अल्पसंख्यक समुदाय का कोई आदमी पहली बार कोलकाता का मेयर चुना गया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने मंत्री फ़िरहाद हक़ीम से इस्तीफ़ा दिला कर और उन्हें चुनाव में उतार कर एक संकेत दिया। पर सिर्फ़ पाँच पार्षदों के बल पर यह चुनाव लड़ने का फ़ैसला भारतीय जनता पार्टी ने क्यों किया, यह सवाल उठना लाज़िमी है। बॉबी नाम से परिचित इस राजनेता के लिए यह चुनाव जीतना कोई मुश्किल काम नहीं था क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के पास 122 पार्षद हैं। इसके बाद मुख्य विपक्षी दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव बॉयकॉट का फ़ैसला हुआ। इससे यह साफ़ हो गया कि यह चुनाव अब महज़ औपचारिकता है और हक़ीम का चुना जाना तय है। इतना ही साफ़ था भारतीय जनता पार्टी का चुनाव हारना। फिर उसने चुनाव क्यों लड़ा अपनी फ़ज़ीहत करवाने या मज़ाक उड़वाने नहीं। विश्लेषकों की मानें तो इसकी तीन वजहें थीं।
- सीपीएम और कांग्रेस के हाशिये पर जाने के बाद बीजेपी उभरने की कोशिश में है। इन दोनों दलों के बॉयकॉट करने के बाद बीजेपी के पास यह मौका था कि वह दिखा सके राज्य की राजनीति में वह एक गंभीर खिलाड़ी है।
- मेयर पद के टीएमसी उम्मीदवार का अल्पसंख्यक होना भी एक बड़ी वजह थी, जिसका विरोध कर बीजेपी ने एक संकेत दिया।
- यह पता लगाना कि तृणमूल कांग्रेस से नाराज़ शोभन चटर्जी से पार्टी को क्या मदद मिल सकती है। दरअसल, उनके हटाये जाने के बाद से ही यह चर्चा ज़ोरों पर है कि वे बीजेपी में शामिल होंगे।
सिर्फ़ पाँच पार्षदों वाली बीजेपी कोलकाता मेयर का चुनाव लड़ कर यह संकेत देना चाहती थी कि वह सूबे की राजनीति में हाशिए से बाहर निकल रही है और अपनी मौैजूदगी दर्ज कराने में सक्षम है।
संख्या 5 से आगे नहीं बढ़ी
ममता सरकार के शहरी विकास मंत्री फ़िरहाद हक़ीम को बीजेपी की उम्मीदवार मीनादेवी पुरोहित के मुकाबले 24 गुना अधिक वोट मिले। फिरहाद हक़ीम को 121 मत मिले जबकि मीनादेवी पुरोहित को मात्र 5 वोट मिले। टीएमसी की एक पार्षद सुस्मिता भट्टाचार्य स्वास्थ्य कारणों से मतदान नहीं कर पाईं।मेयर शोभन चटर्जी ने भी मतदान में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के निर्देश पर उन्होंने पदत्याग किया है। इसके साथ ही चटर्जी ने नये मेयर को हर तरह के सहयोग का आश्वासन भी दिया।
शोभनदेव चटर्जी का कहना है कि उन्होंने 'दीदी' के कहने पर ही पद छोड़ा।