देश के कुछ हिस्सों से ख़बरें आ रही हैं कि वहाँ चीनी सामानों को नष्ट किया जा रहा है, उनकी होली जलाई जा रही है। इस सबको देखकर लगता है कि लोगों के मन में चीन के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त गुस्सा है, क्योंकि उसने न केवल हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है, बल्कि हमारे 20 से भी ज़्यादा सैनिकों को मार डाला है।
लोगों का गुस्सा वाज़िब है। कोई भी देशभक्त देश की सीमाओं का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करेगा। फिर चीन यह काम पहली बार तो कर नहीं रहा है। साल 1962 की लड़ाई में उसने हमारे बहुत बड़े भू-भाग पर कब्ज़ा कर लिया।
चीन से गुस्सा
उसके बाद भी उसकी तरफ से बार-बार ऐसी कोशिशें हुई हैं, जो उसके विस्तारवादी इरादों को ज़ाहिर ही नहीं करतीं, बल्कि हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने की नीयत को भी साफ़ कर देती हैं। चार साल पहले उसने डोकलाम में यह हरकत की थी और अब गलवान घाटी में यही कर डाला है।चीन के प्रति हमारी नाराज़गी की दूसरी वजह उसका पाकिस्तान को शह देना है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन उसका लगातार बचाव करता रहा है बल्कि कई बार तो उसने उसे बढ़ावा देने का काम भी किया है। इसलिए लाज़िमी है कि देश में इसके ख़िलाफ़ गुस्से और नफ़रत का वातावरण बने। लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि इस वातावरण को कौन और किस तरह से भुनाने की कोशिश कर रहा है।
चीनी माल का बहिष्कार क्यों
रामदास अठावले जैसे विवेकहीन मंत्रियों की बात करना बेकार है। वह ‘गो कोरोना गो’ जितनी समझ रखने वाले नेता हैं। चीनी खाद्य व्यंजनों के बहिष्कार की उनकी अपील भी हास्यास्पद है क्योंकि चीनी खाना भारत में आकर भारतीय हो चुका है और इसे बंद करने का मतलब है हज़ारों रेस्तराँ का बंद होना और लाखों लोगों का बेरोज़गार होना।
चीनी माल के ख़िलाफ़ अभियान को जो लोग सुनियोजित ढंग से हवा दे रहे हैं वे सत्तारूढ़ दल यानी बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन यानी संघ परिवार के हैं।
सरकार की हर तरफ से आलोचना हो रही है। न केवल विपक्षी दल बल्कि विशेषज्ञ भी उसकी आलोचना कर रहे हैं। केवल गोदी मीडिया उसके साथ है और सेना के वे अधिकारी उसका समर्थन कर रहे हैं, जो हिंदुत्ववादी विचारधारा का समर्थन करते आए हैं।
राजनीतिक मक़सद
ये लोग देश के दूसरे लोगों से ज़्यादा राष्ट्रभक्त हैं ऐसा नहीं है और न ही वे अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसका एक राजनीतिक मक़सद है और वह यह है कि कैसे अपनी सरकार की नाकामियों पर परदा डाला जाए।सरकार परेशान है। उसकी भद पिट रही है। वह दिशाहीन नज़र आ रही है। उसे समझ में नही आ रहा है कि चीन के साथ कैसे निपटा जाए। चीन पूरी आक्रामकता के साथ डटा हुआ है और हर घटना के लिए भारत को दोषी बता रहा है, मगर प्रधानमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री तक कुछ बोल नहीं पा रहे हैं।
संघ की नीति
ऐसे में अपनी सरकार को बचाने के लिए संघ परिवार आगे आया है। उसने देश का ध्यान बँटाने के लिए चीनी माल के बायकॉट का एजेंडा अपने हाथों में ले लिया है।
संघ परिवार चाहता है कि लोगों का गुस्सा सरकार से हटाकर चीन की तरफ मोड़ दिया जाए, उन्हें अंधराष्ट्रवादी उन्माद में धकेल दिया जाए।
इसके लिए चीनी माल के बायकॉट का अभियान बहुत ही आसान रास्ता है। इसके लिए देश में पहले से माहौल बना हुआ है, बस आग़ को भड़काना है। रामदेव सरीखे संघ परिवार के सदस्य इसमें जब तब घी डालते रहे हैं।
चीन को रोकने में सरकार नाकाम
दरअसल, इसमें कोई शक़ नहीं रह गया है कि सीमा पर चीन ने जो कुछ किया है उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ज़िम्मेवार है। अव्वल तो हमारी खुफ़िया एजंसियाँ सोई रहीं और चीन ने 60 किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा कर लिया। फिर सरकार ने बातचीत की आड़ में लगातार इसके बारे में चुप्पी साधे रखी। इसके बाद बीस सैनिकों की मौत हो गई और अभी तक उसने कुछ नहीं किया।
प्रधानमंत्री पिछले 6 साल से चीन के साथ रिश्ते बढ़ाने में लगे हुए थे। वह भाग-भागकर पाँच बार चीन गए और दो बार राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत बुलाकर उनकी आवभगत की।
मोदी मुख्यमंत्री रहते हुए भी 4 बार चीन जा चुके थे। कुल 18 बार वह जिनपिंग से मिल चुके हैं। मोदी बड़े नाटकीय अंदाज़ में उनसे अपने घनिष्ठ रिश्तों की बात करते रहे हैं, केमिस्ट्री की बात करते रहे हैं। व्हेन त्सांग के उनके गाँव आने वाला किस्सा याद कीजिए। आपको याद दिला दें कि मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि चीनी राष्ट्रपति ने उन्हें वह किताब दिखाई, जिसमें व्हेन त्सांग ने उनके गाँव का ज़िक्र किया है।
हर मोर्चे पर नाकाम
ज़ाहिर है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी विफलता भी है और सरकार की सामूहिक विफलता भी। लेकिन यह सरकार केवल चीन के मामले में ही नाकाम रही हो, ऐसा नहीं है। अब तो यह साफ़ दिख रहा है कि सरकार कोरोना से लेकर अर्थव्यवस्था तक हर मोर्चे पर नाकाम हो गई है और देश अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रहा है।सरकार की ये नाकामियाँ अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुकी हैं। इसलिए उनसे ध्यान हटाने और उन पर परदा डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। संघ परिवार चीनी माल के बायकॉट का अभियान इसी एजेंडे के तहत कर रहा है।
चीन को आर्थिक चोट
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसीलिए चीन को आर्थिक चोट पहुँचाने का आह्वान कर रहे हैं।
संघ परिवार सरकार पर यह दबाव नहीं डाल रहा है कि वह चीन के साथ आर्थिक संबंध तोड़ ले या चीनी माल का आयात रोक दे। वह यह भी नहीं कह रहा है कि जिन भारतीय कंपनियों में चीनी निवेश है, उन्हें बंद कर दे।
इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मोदी सरकार ने पिछले 6 साल में चीनी माल या निवेश को रोकने या कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, बल्कि उसे बढ़ाने के लिए नए-नए समझौते किए हैं। चीनी कंपनियों को देश में बड़े-बड़े ठेके दिए गए हैं और उन्होंने भारत में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।
अपना नुक़सान
चीनी माल के बायकॉट के इस अभियान से होगा यह कि कुछ लोग भावनाओं में बहकर अपना नुक़सान कर लेंगे और उन व्यापारियों का नुक़सान हो जाएगा जो चीनी माल बेचकर अपना घर परिवार चलाते हैं। राजनीति करने वाले निठल्लों का इससे कुछ नहीं बिगड़ेगा बल्कि उनकी तो राजनीति चमक जाएगी।
आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि चीनी माल और निवेश का पूर्ण बहिष्कार संभव नहीं है और न ही यह देश हित में होगा। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि हमारे पास उनका विकल्प नहीं है।
चीनी माल सस्ता होता है, इसलिए बहुत सारे लोग उसे खरीद सकते हैं। कम हैसियत वाले लोग दूसरे देशों के उत्पादों की खरीदने की हैसियत ही नहीं रखते।
वैसे भी यह अभियान लंबा नहीं चलने वाला। मगर इतना ज़रूर है कि इसके पीछे की राजनीति सफल हो सकती है। इसलिए अपने विवेक का इस्तेमाल कीजिए, भावनाओं में मत बहिए। स्वदेशी अच्छा है मगर जान-बूझकर मूर्ख बनना बहुत बुरा।