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बुलडोजर अराजकता की याद दिलाता है। सिर्फ आपराधिक आरोपों/दोष के कारण संपत्तियों को नष्ट नहीं किया जा सकता।
-सुप्रीम कोर्ट, बुलडोजर न्याय पर फैसला, 13 नवंबर 2024 सोर्सः लाइव लॉ
बुलडोजर 'न्याय' पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्देश दिया कि संपत्ति के मालिक को 15 दिन की पूर्व सूचना दिए बिना और वैधानिक दिशानिर्देशों का पालन किए बिना कोई तोड़फोड़ नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नोटिस संपत्ति मालिक को रजिस्टर्ड डाक से भेजा जाएगा और उस इमारत के बाहरी हिस्से पर भी लगाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, खास उल्लंघन का ब्यौरा और विध्वंस के लिए आधार शामिल करना होगा। पूरे तोड़फोड़ की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए, और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारी, विभाग को अवमानना का सामना करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 खास बातें
- कार्यपालिका कभी जज नहीं बन सकती
- बिना उचित प्रक्रिया के आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक
- यहां तक कि दोषी पाए जाने पर भी सजा के तौर पर उनकी संपत्ति को नष्ट नहीं किया जा सकता
- सुनवाई से पहले आरोपी को दंडित नहीं किया जा सकता
- कानून का अनुपालन नगरपालिका कानूनों के लिए भी होना चाहिए
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने साफ शब्दों में कहा- “कार्यपालिका की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ कानून का शासन और नागरिकों के अधिकार हैं। कानूनी प्रक्रिया ऐसी कार्रवाई को माफ नहीं कर सकती... कानून का नियम मनमानी कार्रवाई के खिलाफ आदेश देता है। इसका उल्लंघन अराजकता को बढ़ावा दे सकते हैं, और संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिक अधिकारों की सुरक्षा आवश्यक है।”
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कार्यपालिका (Executive) अपने मूल कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती।
-सुप्रीम कोर्ट, बुलडोजर न्याय पर फैसला, 13 नवंबर 2024 सोर्सः लाइव लॉ
अदालत ने कहा- “अगर कार्यपालिका जज की भूमिका निभाती है और कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी घर को ध्वस्त करने का आदेश देती है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी या दोषी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को यह दिखाना और तथ्यों के साथ बताना होगा कि अब विध्वंस ही एकमात्र सहारा है। ऐसे मामलों में भी यही प्रक्रिया अपनानी होगी, जहां कुछ अतिक्रमण हैं।
सबसे महत्वपूर्ण निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सभी नोटिस नगर निकाय यानी नगर निगम, नगर महापालिका, नगर पालिका, नगर पंचायक के एक खास पोर्टल पर डाले जाने चाहिए, जबकि वही नोटिस रजिस्टर्ड डाक के जरिए भी भवन मालिक या संपत्ति मालिक को भेजे जाने चाहिए।सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा- इन आदेशों का पालन करने की निगरानी के लिए जिला मजिस्ट्रेटों (डीएम) को जवाबदेह बनाया गया है। यानी अदालत के आदेशों को तोड़फोड़ करने वाली एजेंसी मान रही है या नहीं, यह जिम्मेदारी डीएम की होगी।
अदालत ने इनकी तारीफ की
न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह, एमआर शमशाद, संजय हेगड़े, नित्या रामकृष्णन, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मोहम्मद निज़ाम पाशा, फौजिया शेख, रश्मी सिंह आदि द्वारा दिए गए सुझावों की सराहना की। वरिष्ठ अधिवक्ता नचिकेता जोशी को सुझावों को एकत्र करने के लिए और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को मामले को निष्पक्ष और निष्पक्ष तरीके से पेश करने के लिए नियुक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइंस के 6 निर्देश
अदालत ने किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले छह आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया, यहां तक कि विकास परियोजनाओं के लिए विध्वंस की कार्रवाई के दौरान भी पालन करना होगा।- 1.अधिकारियों को पहले मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों को सत्यापित करना होगा
- 2. वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए उचित सर्वेक्षण किया जाना चाहिए
- 3. कथित अतिक्रमणकारियों को तीन लिखित नोटिस जारी किए जाने चाहिए
- 4. आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए और स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए
- 5.स्वैच्छिक हटाने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए
- 6. अगर जरूरी हो तो अतिरिक्त भूमि कानूनी रूप से अधिग्रहित की जानी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा मनमाने ढंग से विध्वंस (डिमोलिशन) के खिलाफ पिछले हफ्ते दिशानिर्देश जारी किए थे।जिसमें फैसला सुनाया गया कि नागरिकों की आवाज को "उनकी संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी देकर दबाया नहीं जा सकता" और इस तरह के "बुलडोजर न्याय" के लिए कानून द्वारा शासित समाज में कोई जगह नहीं है।
भारत के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने 6 नवंबर को कहा, ''एक गंभीर खतरा है कि अगर राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा उच्चस्तरीय और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाती है, तो नागरिकों की संपत्तियों का विध्वंस बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में होगा।'' सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट की पूर्व संध्या पर शनिवार को सारी गाइडलाइंस और आदेश को अपलोड कर दिया गया था।
अदालत ने निर्देश दिया कि इन दिशानिर्देशों की प्रतियां तत्काल लागू करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजी जाएं। यह स्पष्ट करते हुए कि कानून अवैध अतिक्रमणों को माफ नहीं करता है, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हटाने के लिए स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं और सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि “सार्वजनिक अधिकारियों के लिए सार्वजनिक जवाबदेही आदर्श होनी चाहिए। राज्य के अधिकारी जो इस तरह की गैरकानूनी कार्रवाई को अंजाम देते हैं या मंजूरी देते हैं, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए और उनके कानून के उल्लंघन पर आपराधिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।”