चुनावों और राजनीति में सोशल मीडिया की लगातार बढ़ती भूमिका को मायावती को भी आख़िर स्वीकार करना पड़ा और ट्विटर पर आना ही पड़ा। मायावती के ट्विटर पर आने पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने उनका स्वागत किया। तेजस्वी ने कहा कि मेरे आग्रह को मानने के लिए आपका शुक्रिया। देखें ट्वीट -
मायावती के ट्विटर पर आने की ख़बर सोशल मीडिया पर जंगल में आग की तरह फ़ैली। सैकड़ों लोगों ने उन्हें फॉलो किया और स्वागत भी किया। आज तक यह सवाल पूछा जाता रहा था कि जब लगभग सारे राजनेता ट्विटर का इस्तेमाल अपनी बात पहुँचाने के लिए करते हैं तो बहनजी इससे दूर क्यों हैं?
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आना ही पड़ा ट्विटर पर
इसे सोशल मीडिया की बढ़ती ताक़त ही कहेंगे कि ऐसे नेताओं को भी इसका सहारा लेना पड़ा है जो कल तक कहते थे कि उनके वोटर या समर्थक ट्विटर पर नहीं हैं। शुरुआत में जेडीयू जैसे दलों के लोग ट्विटर से यह कहकर दूर ही रहते थे कि उनके समर्थकों का ट्विटर से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने ट्विटर का महत्व आख़िरकार पहचान ही लिया। यही कहानी बीएसपी के साथ भी थी। लेकिन देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज़ पर मायावती भी ट्विटर पर आ ही गईं।
मायावती ने हालाँकि अक्टूबर, 2018 में ही ट्विटर पर अपना अकाउंट बना लिया था लेकिन उन्होंने पहला ट्वीट क़रीब 3 महीने बाद 22 जनवरी को किया। इसमें उन्होंने बताया कि यही उनका वेरिफ़ाइड ट्विटर अकाउंट है और वह इसके जरिये लोगों से बातचीत करती रहेंगी। देखें ट्वीट-
6 फ़रवरी को मायावती के ट्विटर अकाउंट पर बाक़ायदा बीएसपी की तरफ़ से आधिकारिक प्रेस रिलीज़ जारी कर इसकी सूचना दी गई और कहा गया कि इस हैंडल की ओर से जारी सूचनाओं का इस्तेमाल मीडिया के साथी न्यूज़ फ़्लैश चलाने के लिए कर सकते हैं। देखें ट्वीट -
मेवाणी, ‘रावण’ तेज़ी से उभरे
यूँ तो मायावती ने नाम से ट्विटर पर कई अकाउंट चल रहे थे, लेकिन वेरिफ़ाइड अकाउंट न होने से इसे लेकर कंफ़्यूजन होता था। मायावती को दलितों का बड़ा नेता माना जाता है। इधर, हाल में दलित राजनीति में कई नये नेताओं का तेज़ी से उभार हुआ है। इनमें गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी और उत्तर प्रदेश के युवा नेता चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ का नाम प्रमुख है। ये दोनों ट्विटर पर काफ़ी सक्रिय हैं और दलित मुद्दों पर काफ़ी प्रभावशाली ढंग से लगातार हस्तक्षेप करते रहे हैं। यह भी बसपा सुप्रीमो के ट्विटर पर आने का एक बड़ा कारण हो सकता है। इसके अलावा रामविलास पासवान और रामदास अठावले जैसे दलित नेता भी ट्विटर पर काफ़ी दिनों से सक्रिय हैं।
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ताक़तवर माध्यम बना ट्विटर
ट्विटर भारत में आम जनता और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं तक नेताओं की बात पहुँचाने का बहुत ताक़तवर माध्यम बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे पहले ट्विटर पर आए, उन्होंने जनवरी 2009 में इसके माध्यम से लोगों से जुड़ना शुरू किया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी इसमें काफ़ी देर से आए, समय था अप्रैल 2015। उससे पहले राहुल के ट्वीट @OfficeOfRG ट्विटर हैंडल से आते थे।
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सभी बड़े राजनेता काफ़ी सक्रिय
मोदी और राहुल गाँधी की सियासी अदावत का मैदान भी ट्विटर बना तो ममता बनर्जी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने अपनी बात को पहुँचाने के लिए इसका सहारा लिया। मोदी सभी राजनेताओं से आगे हैं और ट्विटर पर उनके साढ़े चार करोड़ से ज़्यादा फ़ॉलोअर हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल ट्विटर पर ख़ासे सक्रिय रहे और 84 लाख से ज़्यादा लोग उन्हें फ़ॉलो करते हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी प्रधानमंत्री मोदी से पीछे नहीं रहे और जुलाई 2009 में उन्होंने ट्विटर पर अकाउंट बना लिया। अखिलेश के 89 लाख फ़ॉलोअर हैं और पार्टी के कार्यक्रमों से लेकर केंद्र और यूपी सरकार के ख़िलाफ़ हल्ला बोलने के लिए वह अपने हैंडल का इस्तेमाल करते हैं।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मई 2013 में ट्विटर पर आए और लोकसभा चुनाव 2019 के लिए यह उनका प्रमुख हथियार बन चुका है। उनकी हर रैली का इस पर लाइव प्रसारण होता है। इसके अलावा उनकी बैठकों की जानकारी, दिन भर के कार्यक्रम भी इस पर अपडेट होते रहते हैं।
दिल्ली सरकार ट्विटर पर मौजूद
सोशल मीडिया की बढ़ती ताक़त का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ने भी ख़ूब किया और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नवंबर 2011 में ट्विटर पर अपना अकाउंट बना लिया था। केजरीवाल को ट्विटर पर 1.40 करोड़ लोग फॉलो करते हैं और इसके अलावा दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, दिल्ली सरकार के मंत्री भी इस पर ख़ासे सक्रिय हैं और सरकार के फ़ैसले और ज़रूरी बातें इस पर शेयर करते हैं।
देखते ही देखते ट्विटर सियासी लड़ाई लड़ने से लेकर सरकार के फ़ैसले जनता तक पहुँचाने और जनता द्वारा अपनी राय रखने का बेहद मज़बूत माध्यम बन चुका है। इसकी ताक़त को समझते हुए ही अब तक इस पर आने से बचते रहे राजनेताओं को भी इस पर आना पड़ा है।