कॉलर आईडी लगाकर सबसे पहले महीने भर इन्हें एक बाड़े में क्वारंटीन रखा जायेगा। इसके बाद अलग-अलग बाड़ों में रखकर पालपुर कूनो अभ्यारण्य के मौसम और भोजन का आदी बनाकर इन्हें खुले जंगलों में छोड़ देने की योजना है।
सभी चीतों की आयु 2 से ढाई वर्ष है। विशेषज्ञों ने बताया है यह उम्र कहीं भी रचने-बसने और इन्हें बसाने के लिये सबसे उत्तम होती है। चीतों की औसत आयु 12 वर्ष होती है।
टाइगर स्टेट के बाद चीता स्टेट!
मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट के तौर पर पहचाना जाता है। देश में टाइगर्स की संख्या सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में है। मध्य प्रदेश का कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व बेहद ख्यात हैं। रीवा में व्हाइट टाइगर देखने को मिलता है। इन अध्यायों में श्योपुर का पालपुर कूनो पार्क चीतों का नया चेप्टर लेकर आ गया है।
‘वाइल्ड लाइफ की सबसे बड़ी उपलब्धि’
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इससे बेहद गदगद हैं। प्रधानमंत्री के जन्मदिन के अवसर पर मध्य प्रदेश को चीतों के मिलने को उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी का रिटर्न गिफ्ट बताया।
सीएम चौहान ने कहा, ‘चीतों की मध्य प्रदेश में बसाहट इस सदी की वाइल्ड लाइफ की सबसे बड़ी उपलब्धि है। चीते देश को एशिया में नई पहचान देंगे। मध्य प्रदेश पर्यटन और वन क्षेत्र को अलग पहचान देने के साथ रोजगार के नये रास्ते खोलने में भी बड़ा सहायक बनेगा।’