पुणे के जिस पोर्श दुर्घटना मामले ने एक समय पूरे देश को झकझोर दिया था उस मामले में अब बॉम्बे हाई कोर्ट का रोचक फ़ैसला आया है। इसने मंगलवार को पुणे पोर्श दुर्घटना मामले में नाबालिग आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया। इसने उसे पर्यवेक्षण गृह में भेजने के रिमांड आदेशों को रद्द करने की मांग करने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को स्वीकार कर लिया।
महाराष्ट्र के पुणे में पिछले महीने पोर्श कार से दो लोगों के कुचलने का यह मामला तब काफ़ी ज़्यादा सुर्खियों में आ गया था जब आरोपी नाबालिग को स्थानीय अदालत ने जमानत दे दी थी। आरोपी को ट्रैफिक पुलिस के साथ कुछ दिन काम करने और दुर्घटना पर निबंध लिखने जैसी सजा दी गई थी।
इस तरह कोर्ट ने वारदात के 15 घंटे बाद ही आरोपी को जमानत दे दी थी। रियल एस्टेट एजेंट का नाबालिग बेटा दोस्तों के साथ पार्टी कर अपनी पोर्श कार से लौट रहा था। आरोप है कि वह नशे में था और उसकी पोर्श कार काफी ज़्यादा तेज थी। पुणे में काम करने वाले मध्य प्रदेश के दो इंजीनियर, चौबीस वर्षीय अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा, दोस्तों के साथ एक समारोह में भाग लेने के बाद बाइक पर लौट रहे थे। पोर्श ने बाइक को टक्कर मार दी थी।
कोर्ट ने नाबालिग के लिए दुर्घटनाओं पर निबंध लिखने, शराब पीने की आदत का इलाज कराने और काउंसलिंग सेशन लेने की शर्त रखी। किशोर को 15 दिनों के लिए येरवडा में ट्रैफिक पुलिस के साथ काम भी करने को कहा।
लोगों के आक्रोश के बीच किशोर न्याय बोर्ड ने अपने आदेश में संशोधन किया और किशोर को निगरानी गृह में भेज दिया। इस बीच, पुलिस की जांच में उसके परिवार के सदस्यों द्वारा मामले को दबाने के चौंकाने वाले प्रयास सामने आए। जांच में पाया गया कि किशोर की रिपोर्ट में हेरफेर करने के लिए ख़ून के नमूनों को बदल दिया गया था, परिवार के ड्राइवर को धमकाया गया था और दोष लेने के लिए कहा गया था। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पुलिस ने लड़के के माता-पिता और उसके दादा को गिरफ्तार कर लिया। बाद में आरोपी लड़के की आंटी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में फ़ैसले को चुनौती दी।
यह कहते हुए कि हिरासत आदेश अवैध था और अधिकार क्षेत्र के बिना पारित किया गया था, हाई कोर्ट ने उसे उसकी आंटी की देखभाल में सौंपने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, 'हम बंदी प्रत्यक्षीकरण को स्वीकार करते हैं और उसकी रिहाई का आदेश देते हैं। ...हम कानून से बंधे हैं। किशोर न्याय अधिनियम के उद्देश्य और अपराध की गंभीरता के बावजूद उसे वयस्कों से अलग किसी भी बच्चे के रूप में माना जाना चाहिए।'
अदालत ने कहा कि नाबालिग आरोपी पहले से ही पुनर्वास के तहत है जो एक प्राथमिक उद्देश्य है और उसे एक मनोवैज्ञानिक के पास भेजा गया है। मनोवैज्ञानिक जाँच जारी रहेगी।
21 जून को जस्टिस भारती एच डांगरे और मंजूषा ए देशपांडे की खंडपीठ ने सुनवाई पूरी की थी और आदेश सुरक्षित रख लिया था। याचिका में पुणे के किशोर न्याय बोर्ड के मजिस्ट्रेट द्वारा 22 मई और 4 जून को पारित 'अवैध' आदेशों को रद्द करने और अलग रखने के लिए अदालत से निर्देश मांगा गया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच ने पाया कि आज तक पुलिस ने किशोर न्याय बोर्ड के जमानत आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए अपीलीय अदालत में कोई आवेदन दायर नहीं किया है। हालांकि, पुलिस ने जमानत आदेश में संशोधन के लिए संपर्क किया, जिसे मंजूर कर लिया गया और नाबालिग को निगरानी गृह में हिरासत में ले लिया गया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिग को उसके परिवार की देखभाल और निगरानी से भी दूर ले जाया गया और निगरानी गृह में भेज दिया गया। इसने कहा कि उम्मीद थी कि जेजेबी जिम्मेदारी से पेश आएगा।