महाराष्ट्र में शनिवार को बीजेपी ने जो बड़ा और नाटकीय उलटफेर किया वह भले ही लग रहा हो कि यह रातोरात हुआ है, लेकिन यह दरअसल क़रीब 12 दिन से चल रहा था। अंतर सिर्फ़ इतना था कि शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी के बीच जो बैठकें और घटनाक्रम चल रहे थे वे ख़बरों में थे लेकिन बीजेपी का जो ऑपरेशन चल रहा था वह 'अंडरकवर' यानी पर्दे के पीछे से किया जा रहा था। यह 'ऑपरेशन' बीजेपी के टॉप नेताओं और एनसीपी नेता अजीत पवार के बीच पिछले कुछ दिनों से चल रही गुप्त बातचीत के रूप में जारी रहा। और यह तब सबके सामने आया जब शनिवार सुबह एकाएक राजभवन में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री और अजीत पवार के उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने की चौंकाने वाली ख़बर आई।
यह 12 दिन वाला ‘ऑपरेशन’ उस घटनाक्रम के बाद शुरू हुआ जब बीजेपी ने 10 नवंबर को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से साफ़ तौर पर कह दिया था कि उसके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है। 10 नवंबर को सरकार बनाने से इनकार करने के साथ ही पार्टी ने शिवसेना के अलावा दूसरी संभावनाएँ भी तलाशनी शुरू कर दी थी। रिपोर्टों के अनुसार बीजेपी को एक सप्ताह पहले तक शिवसेना के साथ आने की उम्मीद थी। रिपोर्टों के अनुसार उसी दौरान बीजेपी ने पार्टी महासचिव भूपेंद्र यादव को मुंबई भेजा। भूपेंद्र यादव बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के विश्वासपात्र हैं और महाराष्ट्र चुनाव के लिए पार्टी के प्रभारी भी हैं। शिवसेना के साथ चल रही कड़वाहट के मद्देनज़र ही पार्टी ने अजीत पवार में संभावनाएँ तलाशीं। बता दें कि अजीत पवार की भी एनसीपी प्रमुख शरद पवार से कुछ मुद्दों को लेकर कड़वाहट चल रही थी।
रिपोर्टों के अनुसार शुक्रवार दोपहर यानी 22 नवंबर को जब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन की बात पक्की करने वाली थीं तभी अमित शाह ने भूपेंद्र यादव को तत्काल दिल्ली से मुंबई भेजा। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने बीजेपी सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने पहले ही राज्यपाल के सामने सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर दिया था। बाद में अजीत पवार ने राज्यपाल से व्यक्तिगत तौर पर भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर चिट्ठी भेजने की बात की पुष्टि की थी। शाम को सात बजे यादव मुंबई पहुँचे और फडणवीस और अजीत से मिलकर डील पक्की की।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अमित शाह ने पहले बीजेपी के नेताओं को साफ़ तौर पर निर्देश दिया था कि पहले ठाकरे, पवार और कांग्रेस को अपना खेल खेल लेने दिया जाए। इसका मतलब साफ़ है कि बीजेपी की बात अजीत पवार से पिछले कई दिनों से चल रही थी। रिपोर्ट तो यह भी है कि इस बीच अजीत पवार और अमित शाह के बीच बैठक कराई गई ताकि अजीत पवार को यह सुनिश्चित कराया जा सके कि बीजेपी के टॉप नेताओं की इसके लिए सहमति है।
बीजेपी ने शायद इसलिए अजीत पवार में अपनी संभावनाएँ देखीं क्योंकि उनके अपने चाचा और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से कई मुद्दों पर मतभेद थे। पार्टी में विरासत को लेकर भी मतभेद की ख़बरें थीं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले राजनीति में आ गई हैं। रिपोर्टों के अनुसार ऐसे में अजीत पवार को शायद लगता है कि पार्टी की कमान उनके हाथ नहीं आए। यह विवाद तब और बढ़ गया जब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की डील में उद्धव ठाकरे के पूरे पाँच साल मुख्यमंत्री होने की बात सामने आई। रिपोर्ट में अजीत पवार के नज़दीकी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अजीत चाहते थे कि शिवसेना और एनसीपी के बीच ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री की डील हो। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी कहा गया है कि अजीत पवार को लगता है कि उन्हें पार्टी में ऊँचे आहदे से लगातार वंचित किया गया है और एनसीपी शिवसेना के साथ बेहतर तरीक़े से डील कर सकती थी।
बता दें कि हाल ही में अजीत पवार को एनसीपी ने विधायक दल का नेता चुना था। अजीत पवार ने 12 नवंबर को राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के लिए एनसीपी को दिए गए न्यौते को यह कहकर ठुकरा दिया था कि उनके पास ज़रूरी संख्या नहीं है। इसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश कर दी थी। तब प्रधानमंत्री मोदी के ब्राजील यात्रा पर जाने से पहले केंद्र ने इस सिफ़ारिश को मान लिया था और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।
इस बीच जब अजीत पवार के साथ डील पक्की हो गई और ऐसा लगने लगा कि एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना सरकार बना सकते हैं तो बीजेपी ने शनिवार को चौंकाने वाला क़दम उठा लिया। राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया और सरकार बन गई। लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी विधानसभा में बहुमत साबित कर पाएगी?