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ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुश्किलें क्यों बढ़ती जा रही हैं?

ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुश्किलें क्यों बढ़ती जा रही हैं?

क्या मध्य प्रदेश में पुराने बीजेपी वाले नेताओं और कांग्रेस से आए नेताओं के बीच खुलकर लड़ाई सामने आ गई है? क्या दिल्ली आलाकमान अब हस्तक्षेप करेगा? जानिए, सिंधिया के लिए कैसे हालात बन गए हैं।

मोदी सरकार में मंत्री और कांग्रेस के पुराने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। सिंधिया और उनके समर्थकों को भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश के पुराने नेता पचा नहीं पा रहे थे। शिवराज सरकार में मंत्री रहे भूपेन्द्र सिंह ने तो अब सिंधिया और उनके समर्थकों के खिलाफ मुखरता के साथ ‘मोर्चा’ खोल दिया है। खींचतान का आलम यह है कि नाराज भूपेन्द्र सिंह के निशाने पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा भी आ गए हैं।

बता दें कि बुंदेलखंड क्षेत्र में खासा दबदबा रखने वाले पांच बार के पार्टी विधायक भूपेन्द्र सिंह की काफी वक्त से सिंधिया के दाहिने हाथ माने जाने वाले गोविन्द सिंह राजपूत से ठनी हुई है। कथित तौर पर संगठन का साथ नहीं मिलने एवं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा के एक बयान ने पूरे विवाद को और तूल दे दिया है। दरअसल, मीडिया के सवालों के जवाब में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने हाल ही में कहा था, ‘सागर से जुड़ा भूपेन्द्र सिंह जी वाला मसला, निजी (भूपेन्द्र सिंह का व्यक्तिगत विवाद) है।’

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के बयान के बाद भूपेन्द्र सिंह फट पड़े हैं। उन्होंने एक स्थानीय चैनल के साथ बातचीत में कहा है, ‘ऐसे कांग्रेसियों को हम कैसे स्वीकार कर लें, जिन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किया। कांग्रेस से भाजपा में आ जाने के बाद आज फिर पार्टी कार्यकर्ताओं पर जमकर अन्याय-अत्याचार कर रहे हैं।’

यह पूछने पर कि वे लोग कौन हैं? भूपेन्द्र सिंह ने कहा, ‘मसला सागर जिले से जुड़ा हुआ है। दो लोगों को लेकर मेरी घोर आपत्तियां पहले भी थीं, और आज भी हैं। सबसे ज्यादा अत्याचार भाजपा के कार्यकर्ताओं पर किए तो इन दो लोगों ने किए। वो दो लोग कौन हैं? सब जानते हैं।’

संकेतों में प्रशासन के ढुलमुल रवैये पर नाराजगी प्रकट करते हुए पार्टी संगठन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर के पहले, सिंह सवाल उठाते हुए कह रहे हैं, ‘पुराने कांग्रेसी, भाजपा को क्यों मजबूत होने देंगे? भाजपा में कब तक रहेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है?’

भूपेन्द्र सिंह आगे कह रहे हैं, ‘भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा जी को पार्टी में काम करते हुए पांच-सात साल ही हुए हैं। इसके पहले तो वे विद्यार्थी परिषद में काम करते थे। उनका यह बयान आपत्तिजनक है कि मेरी निजी लड़ाई थी। कोई निजी लड़ाई नहीं थी। मैं आज चाहूं तो मेरे बहुत अच्छे निजी संबंध हो जायें। समझौता कर लूं। उनकी जय-जयकार कर लूं। मेरी व्यक्तिगत लड़ाई किस बात की। मैं तो पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए लड़ रहा था। मेरा क्या बिगाड़ा है। मेरा क्या नुकसान कर दिया। उनकी औकात भी नहीं है कि मेरा नुकसान कर पायेंगे वो।’

भूपेन्द्र सिंह ने कहा,

उनको (वीडी शर्मा को) एक बार मुझसे पूछना तो था। उन्होंने मुझसे पूछा भी नहीं। मैंने तो अध्यक्ष की गरिमा का ध्यान रखा। नहीं तो मैं भी कुछ बोल देता। अध्यक्ष के नाते उन्हें ऐसा (निजी लड़ाई है) नहीं बोलना चाहिए था। मैंने मर्यादा का पालन किया। नहीं तो, जवाब मैं भी दे सकता था।


भूपेन्द्र सिंह, बीजेपी नेता

भूपेन्द्र सिंह ने नाम नहीं लिए, लेकिन जिन दो नेताओं को लेकर उनकी घोर आपत्तियां हैं, उन नेताओं में पहले- मोहन यादव सरकार में मंत्री, गोविन्द सिंह राजपूत (सिंधिया के दाहिने हाथ) हैं और दूसरी बीना की विधायक निर्मला सप्रे हैं।

राजपूत वर्ष 2020 में सिंधिया की कांग्रेस के बगावत के दौरान भाजपा में आये। जबकि साल 2023 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाली निर्मला सप्रे, लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भाजपा में आयीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेसियों को पाले में मिलाने का सिलसिला चला था तब सप्रे ने भाजपा का दुपट्टा अपने गले में डाल लिया था। भूपेन्द्र सिंह के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सप्रे की सदस्यता समाप्ति के लिए मोर्चा खोला हुआ है। कांग्रेस कोर्ट गई हुई है।

बहरहाल, गोविन्द सिंह राजपूत भर के मसले पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, बीजेपी के पुराने नेताओं के निशाने पर नहीं हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश में एक के बाद एक कई ऐसे घटनाक्रम हुए हैं, जिनके चलते सिंधिया चौतरफा घिरे नज़र आ रहे हैं।

मसलन, तीन दिन पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जब ग्वालियर दौरे पर आये थे तब भी भाजपा सांसद से झंझटें हुई थीं। धनखड़ से जुड़े कुछ कार्यक्रमों में स्थानीय (ग्वालियर) भाजपा सांसद भरत सिंह कुशवाहा का नाम निमंत्रण पत्रों और शिलालेखों पर नहीं अंकित किया गया था।

नाम नहीं होने पर सवाल उठे थे। विवाद गहराया था। पार्टी सांसद की उपेक्षा करने वाले सिंधिया समर्थकों को बैकफुट पर आना पड़ा था। जियो लॉजिकल म्यूजियम कार्यक्रम के कार्ड में सांसद का नाम जोड़ा गया था। शिलालेख में नाम खुदवाया गया था। हालाँकि जीवाजी राव सिंधिया की प्रतिमा अनावरण का कार्ड और शिलालेख जस का तस रहा था।

बता दें कि भरत सिंह कुशवाहा, ग्वालियर-चंबल संभाग के एक दौर में भाजपा के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले नरेन्द्र सिंह तोमर के कृपापात्र हैं। मोदी ओ-टू में तोमर मंत्री थे। अब मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में ग्वालियर सांसद के टिकट को लेकर सिंधिया ने अपने समर्थकों का नाम आगे बढ़ाया था। कुशवाहा को टिकट दिलाकर बाजी तोमर मार ले गए थे। हालाँकि एड़ी-चोटी का जोर तोमर को लगाना पड़ा था। जमकर पसीना बहाने के बाद कुशवाहा 70 हजार के लगभग वोटों से चुनाव जीतने में सफल हुए थे।

महाराष्ट्र और झारखंड राज्य विधानसभा चुनावों के साथ कई राज्यों की 48 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में मप्र राज्य विधानसभा की बुदनी और विजयपुर सीटों के उपचुनाव भी शामिल थे। इन दो सीटों में सीहोर जिले की बुदनी सीट भाजपा ने जीत थी। जबकि श्योपुर जिले विजयपुर सीट हार गई थी। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान नरेन्द्र सिंह तोमर की लॉबिंग से कांग्रेस के सीनियर एमएलए रामनिवास रावत को मुरैना लोकसभा सीट के लिए जातिगत समीकरणों के तहत तोड़ा गया था। रावत गुर्जर जाति के हैं। मुरैना लोकसभा सीट पर गुर्जर जाति के वोटों की बहुतयात है। प्रयास और प्रयोग सफल रहा था। कठिन मानी जा रही मुरैना सीट रावत के आने पर भाजपा की झोली में आ गई थी।

मुरैना सीट जीत लेने के बाद पारितोषिक के तहत रामनिवास रावत को मोहन यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। रावत को वन महकमा दिया गया था। लेकिन 6 माह बाद विजयपुर सीट के चुनाव को रावत भाजपा के टिकट पर नहीं जीत पाये थे।

पराजय की समीक्षा और तमाम खुरपेंच के बीच रामनिवास रावत ने हार का ठीकरा, संकेतों में सिंधिया के सिर फोड़ा था, जबकि समर्थक सीधे तौर पर अपने नेता रावत की हार के लिए सिंधिया एवं उनके समर्थकों को ज़िम्मेदार ठहराते रहे थे।

दबदबे वाले ग्वालियर-चंबल संभाग की विजयपुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी रावत की हार एवं उपचुनाव के प्रचार में न जाने के प्रश्न पर सिंधिया ने बाद में कहा था, ‘संगठन ने उनसे कहा ही नहीं कि विजयपुर प्रचार के लिए जायें।’

सिंधिया के इस बयान के बाद भाजपा के प्रदेश कार्यालय मंत्री और भोपाल दक्षिण के विधायक भगवानदास सबनानी ने ऑनकैमरा मीडिया को बयान दिया था, ‘मुख्यमंत्री मोहन यादव, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वी.डी. शर्मा और संगठन महामंत्री हितानन्द शर्मा ने विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में प्रचार पर जाने का विधिवत न्यौता सिंधिया जी को दिया था, लेकिन अन्यत्र व्यस्तताओं का उल्लेख कर वे प्रचार में नहीं गए।’

भाजपा प्रदेश कार्यालय मंत्री सबनानी के बयान के बाद मामला गहराया था। सिंधिया को दोबारा मीडिया ने घेरा था। सिंधिया ने पुराना जवाब (संगठन ने प्रचार के निर्देश नहीं दिए) दोहरा दिया था। इसके बाद बात आयी-गयी सी हो गई थी।

अब जो हालात हैं, वो सिंधिया और उनके समर्थकों के लिए मुफीद नहीं माने जा रहे हैं। सागर में गोविन्द सिंह राजपूत घिरे हुए हैं तो सिंधिया के दूसरे हाथ और मोहन यादव सरकार में जल संसाधन महकमे के मंत्री तुलसी राम सिलावट पर भी जमकर निशाने साधे जा रहे हैं।

सिलावट के पास ग्वालियर और बुरहानपुर जिले का प्रभार है। इंदौर का वे प्रतिनिधित्व करते हैं। तीनों ही जगह सिलावट कमफर्ट नजर नहीं आ रहे हैं।

बिना नाम लिए मोर्चा खोलने वाले पूर्व गृहमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ विधायक भूपेन्द्र सिंह ने दो टूक कहा दिया है, ‘उनके रहते, पुराने कांग्रेसी सागर जिले में भाजपा को कमजोर करने में सफल नहीं हो सकेंगे।’

दिल्ली पहुंचा है भूपेन्द्र सिंह मसला...!

सूत्रों के अनुसार भूपेन्द्र सिंह से जुड़ा मसला दिल्ली दरबार में पहुंच गया है। मध्य प्रदेश में भी संगठन स्तर पर मामले को लेकर विमर्श की ख़बर है। चूंकि ऑन रिकॉर्ड इस मसले पर जिम्मेदार नेता बात नहीं कर रहे हैं, लिहाजा कयासबाजी का दौर जारी है।

भूपेन्द्र सिंह तो आर-पार वाले मूड में नजर आ रहे हैं। भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई और दिल्ली का मूड क्या है? जल्दी सामने आने के संकेत हैं।

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