पहले चरण के चुनाव में बांग्लादेश से हिन्दू समुदाय को संबोधित करने वाले लाइव हों या फिर दूसरे और तीसरे चरण में ममता बनर्जी का टीएमसी छोड़कर बीजेपी में गये कार्यकर्ता के साथ फ़ोन पर बातचीत और फिर कट मनी वाले टीएमसी नेताओं के ऑडियो हों- हर चरण में बीजेपी की ओर से वोटबैंक के हिसाब से ‘बम’ फोड़े गये हैं। मगर, चौथे चरण में जो बम फोड़ा गया, उसका नाम है ‘पीके बम’।
चौथे चरण का मतदान शुरू होने के ठीक आधे घंटे बाद यह ‘पीके बम’ फोड़ दिया गया। ट्विटर पर बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने यह बम फोड़ा। पीके यानी प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार हैं और वे बम बनकर इसलिए अमित मालवीय से ट्वीट हुए क्योंकि क्लब हाऊस एप पर पत्रकारों से उन्होंने ‘खुलकर’ बात की थी। ट्वीट से संदेश देने की कोशिश हुई कि प्रशांत किशोर ने मान लिया है कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी हार रही है, बीजेपी जीत रही है।
‘पीके बम’ से टीएमसी को भागने-बचने का वक़्त नहीं मिला। जाहिर है कि नुक़सान टीएमसी को ही होगा, चाहे व थोड़ा हो या ज़्यादा। या, हो सकता है कि यह बम फुस्स होकर भी रह गया हो। हालाँकि बाक़ी चरणों में ‘पीके बम’ का असर ना हो, इसके लिए खुद पीके यानी प्रशांत किशोर अपना पुराना बयान दोहरा रहे हैं कि बीजेपी पश्चिम बंगाल चुनाव में दहाई अंक के पार नहीं जा पाएगी।
प्रशांत किशोर ने कहा क्या?
यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि पीके ने जो कुछ भी बातें कही हैं जिसे अमित मालवीय ने वायरल कराया है वह वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के पूछे गये सवाल के जवाब में कही है। उनका सीधा सवाल था कि ममता के लिए एंटी इनकंबेंसी है तो केंद्र की मोदी सरकार के लिए क्यों नहीं है? पीके ने न सिर्फ़ सवाल को सच्चाई के तौर पर स्वीकार किया, बल्कि इसके कारणों को भी रखते हुए पश्चिम बंगाल की चुनावी सियासत पर अपनी समझ को साफ़ तौर पर सामने रखा-
- एंटी इनकंबेंसी केंद्र के लिए नहीं, ममता सरकार के लिए है;
- नरेंद्र मोदी को 25 फ़ीसदी तक लोग भगवान मानते हैं और वे बहुत लोकप्रिय हैं।
- नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी की लोकप्रियता पश्चिम बंगाल में लगभग समान है।
- हिन्दुओं का मतुआ और राजवंशी समुदाय बीजेपी के पक्ष में एकजुट है- 75-25 फ़ीसदी के हिसाब से।
- बंगाल के हिन्दुओं को लग रहा है कि उन्हें पूछने वाली कोई पार्टी है क्योंकि अब तक कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी मुसलिमों को ध्यान में रखकर राजनीति करती रही है।
- यह चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण, एंटी इनकंबेंसी, मोदी की लोकप्रियता और चुनाव प्रबंधन में बीजेपी की महारत के साथ लड़ा जा रहा है।
प्रशांत किशोर ने बिल्कुल सही कहा है कि पश्चिम बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण है। मगर, क्या यह ध्रुवीकरण 2019 के लोकसभा चुनाव से ज़्यादा है जिसमें बीजेपी को जीती गयी सीटों पर हिन्दुओं का 70 फ़ीसदी और टीएमसी को उनकी जीती हुई सीटों पर मुसलमानों का 50 फ़ीसदी वोट मिले थे?
अगर नहीं, तो यह धार्मिक ध्रुवीकरण बीजेपी को लोकसभा चुनाव से बढ़कर पश्चिम बंगाल में सफलता कैसे दिला सकता है?
मोदी की लोकप्रियता देशभर में है और पश्चिम बंगाल में यह लोकप्रियता ममता बनर्जी के बराबर है। यह बात भी बीजेपी को टीएमसी पर बढ़त दिलाती नहीं दिखती।
एक समय पीके ने बीजेपी के लिए दो अंकों का आँकड़ा पार नहीं करने और ऐसा होने पर चुनावी रणनीति की पेशेवर दुनिया को अलविदा कहने की घोषणा की थी। यह भी पेशेवर चरित्र नहीं है। चुनाव रणनीतिकार रणनीति बना सकते हैं, लेकिन जनता क्या निर्णय देने वाली है तय नहीं कर सकते। फिर भी पीके का वह बयान उस टीएमसी और ममता बनर्जी के समर्थन में था जिनके लिए वह पेशेवर रूप से प्रतिबद्ध थे। इस वजह से इस बयान को बिल्कुल अनैतिक नहीं माना गया था।
पीके ने अनजाने में टीएमसी को नुक़सान पहुँचाया?
प्रशांत किशोर की यह राय बीजेपी के लिए उपयोगी और टीएमसी के लिए (आत्मघाती) बम हो सकता है लेकिन प्रशांत किशोर ने क्यों कहा है और इसका मक़सद किसको फायदा और किसको नुक़सान पहुँचाना है, यह बेशक़ीमती प्रश्न है। प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि उनकी बातों का खास हिस्सा ही दिखाया गया है। वह आग्रह कर रहे हैं कि पूरा हिस्सा दिखाया जाए। जैसा कि कैलाश विजयवर्गीय ने इसी क़िस्म के सवाल के जवाब में कहा है कि वे क्यों पूरा हिस्सा दिखाएँ, ख़ुद वही लोग पूरा हिस्सा दिखला दें।
यह बात पीके भी जानते हैं कि बीजेपी का आईटी सेल जो हिस्सा दिखलाएगा, वही लोकप्रिय होगा। चाहकर भी पीके अपने भाषण का पूरा हिस्सा वायरल नहीं कर पाएँगे। क्या प्रशांत किशोर जैसे शीर्ष चुनावी रणनीतिकार यह बात नहीं समझ पा रहे थे कि उनके बयान का इसी तरीक़े से प्रचार-प्रसार होगा?
प्रशांत किशोर को बिल्कुल यह बात पता होगी कि उनका बयान बीजेपी की ओर से टीएमसी पर बम बनकर बरस सकता है। उनका बयान उसी पार्टी के लिए नुक़सानदेह हो सकता है जिसके वे रणनीतिकार हैं। ऐसे में उन्होंने यह बयान क्यों दिया, यह सवाल भी है और चिंता भी, क्योंकि इससे उनकी पेशेगत निष्ठा पर सवाल पैदा हो गये हैं।
पीके अपना बचाव यह सवाल पूछकर कर सकते हैं कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्या ग़लत कह दिया जो टीएमसी के ख़िलाफ़ हो या बीजेपी के समर्थन में हो?
निस्संदेह प्रशांत किशोर ने जो कुछ भी कहा है तथ्यात्मक रूप से वह उस पर कायम भी रह सकते हैं और अपने कथन का बचाव भी कर सकते हैं। मगर, कही गयी बातों की टाइमिंग और उसका संभावित असर ऐसा है जो चुनावी रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर को सवालों के कठघरे में खड़ा करता रहेगा।
पीके का बयान पेशेवर प्रतिबद्धता की आधारभूत ज़रूरत को नकारता है।
पीके नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को घटा-बढ़ा नहीं सकते और न ही चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण पर ही उनके बयान से कोई फर्क पड़ेगा। फिर भी चुनाव के दौरान मनोवैज्ञानिक तौर पर पीके ने अपने ही पक्ष को कमजोर किया है और बीजेपी को बढ़त दिलायी है।