ब्राज़ील के अधिकारियों ने भारतीय कंपनी भारत बायोटेक से कोरोना टीका कोवैक्सीन खरीद की जाँच शुरूर कर दी है।
अधिकारियों को इस बात का पता लगाना है एक ऐसा टीका जिसके प्रभाव के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है और विश्व स्वासथ्य संगठन ने भी जिसकी सिफ़ारिश नहीं की है, क्यों खरीदा गया।
भारत बायोटेक के साथ हुए क़रार, ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेअर बोइसोनेरो की भूमिका और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्तों की जाँच भी की जा रही है।
भ्रष्टाचार के आरोप
बोइसोनेरो पर कोरोना टीका खरीद में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा है और लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किए हैं। मामले की जाँच ब्राज़ील का संसदीय जाँच आयोग (सीपीआई) कर रहा है।
ब्राज़ील ने भारत बायोटेक से 1.6 अरब रियाल (ब्राज़ील की मुद्रा) यानी लगभग 30 करोड़ डॉलर में कोवैक्सीन की दो करोड़ खुराक़ें खरीदीं। एक खुराक़ की कीमत 15 डॉलर रखी गई थी और यह सबसे महंगा कोरोना टीका साबित हुआ था।
ब्राज़ील की कंपनी प्रेसिज़ा मेडिकामेन्टोज़ ने इस सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाई थी और भारत बायोटेक व ब्राज़ील सरकार में सौदा करवाया था।
घपले की जाँच!
ब्राजील के सीनेटर यानी सांसद रेनन कैलेरोज़ ने कहा है कि वे हर घपले की जाँच कराएंगे। वे ब्राज़ील के संसदीय आयोग यानी सीपीआई के प्रमुख बनाए गए हैं।
'द वायर' के अनुसार, ब्राज़ील के संसदीय आयोग के पास ऐसे काग़ज़ात हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारत बायोटेक से कोवैक्सीन खरीदने में ज़्यादा जल्दीबाजी दिखाई गई और इसके लिए बहुत दबाव बनाया गया।
ब्राज़ील की संसद ने अप्रैल में ही कोरोना से निपटने में राष्ट्रपति बोइसोनेरो के कामकाज की जाँच शुरू कर दी थी। पर बीते कुछ हफ़्तों में एस कुछ ऐसे विस्फोटक सबूत मिले हैं, जिससे जाँच की दिशा ही बदल गई है।
अब सरकार के कामकाज ही नहीं, इसकी भी जाँच की जा रही है कि क्या कोरोना टीकों, दवाओं व उपकरणों की खरीद में भ्रष्टाचार किया गया है।
एमडी से पूछताछ
जाँच से पता चला है कि बिचौलिया कंपनी प्रेसिज़ा मेडिकामेंन्टोज़ को जो 10 करोड़ डॉलर की रकम मिली, वह उसकी कुल सेवा शुल्क का एक तिहाई हिस्सा ही है। हालांकि सरकार ने बिचौलिए को कोई रकम देने से इनकार किया है, पर यह सवाल उठ रहा है। संसदीय आयोग ने प्रेसिज़ा मेडिकामेंन्टोज़ के प्रबंध निदेशक फ्रांसिस्को मैक्सिमियानो को पूछताछ के लिए 23 जून को तलब किया है।
बता दें कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति शुरू में कोरोना को महामारी ही नहीं मान रहे थे, वे इसके इलाज, टीका या दवा के ख़िलाफ़ थे। बाद में जब ब्राज़ील में मौत होने लगी तो उन्होंने भारत से हाइड्रोक्सोक्लोरोक्विन की दवा माँगी।
हालांकि इस दवा से कोरोना के इलाज में कोई फ़ायदा होता हो, ऐसा नहीं है, पर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पाया था कि इस दवा के नियमित इस्तेमाल से कोरोना संक्रमण रोकने में मदद मिलती है। इसके बाद पहले अमेरिका ने भारत से यह दवा ली और उसके बाद ब्राज़ील ने।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने सीधे नरेंद्र मोदी को फोन किया और उनसे दवा माँगी। उन्होंने मोदी को बताया था कि किस तरह हनुमान ने लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी लाकर दी थी और लक्ष्मण का इलाज किया गया था।
हाइड्रोक्सिक्लोरोक्विन खरीद पर भी सवाल
ब्राजील में यह सवाल पूछा जा रहा है कि जब हाइड्रोक्सिक्लोरोक्विन के प्रभााव के बारे में पक्की जानकारी नहीं थी तो भारत से यह दवा क्यों आयात की गई।
जब भारत बायोटेक के कोवैक्सीन को भारत में मंजूरी मिल गई तो जेअर बोइसोनेरो ने प्रधानमंत्री मोदी को सीधे फोन किया और उनसे दवा देने को कहा।
ब्राजील में सवाल उठ रहा है कि कोवैक्सीन के प्रभाव को लेकर कोई पक्की जानकारी नहीं थी, किसी ने इसके प्रभाव की पुष्टि नहीं की थी, खुद कंपनी ने तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजों का एलान नहीं किया था। ऐसे में यह दवा ली ही क्यों गई।
ब्राज़ील में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि सीधे उत्पादक कंपनी से दवा न लेकर किसी बिचौलिए को लाने की क्या ज़रूरत थी जब किसी तरह के आयात में बिचौलियों की भूमिका से पहले ही खारिज कर दिया गया था।
ब्राज़ीलियन हेल्थ रेगुलेटरी एजेंसी एएनवीआईएसए ने कोवैक्सीन की कीमत पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि दुनिया की सबसे महँगी वैक्सीन क्यों खरीदी गई।
ब्राज़ील में तीन तरह के कोरोना टीका हैं। चीन की मदद से बनाया गया कोरोनावैक, एस्ट्राज़ेनेका का टीका और फ़ाईज़र का टीका। इसके बीच भारत बायोटेक से कोवैक्सीन भी खरीदा गया, जो सबसे महंगा है और विवादास्पद भी।