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गुजरात: बीजेपी क्यों आप को मुकाबले से बाहर बता रही है?

गुजरात: बीजेपी क्यों आप को मुकाबले से बाहर बता रही है?

गुजरात विधानसभा चुनाव में आख़िर खेल क्या चल रहा है? इस बार किन दो दलों के बीच में मुक़ाबला होने जा रहा है? बीजेपी-कांग्रेस या फिर बीजेपी-आप? समझिए, गुजरात में राजनीतिक दाँव-पेच क्या है।

गुजरात के चुनावी परिदृश्य में एक नाटकीय परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जिस आम आदमी पार्टी को भाजपा के खिलाफ मुकाबले में दिखाते हुए कहा जा रहा था कि कांग्रेस अब इस सूबे में हाशिए पर चली गई है, उस आम आदमी पार्टी का हल्ला अब अचानक थम गया है।

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धुआंधार प्रचार और रैलियों के बावजूद पिछले तीन दिनों से मीडिया और सोशल मीडिया में सुर बदल गए हैं। पहले मीडिया में यह तस्वीर पेश की जा रही थी कि गुजरात में इस बार मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच है तथा कांग्रेस मरणासन्न स्थिति में होकर मुकाबले से बाहर है लेकिन अब यह बताया जा रहा है कि भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से है। 

मीडिया के सुर भाजपा नेताओं के बयानों के आधार पर बदले हैं। इस सिलसिले में पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई प्रहलाद मोदी ने कहा कि आम आदमी पार्टी कहीं नहीं है और मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस का है। इसके बाद यही बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी विभिन्न टीवी चैनलों पर दोहराई। उन्होंने कहा कि भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से है और भाजपा इस बार रिकॉर्ड जीत हासिल करेगी। उन्होंने भी आम आदमी पार्टी को मुकाबले से बाहर ही बताया। प्रहलाद मोदी और अमित शाह के बयानों के बाद स्थानीय मीडिया के ही नहीं, बल्कि दिल्ली के उस मीडिया के सुर भी बदल गए जिसे आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब की सरकारें हर महीने करोड़ों रुपए के विज्ञापन देती हैं।

अपने शीर्ष नेतृत्व के बदले हुए बयानों के बाद गुजरात भाजपा के नेताओं ने भी अब अपना मुकाबला कांग्रेस से बताना शुरू कर दिया है। वे त्रिकोणीय मुकाबले की बात को भी खारिज करते हुए कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी मुकाबले में कहीं नहीं है। चुनावी सभाओं और प्रचार सामग्री में भी भाजपा के नेता खासतौर पर कांग्रेस पर ही निशाना साध रहे हैं।

चुनावी मुकाबले को लेकर इस तरह अचानक नैरेटिव बदलने की अहम वजह यह बताई जा रही है कि भाजपा को अब आम आदमी पार्टी से नुकसान होने का ख़तरा दिखने लगा है। पिछले कई महीनों से भाजपा और उसके ढिंढोरची की भूमिका निभाने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से ने ही गुजरात में आम आदमी पार्टी की हवा बनवाई थी। 

भाजपा को लग रहा था कि आम आदमी पार्टी को मुकाबले में बताया जाएगा तो वह कांग्रेस का तो वोट काटेगी ही और जो सत्ता विरोधी वोट होगा, उसमें से भी कुछ वोट ले लेगी, जिससे कांग्रेस कमजोर हो जाएगी।

भाजपा की इस रणनीति को भांपते हुए कांग्रेस की ओर से भी आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम बताते हुए केजरीवाल को दूसरा ओवैसी बताया जा रहा था। कांग्रेस का अभी भी यही कहना है कि आम आदमी पार्टी का एकमात्र मक़सद कांग्रेस को कमजोर करना है। अब जबकि कई चुनावी सर्वेक्षणों और खुद भाजपा द्वारा कराए गए सर्वे में आम आदमी पार्टी को अनुमान से ज़्यादा वोट मिलने की ख़बरें आने लगीं तो बीजेपी सावधान हो गई है और उसने अपना मुक़ाबला कांग्रेस से बताना शुरू कर दिया है। हालाँकि कांग्रेस इन चुनावी सर्वेक्षणों को प्रायोजित सर्वे बता कर खारिज कर रही है। वैसे, जमीनी हकीकत भी यही है कि आम आदमी पार्टी का हल्ला अहमदाबाद, गांधीनगर, सूरत, वडोदरा, राजकोट, हिम्मतनगर आदि कुछ बड़े शहरों में ही ज़्यादा है, जबकि ग्रामीण इलाक़ों में उसके पास न तो प्रभावी उम्मीदवार हैं और न ही पार्टी का संगठन।

जवाब में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी जोर शोर से कह रही है कि भाजपा और कांग्रेस तो मिले हुए हैं। केजरीवाल अब भी यही दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी गुजरात में सरकार बनाने जा रही है। बहरहाल, अब गुजरात में यह हो रहा है कि भाजपा अपना मुक़ाबला कांग्रेस से बता रही है, कांग्रेस पहले की तरह ही कह रही है कि उसका मुकाबला भाजपा से है और आम आदमी पार्टी भी अपनी लड़ाई भाजपा से बताते हुए कांग्रेस के सफाए की भविष्यवाणी कर रही है।

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